पुरुषार्थ वडे सम्यग्दर्शन प्रगट कर.
समजणनो ज प्रयत्न कर्या करवो, ए ज सरळ अने साचो उपाय छे. जो तने आत्मस्वभावनी साची रुचि छे
अने सम्यग्दर्शननो महिमा जाणीने तेनी झंखना थई छे तो तारो समजणनो प्रयत्न नकामो नहि जाय.
स्वभावनी रुचिपूर्वक जे जीव सत् समजवानो अभ्यास करे छे ते जीवने क्षणे क्षणे मिथ्यात्वभाव मंद पडतो
जाय छे. एक क्षण पण समजणनो प्रयत्न निष्फळ जतो नथी, पण क्षणे क्षणे तेनुं कार्य थया ज करे छे.
स्वभावनी होंशथी जे समजवा मागे छे ते जीवने अनंतकाळे नहि थयेली एवी निर्जरा शरू थाय छे. श्री
पद्मनंदी आचार्यदेवे तो कह्युं छे के–आ चैतन्य–स्वरूप आत्मानी वात पण जे जीवे प्रसन्नचित्तथी सांभळी छे ते
जीव मुक्तिने लायक छे.
ममता अने पाप टाळे तो जीवने शांति अने सुख थाय. जीवमां ममता करवानी ताकात छे तेम तेने टाळवानी
ताकात पण जीवमां छे. जो ममता टाळे तो सुख थाय.
कहे छे के–‘हवे तमे निवृत्ति लो एटले एटले के ममता घटाडो!’ तेथी छोकराए पण एम मान्युं के ममता
घटाडवी जोईए. वृद्धदशामां के जुवानदशामां गमे त्यारे जीवमां ममता घटाडवानी शक्ति छे. ममता घटाडवाथी
जीवने पोतानो आनंद प्रगटे छे. ममताने लीधे ज जीवने दुःख थाय छे, ने ममता टाळे तो सुख थाय. आ
आत्मा शरीरथी जुदो छे, ने पैसामां, स्त्रीमां के शरीर वगेरेमां तेनुं सुख नथी, पण पोतामां ज सुख छे–एम
समजे तो ममता टळे.
छे–एम जो जाणे तो शरीरादि उपर ममता न करे अने ममता न करे तो ते सुखी थाय. गमे ते वखते पोते
ममता ओछी करी शके छे एवी जीवमां ताकात छे. मांदो होय ने खाटले पडयो होय छतां ममता घटाडी शके छे.
जो ममता न घटाडे तो शांति थाय नहि. माटे आत्मा अने शरीर जुदा छे एम समजीने ममता घटाडे तो ज
जीवने शांति थाय छे.
करवानी ताकात छे, ज्ञान अने शांति जीवनो स्वभाव छे. ते स्वभावने ओळखे तो तेने शांति थाय ने ममता
टळी जाय. जेम साकरमां कडवाश स्वभाव नथी तेम जीवमां ममता करवानो स्वभाव नथी, पण ममता टाळीने
शांति करवानो ज तेनो स्वभाव छे. माटे एवा पोताना आत्माने जाणे अने ममता टाळे तो शांति थाय ने सुख
प्रगटे, तेमां कोई बीजानी मददनी जरूर नथी.