Atmadharma magazine - Ank 051
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: पोष : २४७४ : आत्मधर्म : ४३ :
पर्यायनी निर्मळता वधती जाय छे अने विकार टळतो जाय छे. तेम तेम ते दशामां विकारनां निमित्तो पण
छूटतां जाय छे. जेम के जीवने सम्यग्दर्शन थतां मिथ्यात्वभाव टळी जाय छे अने तेथी मिथ्यात्वनां निमित्तो पण
टळी ज जाय छे. कुदेव–कुगुरु–कुधर्म ए मिथ्यात्वना निमित्तो छे, जीवने सम्यग्दर्शन थतां ते निमित्तोनुं अवलंबन
होय ज नहि. सम्यग्दर्शननी भूमिकामां ए त्याग होय छे.
[] म्ग्र् : अहीं तो आचार्य भगवान सम्यग्दर्शननुं अपार
माहात्म्य वर्णवतां कहे छे के सम्यग्दर्शन थतां जीवने बधाय भावोनी उपलब्धि थाय छे, अर्थात् ज्ञानमां तेनो
विवेक थई जाय छे. केवळज्ञान न होवा छतां कहे छे के बधाय भावोनी उपलब्धि थई जाय छे. बधाय भावोनी
साक्षात् उपलब्धि तो केवळी भगवानने थाय. सम्यग्द्रष्टि जीवने केवळज्ञान प्रगट्युं न होवा छतां तेमने
केवळज्ञाननी प्रतीति प्रगटी गई छे, अंतरमां केवळज्ञाननां बीजडां रोपाई गयां छे. केवळज्ञाननां स्वरूपनी
प्रतीति थतां केवळीए जाणेला बधाय भावोनी पण प्रतीति आवी गई. सम्यग्द्रष्टिने बधाय भावोमां विवेक
प्रगटी गयो, एटले सम्यग्दर्शन थतां ज कल्याण रूप अने अकल्याणरूप भावोनुं साचुं ज्ञान थाय छे अने
कल्याणनी प्राप्ति थाय छे.
[] म्ग्द्रिष्ट जी प्र ? ल् ? : सत् देव–गुरु–धर्मना समागमे,
आत्माना स्वभावनो रुचि अने महिमाथी अभ्यास करतां करतां अपूर्व पुरुषार्थ वडे जीवने सम्यग्दर्शन प्रगट
थाय छे. सम्यग्दर्शन थतां साचुं ज्ञान थाय छे अने ए साचुं ज्ञान बधाय पदार्थोना यथार्थ स्वरूपने जाणे छे.
बधा पदार्थोनुं स्वरूप जाणतां तेने कल्याण तथा अकल्याणनी एवी प्रतीति थाय छे के–जे आ शुद्ध स्वभाव छे
तेनो आश्रय करवो ते ज कल्याणनुं कारण छे. मारा स्वभावमां रागादि भावो नथी, ते रागादि भावो कल्याणनुं
कारण नथी. स्वभावने विपरीतपणे मानवो ते मिथ्यात्वभाव ज अकल्याणनुं कारण छे.
कोई पर वस्तुओ के देव–गुरु–शास्त्र आ जीवने कल्याणनुं के अकल्याणनुं कारण नथी. मात्र पोतानी
पर्यायमां साची समजण अने स्थिरता ते ज कल्याणनुं कारण छे अने ऊंधी समजण तथा रागादि ते ज
अकल्याणनुं कारण छे. जो के राग ते पण अकल्याणनुं ज कारण छे, परंतु जीवने राग भावथी जेटलुं अकल्याण
थाय छे तेना करतां अनंतगणुं अकल्याण ‘रागथी आत्माने लाभ थाय’ एवी ऊंधी मान्यताथी थाय छे.
‘रागमां धर्म छे’ एवी मान्यता अकल्याणनुं मूळ छे. आचार्य के साधु के पंडित नाम धरावीने पण जेओ
रागादि वडे आत्मानुं कल्याण मानवानी जोसबंध प्रवृत्ति करे छे तेओनी त्रस स्थिति पूरी थवा आवी छे–अने
तेवाओने वंदनादि करनार जीव महा संसारमां रखडे छे–एम आचार्य भगवान कहे छे.
[] जी ल् र् ्य प्रीर् : जीव कोने कहेवो ते सम्यग्ज्ञान वगर जणाय नहि. शरीर ते
जीव नथी, हाले–चाले ते जीव नथी, अरे, राग करे ते पण जीव नथी, एकला ज्ञाताद्रष्टा भावस्वरूप जीव छे.
रागमां धर्म माने तेणे जीवना ज्ञातापणाने जाण्युं नथी एटले जीवने ज जाण्यो नथी. जीवने ओळख्या वगर धर्म
क्यांथी थाय? जेणे जीवादि पदार्थोनुं यथार्थ स्वरूप जाण्युं नथी ते मिथ्याद्रष्टि छे, तेने कल्याणना मार्गनुं भान नथी.
सम्यग्दर्शन वगर जीवनुं यथार्थ स्वरूप समजाय नहि. सम्यग्दर्शन ए ज कल्याणनुं मूळ छे, तेना वगर
कल्याण नथी. ज्यारे सम्यग्दर्शन पूर्वकना सम्यग्ज्ञानथी पदार्थोनुं यथार्थस्वरूप जाणे त्यारे ज जीवने कल्याण–
अकल्याण मार्गनो निर्णय थाय अने ते निःशंकपणे कल्याण मार्गमां प्रवर्ती शके. पण ज्यांसुधी जीवने कल्याण–
अकल्याणना मार्गनो ज निःशंक निर्णय न थाय त्यांसुधी ते कल्याणना मार्गे प्रवर्ती शके नहि.
–१५–
– भलामण –
आत्मधर्म मासिक गुजराती भाषामां पांच वर्षथी प्रगट थाय छे. ए वर्षो
दरमियान आत्मधर्ममां अनेक धार्मिक न्यायोनी विस्तृत छणावट थयेली छे.
यथार्थ धर्मनी रुचि धरावता जिज्ञासु जीवोने सहेलाईथी समजाय एवी सादी अने
सरळ भाषामां भगवाननी दिव्य ध्वनिना भावोने आत्मधर्म मासिकमां रजु करवामां
आव्या छे. एथी जेमनी पासे आत्मधर्म मासिक न होय तेओ जरूर मंगावी ले.
आत्मधर्मनी पहेला, बीजा, त्रीजा तथा चोथा वर्षनी बांधेली फाईल दरेकनी किंमत
३–४–० टपालखर्च माफ
आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड