Atmadharma magazine - Ank 052
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४७४ : आत्मधर्म : ६१ :
कोई जीव पोताना आत्मस्वभावनुं भान करीने एकावतारी थाय अने सर्वार्थसिद्धि देवलोकमां जाय.
अने त्यां पोताना ज्ञानमां एम जाणे के केवळज्ञान थवाने ३३ सागरो–पमनी वार छे. तो त्यां तेणे खरेखर
परिपूर्ण स्वभावमां रहीने ३३ सागर काळनी स्थितिने जाणी छे, एटले पोताना निर्मळज्ञानने केवळज्ञान तरफ
लंबावीने विरह तोडी नाख्यो छे. काळभेदने तोडीने भविष्यना केवळज्ञानने वर्तमानमां ज जाणे छे. ए खरेखर
स्वभावना आश्रये ज्ञान सामर्थ्य ज लंबाणुं छे अने वचला ३३ सागरनी बधी दशाओनो ज्ञाता थई गयो छे.
जेने पोतानी पूर्णशक्तिनी प्रतीत थई छे ते जीव वर्तमान पूर्णस्वभाव उपर ज जोर आपे छे, पण ३३
सागरना काळ उपर तेनुं जोर जतुं नथी. पूर्णस्वभाव उपरनुं जोर प्रगट कर्युं ते सुप्रभात छे.
() प्र : आजे मांगळिकमां सुप्रभातनुं ‘सबरस’ आव्युं छे. लोको मीठुं (निमक)
याद करे छे अने ज्ञानीओने सादिअनंत–काळनी पूर्णानंद निरुपाधी दशाना संभारणां जागे छे. पूर्णदशा थतां
‘सब’ मां (बधा पदार्थोमां) ज्ञाननो प्रवेश थाय छे अने आनंदनो ‘रस’ होय छे, तेथी ते ज ‘सबरस’ छे,
अने आत्माना सुप्रभातमां अंगीकार करवा योग्य छे.
() ििर्घ् त्त त्र् : पहेलांं कह्युं हतुं के–शुद्धोपयोगना सामर्थ्यथी घातिकर्मो क्षय पाम्या
छे. चार घातिकर्मो क्षय थईने आत्मामां शुं ऊग्युं? ते हवे जणावे छे. ‘समस्त अंतरायनो क्षय थयो होवाथी
अनंत जेनुं उत्तम वीर्य छे’ –एवो आ आत्मा स्वयमेव ज्ञान अने सुख थईने परिणमे छे. ’ आत्मानी बधी
कार्य–शक्तिमां वीर्यबळ प्रधान छे तेथी पहेलांं तेनी वात करी छे. शुभ हो, अशुभ हो के शुद्ध हो–तेमां आत्मानुं
वीर्यबळ ज कार्य करे छे. कोई पण पर्याय आत्माना पुरुषार्थ वगर थतो नथी. पहेलांं ज्ञान–दर्शन न लेतां वीर्य
लीधुं केमके वीर्य एटले आत्मबळथी ज केवळज्ञान अने केवळदर्शन थाय छे. शुद्धोपयोगनुं सामर्थ्य पूर्ण थतां
आत्मशक्ति निर्विघ्न पणे खीली गई अने अंतरायनो क्षय थई गयो. हवे आत्मशक्तिमां कोई विघ्न नथी. आ
सिवाय बीजुं शुं मंगळ होय?
अधूरी दशा वखते पण कांई कर्म आत्माना वीर्यने रोकता न हता, पण आत्मा पोते अधूरा पुरुषार्थमां
अटकतो हतो तेथी तेने निमित्तरूपे अंतरायकर्म हतुं. हवे शुद्धोपयोगवडे आत्माना आनंद कंद स्वभावमां
लीनता थतां अंतरायक्रर्म साथेना निमित्त संबंधने पण तोडीने निर्विघ्न अनंत आत्मशक्ति प्रगट थई छे. पहेलांं
जे आत्मशक्ति विकारमां अटकती ने अपूर्ण परिणमती हती ते हवे पोताना स्वभावमां पूर्णपणे परिणमवा
लागी. अहीं वीर्य साथे ‘उत्तम’ विशेषण वापर्युं छे. बधा आत्मामां पुरुषार्थ तो छे. पण उत्तम पुरुषार्थ तेने
कहेवाय के जे आत्मस्वभावनो आश्रय करीने केवळज्ञान पमाडे. शुद्धोपयोगना पुरुषार्थमां जे वीर्य जोडाणुं ते
उत्तमवीर्य थई गयुं. गमे तेवा ऊंचा शुभभावनो पुरुषार्थ करे तो पण तेने उत्तमवीर्य कहेवाय नहि. पण जे
पुरुषार्थवडे स्वभावनुं कार्य थाय ते ज उत्तमवीर्य छे. वळी अहीं पूर्णदशाना उत्तमवीर्यने ‘अनंत’ विशेषण
लगाडयुं छे. पूर्ण दशामां जे निर्विघ्न उत्तमवीर्य प्रगट्युं छे ते काळथी तो अनंत छे, परंतु तेनामां वर्तमानमां ज
अनंत सामर्थ्य छे. साधकदशानुं जे उत्तम वीर्य छे ते काळथी अनंत नथी, तेमज पूर्णदशानुं अनंत सामर्थ्य पण
तेनामां नथी. स्वभावनो पुरुषार्थ ए ज उत्तमवीर्य छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ने केवळज्ञान ए कोई पुरुषार्थ
वगर पमाता नथी, माटे पहेलांं ज पुरुषार्थ वर्णव्यो छे. स्वभावमांथी जे उत्तम अने बेहद वीर्य प्रगटे छे ते
ज्ञान–आनंद वगेरे बधा गुणोने पूर्णपणे टकावतुं प्रगटयुं छे. आत्मानी पूर्णज्ञान अने आनंदथी भरपूर दशा
प्रगटी पछी अवतार होतो नथी. सदाय पोते पोताना ज्ञान ने आनंदमां ज बिराजी रहे छे.–आ ज सुप्रभात छे,
ने ए ज सादि–अनंतकाळनुं नवुं बेसतुं वर्ष छे.
() : नवा वर्षनी शरूआते चोपडामां घणा लोको एवी भावना लखे छे के बाहुबळजीनुं
बळ हजो. आत्मबळनुं तो भान होय नहि तेथी शरीरना बळनी भावना करे. बाहुबळजी जेवुं बळ मेळवीने शुं
कोई साथे लडवुं छे? वळी एम लखे के शालिभद्रनी रिद्धि हजो. जुओ तो खरा, तृष्णाने केटली लंबावे छे?
स्वभावनुं भान न होय तेथी संयोगनी भावना करे छे. पण तारा चैतन्यस्वभावने ओळखीने एम भावना
कर के, सिद्ध आत्माने जे आत्मबळ प्रगट्युं ते आत्मबळ अमने प्रगट होजो,