Atmadharma magazine - Ank 052
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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(आर्या–)
पर द्रव्यने ‘हुं करुं हुं करुं’ – ए ज अज्ञान छे
[श्री समयसार – कलश टीका पृष्ट ७० थी ७३ ना आधारे]
जेने एवो निश्चय रहे छे के, ‘आ आखो आत्मा ज राग–द्वेषरूप थई गयो’ ते जीवने अज्ञानी कहेवामां आवे
छे. आखा आत्माने राग–द्वेषरूप समजवो ते ज मिथ्यात्व छे अने खरेखर ते ज भवनुं बीज छे. सम्यग्द्रष्टि ज्ञानी
एम समजे छे के मारो आत्मा राग–द्वेषमय थई गयो नथी, आत्मा तो रागरहित मात्र ज्ञानदर्शनस्वरूप छे. मात्र
वर्तमान पर्यायमां राग–द्वेषरूप परिणम्यो छे.
जड कर्म अने आत्मा–ए बंने भेगा थईने रागादिरूपे परिणमता नथी. रागादिभावरूपे चेतन पोते परिणमे
छे. रागादि भाव वखते पण चेतननुं अने कर्मनुं–ए बंनेनुं स्वतंत्र जुदुं जुदुं परिणमन पोत पोताना रूपमां छे. बंने
भेगां थईने एक परिणमन कदी थयुं नथी, अने थई शकतुं ज नथी. ए बे द्रव्यो छे अने तेमनुं परिणमन पण बे रूप
छे, अने सदाय बे रूपे ज रहेशे, कदी ते बंनेनुं एक परिणमन थतुं नथी. आ संबंधी दोहरो नीचे प्रमाणे–
एक कर्म कर्तव्यता करे न कर्ता दोय; दुधा द्रव्य सत्ता सु तो एक भाव कयों होय?
अर्थ–बे द्रव्यो थईने एक काम करे नहि; केमके दरेक द्रव्यनी सत्ता ज जुदी छे, ते एकभाव केम थई शके?
अहीं कोई अज्ञानी एम प्रश्न करशे के द्रव्यमां तो अनंत शक्ति छे, तेमां एक शक्ति एवी पण होय के एक द्रव्य बे
द्रव्योना परिणामने करे; जेम जीव द्रव्य पोताना अशुद्ध चेतनारूप राग–द्वेष–मोह परिणामने पोतामां करे छे तेम
ज्ञानावरणादि कर्मपिंडने पण ते करे. –केम के जीवनी अनंत शक्ति छे, तेनो उत्तर आ प्रमाणे छे–द्रव्यमां अनंत शक्ति छे–
ए वात तो साची, पण द्रव्यनी अनंत शक्तिओमांथी एवी तो कोई पण शक्ति नथी के, जेम द्रव्य पोताना भावोमां रहीने
तेने करे छे तेम ते परद्रव्यना भावोमां रहीने तेने पण करे. पर द्रव्यनुं कांई करी शके एवी ताकात वस्तुस्वभावमां ज नथी.
जे अनंतशक्ति छे ते पोतामां काम करे छे, परमां ते कांई करती नथी. आ संबंधमां श्री समयसारनो कलश नीचे मुजब छे–
नैकस्य हि कर्तारौ द्वौ स्तो द्वे कर्मणी न चैकस्य।
नैकस्य च क्रिये द्वे एकमनेके यतो न स्यात्।।
५४।।
तेनो अर्थ आ प्रमाणे छे.
१.
हि एकस्य द्वौ कर्तारौ न–एटले के खरेखर एक परिणामना बे कर्ता होय नहि. भावार्थ ए छे के, अशुद्ध
चेतनारूप रागद्वेष मोह परिणामनो जेम तेमां रहीने जीव कर्ता छे, तेम पुद्गलद्रव्य पण ते रागद्वेष मोह परिणामनुं कर्ता
छे–एम तो नथी. जीव द्रव्य ज पोताना राग–द्वेष मोह परिणामनुं कर्ता छे, पुद्गलद्रव्य तेनुं कर्ता नथी.
२. एकस्य द्वे कर्मणी न स्त:– एटले के एक द्रव्यनां बे काम होय नहि. एक द्रव्यना बे परिणाम होय नहिं.
भावार्थ ए छे के, जेम रागद्वेषमोहरूप अशुद्ध चेतना परिणामनो तेमां रहीने जीव कर्ता छे, तेम ज्ञानावरणादि अचेतन
कर्मोनो पण जीव कर्ता छे–एम नथी. जीव पोताना ज परिणामनो कर्ता छे, अचेतन परिणामरूप कर्मनो कर्ता नथी.
३. च एकस्य द्वं क्रिये न–एटले के एक द्रव्यनी बे क्रिया पण होती नथी. भावार्थ ए छे के, जीव द्रव्य जेम
चेतन परिणतिरूप परिणमे छे, तेम अचेतन परिणतिरूप पण परिणमे छे–एम नथी; जीव अचेतन क्रिया करे छे,
अचेतन क्रिया करतो नथी.
४. यतः एकं अनेकं न स्यात्–कारण के जे एक द्रव्य छे ते अनेक रूप थतुं नथी. भावार्थ ए छे के, जीव तो एक
चेतनद्रव्यरूप छे. जीव द्रव्य जो अनेकरूप होय (–एटले के ते जडद्रव्यरूप पण होय अने चेतन द्रव्यरूप पण होय) तो,
ज्ञानावरणादि कर्मोनो पण ते कर्ता थाय अने पोताना रागद्वेषमोहरूप अशुद्धचेतन–परिणामनो पण कर्ता थाय! परंतु
एम तो नथी. जीव द्रव्य तो सदाय एक चेतनरूप ज छे; अने ते ते वखतना पोताना चेतनपरिणामने ते करे छे,
अचेतन कर्मोने जीव कदी करतो नथी आवुं वस्तुस्वरूप छे.
अहीं ए बताव्युं के–चेतन पदार्थनुं काम चेतनरूप होय छे, अचेतन पदार्थनुं काम अचेतनरूप होय छे.
चेतनद्रव्य अचेतनपदार्थनी परिणतिने करतुं नथी अने चेतन द्रव्यनी परिणतिने अचेतनपदार्थो करता नथी. जेवी रीते
चेतन अने अचेतन एवी बे परिणतिओने एक चेतनद्रव्य करतुं नथी, तेवी रीते अचेतन अने चेतन एवी बे
परिणतिओने एक अचेतन द्रव्य करतुं नथी. तेमज चेतन अने अचेतन ए बे पदार्थो भेगां थईने पण कोई काम
करतां नथी. जे द्रव्यनुं जे परिणाम होय ते तेमां ज रहे छे. द्रव्यनुं काम द्रव्यथी जुदुं होतुं नथी. शुद्धद्रष्टिथी आ जीव
पोतानी शुद्धवीतरागी परिणतिने ज करे छे. अशुद्धद्रष्टिथी आ जीव राग–द्वेषमोहरूप पोतानी विभावपरिणतिने करे छे.
परंतु ज्ञानावरणादि कर्मने के पुद्गल द्रव्यनी कोई पण परिणतिने तो कोई रीते जीव करतो नथी.
पोतानी वैभाविक शक्तिनी लायकातथी राग–द्वेषरूप परिणमे एवी तो जीवमां ताकात छे, परंतु परद्रव्योने
परिणमावी दे एवी कोई शक्ति जीवमां नथी. जो के राग–द्वेष–मोहरूप परिणामो अशुद्ध छे, तेओ जीवनुं मूळ स्वरूप
नथी, छतां पण ते रागादि अशुद्धभावोनो कर्ता तो अज्ञानभावथी जीव भले हो, परंतु–जडकर्मोने–शरीरनी