परिणमीने स्वने अने परने जाणे छे. जेम अंधकारमय कोटडीमां रहेलो माणस अंधाराने अने पोताने जाणे छे,
पण कांई अंधारुं जाणतुं नथी. तेम देहमां रहेलो चैतन्यस्वरूप आत्मा पोते पोताने अने परने जाणे छे, पण
कांई देह के ईन्द्रियो जाणतां नथी. पहेलांं भेदज्ञान–वडे पोताना ज्ञानस्वभावने स्वतंत्र जाणीने तेमां एकाग्रता
करवाथी स्वपर प्रकाशकता लक्षणवाळुं ज्ञान जेटली हदवाळुं छे तेटली हदे ते संपूर्ण परिणमी गयुं, अने
अनाकुळता लक्षणवाळुं सुख पण संपूर्ण खीली गयुं. ते आत्मा पोते ज्ञान अने सुख साथे एकमेकपणे परिणमी
आत्माथी भिन्न कोई पदार्थोमांथी सुख आव्युं नथी पण आत्मा पोते ज सुखमय थयो छे अने ते सुखमां कोई
प्रकारनो कंटाळो नथी. तेथी अनंतकाळ सुधी एवुं ने एवुं सुख अनुभव्या करशे, कदी पण ‘हवे सुख नहि’ एवुं
नहि थाय. जो आकुळता होय तो कंटाळो आवे पण आ सुख तो स्वाभाविक होवाथी अनाकुळ छे, तेमां कंटाळो
शो? ईन्द्रिय विषयोमां जे सुख कलप्युं छे ते आकुळताजनित छे तेथी तेमां कंटाळो आवी जाय छे. अमुक दूधपाक
खाईने पछी कंटाळी जाय छे, कोई पण ईन्द्रियोना विषयमां कंटाळो आव्या वगर रहेतो नथी, केमके त्यां
वास्तविक सुख नथी. अने स्वभावमांथी प्रगटेलुं आ अतीन्द्रिय सुख वास्तविक सुख छे, तेमां गमे तेटलुं
भोगवे पण कंटाळो नथी, पण आनंद छे, आह्लाद छे. केवळज्ञान पहेलांं साधकदशा वखते अनाकुळ आनंद
अंशे प्रगट्यो हतो, तेमां पण ‘आटलो आनंद बस, हवे वधारे न जोईए’ एम कदी कंटाळो थतो न हतो; पण
अनुभववडे पोते अमर्यादित सुख स्वरूपे थई जाय छे, ते ज सुप्रभात छे.
छे. ’ पहेलांं पोताना आवा निरपेक्षस्वभावना श्रद्धा–ज्ञान करीने पछी शुद्धोपयोगना जोरे समस्त घातिकर्मो
तेमज अधूरा ज्ञानो साथेनो संबंध तोडीने, ईन्द्रियो अने शरीर वगर आत्मा पोते ज ज्ञान अने आनंदरूपे
परिणमे छे. तेथी ते ‘स्वयंभू’ आत्मा पोते ज ज्ञान–आनंदस्वभाव छे. तेनो ज्ञान–आनंद क्यांय बहारथी
लाववो पडतो नथी. बधा आत्मानो स्वभाव आवो ज छे. पण ज्यां सुधी पोते पोताना आवा स्वभावने
स्वकारतो नथी त्यां सुधी जीवने ते ज्ञान अने आनंद व्यक्त थता नथी. अने ज्यारे पोताना स्वभावने
स्वीकारीने तेमां एकाग्र थाय छे त्यारे, पोताना जे ज्ञान अने आनंद त्रिकाळ शक्तिरूप छे ते ज पर्यायरूपे
व्यक्त थाय छे, अने पछी ते सदा एम ने एम रहे छे.
स्वभावनो महिमा लावी ते तरफना वलणथी शद्धोपयोग प्रगट करवो. कोई पण आत्मानो स्वभाव अज्ञानरूप
के पुण्य–पापरूप नथी. पण ज्ञान अने सुखमय स्वभाव बधा आत्मानो छे. वस्तुनो स्वभाव परनी अपेक्षा
राखतो नथी, तेथी आत्मानो ज्ञान अने आनंदस्वभाव परथी निरपेक्ष छे. आत्मानो स्वभाव ज पवित्र छे, ते
पर्यायमां पूर्ण प्रगट्यो त्यां स्वयमेव ज्ञान ने सुख होय छे, तेमां तेने कोई बीजानी जरूर नथी. पूर्ण ज्ञान अने
सुख प्रगट्या न हता त्यारे पण बीजानी जरूर न हती. पूर्ण पर्याय हो के अधूरो पर्याय हो, पण स्वभाव तो
परथी निरपेक्ष होवाथी भगवान आत्माने ज्ञान–आनंद ईन्द्रिय वगर ज होय छे.
पोते ज ज्ञान रूपे अने आनंदरूपे परिणमी जाय छे, ते ज्ञान अने आनंदने पर साथे संबंध नथी. स्वद्रव्यमां
परिणमीने पोते जेटलो अकषायरूप थाय तेटलुं ज्ञान ने सुख थाय छे. आवो स्वावलंबी आत्मस्वभाव छे. ते
स्वभावनी प्रतीति पण स्वावलंबी छे, तेनुं ज्ञान स्वावलंबी छे, आनंद स्वावलंबी छे, पुरुषार्थ स्वावलंबी छे.
स्वावलंबीनुं बधुं स्वावलंबी छे. आवा स्वभावना अवलंबने जे श्रद्धा अने स्थिरता प्रगटी तेना जोरे
आत्मामां स्वकाळनी पूर्णता थाय छे अने सादि अनंतकाळ पूर्ण ज्ञानानंदीपणे आत्मा परिणमे छे, ए ज महान
सुप्रभात मांगळिक छे.