स्वरूपे मान्यो छे, तेथी ते मिथ्याद्रष्टि ज छे. आत्मानी पूर्णदशामां राग न होय छतां ते दशामां पण जीवने
रागनां कार्यो (आहारादि) मनावे तेओए मोक्षतत्त्वने ज ओळख्युं नथी. साधक मुनिदशामां घणी ज
वीतरागता प्रगटी होय छे. ते दशामां जीवने शरीर उपरना तीव्र रागनो अभाव होय छे. ऋतु वगेरेथी शरीरनुं
रक्षण करवानी वृत्ति ज तेओने होती नथी. जेम आत्मा वीतरागी भाववडे विकारथी संकोचाईने स्वरूपमां ठरी
गयो होय छे तेम शरीरनी ईन्द्रियो पण जाणे के संकोचाईने अंदर ठरी जती होय–एवी निर्विकारी दशा मुनिने
सहज होय छे. ए दशामां वस्त्रादि ग्रहणनो विकल्प पण होतो नथी; छतां एवी साधकदशामां वर्तता पवित्र
आत्माओने पण जे वस्त्रादि मनावे तेणे संवर–निर्जरातत्त्वने विपरीत मान्यां छे. ए रीते तत्त्वनुं स्वरूप
विपरीत माने छे ते मिथ्याद्रष्टि ज छे, एम आचार्य भगवान कहे छे.
छे तेओ विकारमां निर्विकारी पद मनावे छे, तेथी तेणे हजी निर्विकारी दशानुं तथा विकारनुं साचुं स्वरूप जाण्युं
नथी. आहारादि दोष सहित जीवने जेओ देव तरीके माने तेओ कुदेवने माने छे अने वस्त्रादि परिग्रह सहित
जीवने जेओ गुरु तरीके (साधु तरीके अर्थात् मुनि तरीके) माने तेओ कुगुरुने माने छे. ए रीते कुदेव–कुगुरुने
मानवाथी अने तेने वंदवाथी पोताना श्रद्धा–ज्ञानमां विपरीतता आवे छे अने आत्मानी विराधना थाय छे,
तेनुं पोताने महापाप छे, परंतु कोई परना कारणे पोताने नुकशान नथी. परना दोष एनी पासे रह्या अने ते
एने नुकशाननुं कारण छे, पण पोतामां तेवा कोई दोष होय तो ते टाळवा जोईए ए दोष टाळ्या वगर
आत्मानुं कल्याण थाय नहि.
तेमने वळी बीजी कोण कूळदेवी होय! आत्मानी शुद्ध चैतन्य परिणति ए ज आत्मानी कूळदेवी छे, ए सिवाय
बीजी कोई पण कूळदेवीने धर्मबुद्धिथी के लौकिक बुद्धिथी माने ते मिथ्याद्रष्टि छे.
छे, तेमां केवळीदशा अने मुनिदशा वगेरे बधी अवस्थाओ अभेदपणे आवी जाय छे, तेथी त्रिकाळी आत्माना
यथार्थ ज्ञान साथे बधी पर्यायोनुं पण यथार्थ ज्ञान आवी जाय छे. तेथी जेने पर्यायोना स्वरूपनुं यथार्थ ज्ञान न
होय तेने त्रिकाळी द्रव्यनुं पण यथार्थज्ञान होय नहि, एटले के ते मिथ्याज्ञानी ज होय.
सम्यग्दर्शन प्रगट करवानो प्रयत्न करवो जोईए. केमके सम्यग्दर्शन ज धर्मनुं मूळ छे.
पदार्थोना यथार्थ स्वरूपनुं ज्ञान थाय छे. पदार्थोनुं स्वरूप जाणवाथी हेय–उपादेयनुं अने कल्याण–अकल्याणनुं
स्वरूप जणाय छे, कल्याण तथा अकल्याणनुं स्वरूप जाणवाथी कल्याणना उपायोनुं ग्रहण अने अकल्याणना
उपायोनो त्याग जीव करी शके छे. माटे सम्यग्दर्शनथी ज कल्याणनी प्राप्ति थाय छे. जीवने ज्यां सुधी ऊंधी
मान्यतारूप मिथ्यात्व होय छे त्यां सुधी तेनुं ज्ञान मिथ्या छे, अने तेथी ते पदार्थोना याथार्थ स्वरूपने जाणतुं
नथी, कल्याण अने अकल्याणना उपायोने पण यथार्थपणे ओळखतुं नथी; तेथी मिथ्याद्रष्टि जीव कल्याणनुं ग्रहण
अने अकल्याणनो त्याग करी शकतो नथी. माटे मिथ्यात्व ए ज अकल्याण छे.