Atmadharma magazine - Ank 050
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 7 of 17

background image
: २२ : आत्मधर्म : मागसर : २४७४ :
स्वभावनी श्रद्धाथी तुं अल्पकाळमां भवरहित थई जईश. माटे हे भाई! पहेलां तुं कोईपण उपाय–परम
पुरुषार्थ वडे सम्यग्दर्शन प्रगट कर.
प्रश्न:–आप सम्यग्दर्शननुं अपार माहात्म्य बतावो छो ए तो बराबर छे, ए ज करवा जेवुं छे, पण
एनुं स्वरूप न समजाय तो शुं करवुं?
उत्तर:–सम्यग्दर्शन वगर आत्म कल्याणनो बीजो कोई उपाय त्रण काळ–त्रण लोकमां नथी; माटे ज्यां
सुधी सम्यग्दर्शननुं स्वरूप न समजाय त्यां सुधी एनो ज अभ्यास निरंतर कर्या करवो, आत्म स्वभावनी साची
समजणनो ज प्रयत्न कर्या करवो, ए ज सरळ अने साचो उपाय छे. जो तने आत्मस्वभावनी साची रुचि छे
अने सम्यग्दर्शननो महिमा जाणीने तेनी झंखना थई छे तो तारो समजणनो प्रयत्न नकामो नहि जाय.
स्वभावनी रुचिपूर्वक जे जीव सत् समजवानो अभ्यास करे छे ते जीवने क्षणे क्षणे मिथ्यात्वभाव मंद पडतो
जाय छे. एक क्षण पण समजणनो प्रयत्न निष्फळ जतो नथी, पण क्षणे क्षणे तेनुं कार्य थया ज करे छे.
स्वभावनी होंशथी जे समजवा मागे छे ते जीवने अनंतकाळे नहि थयेली एवी निर्जरा शरू थाय छे. श्री
पद्मनंदी आचार्यदेवे तो कह्युं छे के–आ चैतन्य–स्वरूप आत्मानी वात पण जे जीवे प्रसन्नचित्तथी सांभळी छे ते
जीव मुक्तिने लायक छे.
माटे हे भव्य! एटलुं तो जरूर करजे.
[भादरवा वद १४ सोमवारना परमात्म प्रकाशना व्याख्यानमांथी] शांतिनो उपाय
आ जीव शरीरथी जुदो छे. आ शरीर तो माटी छे, जड छे, अने जीव तेनाथी जुदो छे जीव एटले
आत्मा, ते जाणनार छे, ते २५ वर्ष पहेलांनी वातने पण जाणे छे. शरीर नथी जाणतुं, पण जीव जाणे छे.
जीवनुं सुख कयांय बहारमां नथी, आ शरीरमां पैसामां, स्त्रीमां कयांय सुख नथी, पण ममता टाळे तो
तेने आत्मामां ज सुख देखाय. आत्मा पोते ममता करे छे ते ममता पाप छे, अने तेने लीधे जीवने दुःख छे, ते
ममता अने पाप टाळे तो जीवने शांति अने सुख थाय. जीवमां ममता करवानी ताकात छे तेम तेने टाळवानी
ताकात पण जीवमां छे. जो ममता टाळे तो सुख थाय.
पहेलां झाझी ममता करतो होय, पछी ममता घटाडे त्यां ममता घटवा छतां कांई ज्ञान घटी जतुं नथी.
माटे ममता ते पोतानुं कर्तव्य नथी, पण ज्ञान ते ज आत्मानुं स्वरूप छे. वृद्ध उमर थाय त्यारे छोकरो पण तेने
कहे छे के–‘हवे तमे निवृत्ति लो एटले एटले के ममता घटाडो!’ तेथी छोकराए पण एम मान्युं के ममता
घटाडवी जोईए. वृद्धदशामां के जुवानदशामां गमे त्यारे जीवमां ममता घटाडवानी शक्ति छे. ममता घटाडवाथी
जीवने पोतानो आनंद प्रगटे छे. ममताने लीधे ज जीवने दुःख थाय छे, ने ममता टाळे तो सुख थाय. आ
आत्मा शरीरथी जुदो छे, ने पैसामां, स्त्रीमां के शरीर वगेरेमां तेनुं सुख नथी, पण पोतामां ज सुख छे–एम
समजे तो ममता टळे.
आ आत्मा तो कायमनो छे; आत्मा नवो थतो नथी, पण पूर्व भवोमां हतो ते ज अत्यारे छे. आत्मानो
नाश थतो नथी के ते नवो थतो नथी. आ शरीर नवुं थाय छे, ने शरीर नाश पामे छे. पण जीव तेनाथी जुदो
छे–एम जो जाणे तो शरीरादि उपर ममता न करे अने ममता न करे तो ते सुखी थाय. गमे ते वखते पोते
ममता ओछी करी शके छे एवी जीवमां ताकात छे. मांदो होय ने खाटले पडयो होय छतां ममता घटाडी शके छे.
जो ममता न घटाडे तो शांति थाय नहि. माटे आत्मा अने शरीर जुदा छे एम समजीने ममता घटाडे तो ज
जीवने शांति थाय छे.
जेम दिवासळीमां भडको थवानो स्वभाव छे, तेथी तेने घसो तो भडको प्रगट थाय छे. दिवासळीमां पेट
भरवानी–भूख मटाडवानी शक्ति नथी पण भडको थवानी शक्ति छे. तेम जीवमां ज्ञान करवानी अने शांति
करवानी ताकात छे, ज्ञान अने शांति जीवनो स्वभाव छे. ते स्वभावने ओळखे तो तेने शांति थाय ने ममता
टळी जाय. जेम साकरमां कडवाश स्वभाव नथी तेम जीवमां ममता करवानो स्वभाव नथी, पण ममता टाळीने
शांति करवानो ज तेनो स्वभाव छे. माटे एवा पोताना आत्माने जाणे अने ममता टाळे तो शांति थाय ने सुख
प्रगटे, तेमां कोई बीजानी मददनी जरूर नथी.