Atmadharma magazine - Ank 051
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 17

background image
: पोष : २४७४ : आत्मधर्म : ३९ :
शुभ परिणामथी आत्मा न समजाय. कोई शुभ परिणाम ते सम्यग्ज्ञाननो विधि नथी, पण स्वभावना लक्षे यथार्थ
शास्त्रना अर्थ समजे त्यारे तो ज्ञाननो व्यवहार सुधरे छे. आ ज्ञाननुं आचरण पहेलांं सुधर्या विना चारित्रनां
आचरण सुधरे नहि. सम्यग्ज्ञान अने सम्यग्दर्शनना विधिने ज जाणे नहि तो सम्यग्ज्ञान के सम्यग्दर्शन क्यांथी
थाय? घणा जीवो आचरणना परिणाम सुधारीने तेने ज्ञाननो उपाय माने छे, तेवा जीवो सम्यग्ज्ञानना उपायने
समज्या नथी, व्यवहारनो निषेध करीने परमार्थस्वभाव समज्या वगर व्यवहारनुं साचुं ज्ञान पण थाय नहि.
कषायनी मंदता वडे मिथ्यात्वनी जे मंदता थाय तेने व्यवहार सम्यग्दर्शन कहेवाय नहि. पण साची
समजण तरफना प्रयत्नथी ज व्यवहार सम्यक्त्व थाय छे. परंतु ए व्यवहार सम्यक्त्व पण निश्चय सम्यग्दर्शननुं
कारण नथी. देव–गुरु–शास्त्रना लक्षे अटके तो सम्यग्दर्शन थाय नहि. ज्यारे चिन्मात्र स्वभावना आश्रये श्रद्धा–
ज्ञान करे त्यारे ज सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान प्रगटे छे. चैतन्यनी श्रद्धा चैतन्यवडे ज थाय छे–रागवडे के परथी थती नथी.
वीर सं. २४७३ आसो सुद – ३
बहारनी क्रियाना आश्रये कषायनी मंदता थती नथी. अने कषायनी मंदताथी पर्यायनी स्वतंत्रतानी
श्रद्धा थती नथी.
दयादिना परिणामनो पुरुषार्थ तो करे, पण वर्तमान पर्याय स्वतंत्र छे एवी व्यवहार श्रद्धानो प्रयत्न
तेनाथी जुदी जातनो छे. पर जीवने कारणे के परद्रव्योना कारणे मारा दयादिना परिणाम थया अथवा कर्मने
लीधे रागादि थया–एवी मान्यतापूर्वक कषायनी मंदता करे पण ते मंदकषायमां व्यवहार श्रद्धा करवानी ताकात
नथी, तो पछी तेनाथी सम्यग्दर्शन तो थाय ज क्यांथी?
मारा परिणाम परने लीधे थता नथी, माराथी ज हुं कषायनी मंदता करुं छुं, परने लीधे के कर्मने लीधे
मारी पर्यायमां रागादि थता नथी–एवी पर्यायनी स्वतंत्रतानी श्रद्धा ते व्यवहार श्रद्धा छे. मिथ्यात्वनो रस मंद
पाडीने जेने पर्यायनी स्वतंत्रतानी श्रद्धा पण करवानी ताकात नथी ते जीवने सम्यग्दर्शन थाय नहि.
हजी पर्यायनी स्वतंत्रता माने त्यारे मिथ्यात्व मंद थाय छे. अने तेने व्यवहार सम्यक्त्व कहेवाय छे;
मात्र कषायनी मंदता वडे मिथ्यात्वनी मंदता थाय तेने व्यवहार सम्यक्त्व कहेवातुं नथी. केमके श्रद्धानी पर्याय
जुदी छे, ने चारित्रनी जुदी छे.
जडनी क्रिया के कर्मने लीधे आत्माना परिणाम माने ते जीवे तो परिणामनी स्वतंत्रता पण मानी नथी.
ते शुभ भाव करे तोपण तेने मिथ्यात्वनी मंदता यथार्थ नथी. अने ते द्रव्यलिंगीथी पण हलको छे. जेने अशुभ
परिणाम होय एवा जीवनी अत्यारे वात नथी; पण अहीं तो मंदकषायवाळा जीवोनी वात छे. जे जीव पोताना
परिणामनी स्वतंत्रता जाणतो नथी तेने तो मंदकषाय होवा छतां व्यवहारश्रद्धा पण थती नथी.
जे जीव पर्यायनी स्वतंत्रता माने छे पण पर्याय बुद्धिमां अटक्यो छे, ते जीव पण मिथ्याद्रष्टि छे.
अंश स्वतंत्र छे एवी व्यवहारश्रद्धा करवानी ताकात कषायनी मंदतामां नथी. मारा परिणाममां हुं
अटक्यो छुं तेथी ज विकार थाय छे–एम अंशनी स्वतंत्रता माने तो पोते तेनो निषेध करे. पण जो पर विकार
करावे एम माने तो पोते तेनो निषेध केम करे? निमित्त के संयोगथी मारा परिणाम थतां नथी. एम अंशनी
स्वतंत्रता करीने त्रिकाळ स्वभावमां ते अंशनो निषेध करे छे ए ज निश्चय श्रद्धा–सम्यग्दर्शन छे.
कषायनी मंदता ते ते समयनी पर्यायनुं स्वतंत्र कार्य छे, छतां देवगुरुशास्त्रने लीधे लाभ के कर्मने लीधे
नुकशान माने ते जीवने व्यवहारश्रद्धा पण नथी, तो ते अंशनो निषेध करीने त्रिकाळी स्वभावनी श्रद्धा केम
करशे? कषायनी मंदता तो अभवी पण अनंतवार करे छे. पर्याय स्वतंत्र छे–एवी अंशनी स्वतंत्रतानी
कबुलात कर्या वगर मिथ्यात्वनो रस यथार्थपणे मंद पण पडतो नथी.
प्रश्न:– कषायनी मंदता के मिथ्यात्व रसनी मंदता ए बंनेमांथी कोई मोक्षमार्गरूप तो नथी; तो तेमां शुं
फेर छे?
उत्तर–अहीं बंनेना पुरुषार्थनो फेर बताववो छे. परंतु पर्यायनी स्वतंत्रता कबुलवाथी कांई मोक्षमार्ग
थई जतो नथी. पर्यायनी स्वतंत्रता पण अनंतवार मानी, छतां सम्यग्दर्शन थयुं नहि. पण अहीं व्यवहारथी ते
बंनेमां जे फेर छे ते बताववो छे.
कषायनी मंदता करवाथी कांई व्यवहार श्रद्धा थती नथी, केमके तेनाथी व्यवहारश्रद्धानो पुरुषार्थ जुदो छे.
छे तो बंने पुण्य, अने बंने मिथ्यात्व. परंतु तेमां मिथ्यात्वना रसनी अपेक्षाए फेर छे.