Atmadharma magazine - Ank 052
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: ५८ : आत्मधर्म : माह : २४७४ :
खसेडीने स्वभावमां लीन कर्यो, ए शुद्धोपयोगना सामर्थ्यथी घातिकर्मो नाश पाम्यां अने आत्मा पोते
केवळज्ञान रूपे थई गयो. सम्यग्दर्शन पण शुद्धोपयोगथी प्रगटे छे, ने केवळज्ञान पण शुद्धोपयोगथी प्रगटे छे.
खरेखर शुद्धोपयोग प्रगट करवो ए ज जीवनो पुरुषार्थ छे एटले के अवस्थाने स्वद्रव्यना अवलंबनमां टकाववी
ए ज पुरुषार्थ छे. जड कर्मोनो नाश करवानो जीवनो पुरुषार्थ नथी, अने विकारभावनो नाश करवानो पण
खरेखर पुरुषार्थ नथी, केम के जे विकारभाव छे ते तो स्वयमेव नाश पामे छे. पोते ज्यारे शुद्ध उपयोगनुं
सामर्थ्य प्रगट कर्युं–अर्थात् स्वभावना अवलंबनमां पोते टक्यो त्यारे अशुद्धतानी उत्पत्ति ज थई नहि, तेथी
एम कहेवाय छे के जीवे अशुद्धतानो नाश कर्यो अने ते वखते घातिकर्मो पण पोतानी मेळे नाश पामी गयां.
ज्यारे शुद्धोपयोगनुं सामर्थ्य न हतुं त्यारे अशुद्धता हती अने घातिकर्मो निमित्त तरीके हता. अने ज्यारे
शुद्धोपयोगना सामर्थ्यथी स्वद्रव्यमां लीनता करी त्यारे अशुद्धतानी उत्पत्ति ज न थई अने ते अशुद्धताना
निमित्तरूप घातिकर्मो पण टळी गयां आ रीते उपादान–निमित्तनी संधिपूर्वक कथन छे.
() श्र र् त्ष्टि, : ‘स्वयंभू थयेला आत्माना ज्ञान अने
सुखनुं वर्णन करतां श्री आचार्यदेव कहे छे के–शुद्धोपयोगना सामर्थ्यथी जेनां घातिकर्मो क्षय पाम्यां छे...... एवो
‘आ’ स्वयंभू आत्मा पोते ज स्वपरप्रकाशतालक्षण ज्ञान अने अनाकुळतालक्षण सुख थईने परिणमे छे. अहो,
जुओ आचार्यप्रभुनी वर्णन शैलि! जेमणे घातिकर्मो क्षय कर्यां छे तेमने वर्तमान पोताना ज्ञानमां याद करीने
अने पोते पोतानी स्वरूप रमणताने ताजी करीने, जाणे के वर्तमानमां शुद्धोपयोगनी रमणताथी घातिकर्मोनो
क्षय करीने पोते ज अतीन्द्रिय ज्ञान अने सुखरूपे परिणमी जता होय! एवी शैलिथी आचार्यदेव सुप्रभातनां
गाणां गाय छे–स्वयंभू आत्मानो महिमा करे छे. अहो, आत्मानी ए पळ अने ए क्षणने धन्य छे के जे पळे ने
जे क्षणे चैतन्यना शुद्ध उपयोगना सामर्थ्यथी घातिकर्मनो क्षय थईने चैतन्यकळी संपूर्णखीलीने पूर्ण ज्ञान ने पूर्ण
आनंद प्रगटे छे ने सादिअनंत काळ टकी रहे छे. ए आत्मा धन्य छे के जेणे एवा ज्ञान अने आत्माने पोतामां
टकावी राख्यां छे. ए ज्ञान अने आनंद आत्मानी ज उपादान शक्तिमांथी प्रगटेलां छे तेथी स्वाधीन छे, अने
कोई अन्य वस्तुनी तेने अपेक्षा नथी तेथी निरपेक्ष छे. जेनो उदय ज्ञानप्रकाशथी भरपूर छे अने आनंददायक छे
एवा चैतन्यभानुनो सुप्रभात काळमां जे उदय थयो ते थयो हवे ते कदी पण आथमे नहि.
एक तो कुंदकुंदआचार्यनी अद्भुत रचना अने वळी तेना उपर अमृतचंद्र आचार्यनी टीका. भरतक्षेत्रमां
अजोड छे, पंचमकाळे अमृत रेडायां छे. आ वर्षे श्री कुंदकुंदप्रभुनी मूळ गाथा सुप्रभात मांगळिक तरीके आवी छे,
तेमां स्वचतुष्टयरूप महा मंगळ प्रभातनुं वर्णन छे. आत्मानो स्वभाव ज ज्ञान अने सुख छे, तेथी ज्ञान अने
सुखरूपे आत्मा ज स्वयं परिणमे छे. ईन्द्रियो विना ज आत्माने ज्ञान तथा सुख होय छे, केमके पोतानो जे
स्वभाव छे ते परनी अपेक्षा वगरनो छे. जेणे आवा निरपेक्ष ज्ञान अने सुख स्वभावनी श्रद्धा करी–ज्ञान कर्युं
ते आत्मा परथी अने पर तरफना भावोथी उदासीन थईने पोताना स्वरूपमां परिणमवा लाग्यो. हवे जेम जेम
तेनो काळ जाय छे तेम तेम तेनुं केवळज्ञान नजीक नजीक आवतुं जाय छे; तेना आत्मामां जगमगतो चैतन्यसूर्य
ऊगवानी तैयारी थई. स्वभावमां ज तेनुं परिणमन होवाथी जेम जेम अवस्था परिणमती जाय छे तेम तेम
केवळज्ञान नजीक आवतुं जाय छे, एक समयमां एक पर्याय परिणमे छे ने एक समय केवळज्ञान नजीक आवे
छे. आवी दशा आचार्यदेवने पोताने ज परिणमी रही छे. पोताने केवळज्ञानना कारणरूप शुद्धोपयोग वर्ते छे,
तेथी कारण भेगो कार्यनो ‘कलाप’ (–महिमा, शोभा) पण नजीक ज होय ने!
() ित्र : चैतन्यस्वरूप आत्माने समस्त विभावोथी जुदो जाणीने–अनुभवीने जेणे
पोतानो उपयोग चैतन्यपरिणामस्वरूप कर्यो छे एवा जीवने पगले पगले–पर्याये पर्याये असाधारण विशुद्धता
प्रगट थती जाय छे. पहेलांं अज्ञानदशामां पोताना उपयोगने रागपरिणामस्वरूप करीने परिणमतो हतो, पछी
भेदज्ञान थतां चैतन्यपरिणामस्वरूप परिणमवा लाग्यो. हवे जेम जेम पर्याय परिणमे छे तेम तेम उपयोग
चैतन्यमां एकाग्र थतो जाय छे. एवो आत्मा अनादि मोहनो सर्वथा क्षय