Atmadharma magazine - Ank 052
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४७४ : आत्मधर्म : ५३ :
श्री परमात्म – प्रकाश – प्रवचन
श्री परमात्म – प्रकाश उपर परम पूज्य श्री कानजी स्वामीनां व्याख्यानोनो सार: अंक ५१ थी चालु: लेखांक – २
वीर सं. २४७३ द्वि. श्रावण वद ७ रविार
() त् स् र्? : पहेली गाथामां परमात्मानुं जेवुं स्वरूप छे तेवुं जाणीने
नमस्कार कर्या छे, ते मंगळिक छे. जेओ परमात्मा थया तेमने पहेलांं परमात्मपर्याय प्रगट न हती, पण
शक्तिरूप परमात्मस्वभाव हतो; ते स्वभावनी ओळखाण अने ध्यान करीने परमात्मदशा प्रगट करी. ए रीते
निर्दोष शक्ति, निर्दोष उपेय अने तेनो निर्दोष उपाय ए त्रणेनुं ज्ञान करीने परमात्माने नमस्कार कर्या छे.
() ध् स्रू : परमात्मदशानो उपाय ध्यान छे. –एम कह्युं छे, ते ध्यान केवुं छे?
परमात्मस्वभावनी श्रद्धा, तेनुं ज्ञान ने तेमां ज स्थिरता रूप चारित्र ते अभेदरत्नत्रय निर्वकल्प समाधि छे,
तेनाथी वीतरागी परमानंद समरसीभावरूप सुखरसनो स्वाद उत्पन्न थाय छे ते ज ध्याननुं लक्षण छे. कोई
निमित्तनुं लक्ष नहि ने पर्यायनुं पण लक्ष नहि, एकला चैतन्य–समुद्रमां लीन थई जवुं–तेज ध्यान छे.
() ध् ? : ध्यान एटले एकाग्रता; ते ध्यान कोने होय? रागरहित स्वभावनी श्रद्धा–ज्ञान–
चारित्र ते आत्मानुं ध्यान छे, ते ज धर्मध्यान छे, ने ते मुक्तिनुं कारण छे. रागमां एकाग्र थवुं ते आत्मध्यान
छे. ते संसारनुं कारण छे. आत्मस्वभाव समज्या वगर कदी आत्मानुं ध्यान होय ज नहि. सम्यग्द्रष्टिने चोथा
गुणस्थाने पण आत्मानुं ध्यान होय छे. ध्यान साधक जीवोने ज होय छे, केवळीभगवानने ध्यान होतुं नथी
केमके तेमने तो परमात्मदशा प्रगट छे.
() प्र ि : परमात्म स्वभावना ध्यानवडे कर्मकलंकनो नाश करीने सिद्ध
परमात्मदशा थाय छे. हवे अहीं ‘कर्मकलंकनो नाश कर्यो’ ते उपर नय लागु पडे छे. कर्मो बे प्रकारना छे– (१)
भावकर्म (२) द्रव्यकर्म; भावकर्म एटले जीवमां विकार थाय छे ते; अने ज्ञानावरणादि कर्मो ते द्रव्यकर्म छे.
अशुद्धनिश्चयनय एटले शुं? के राग ते विकार छे माटे ‘अशुद्ध’ अने ते स्वनी पर्याय छे माटे निश्चय; तेने
जाणनारुं ज्ञान ते अशुद्धनिश्चयनय छे. कर्मो टाळवानो उपाय तो शुद्धस्वभावनी द्रष्टि छे, अशुद्धनिश्चयनय ते कर्मो
टाळवानो उपाय नथी. भावकर्मो टळ्‌या–एम कोणे जाण्युं?– अशुद्धनिश्चयनये ते जाण्युं छे. आत्मामां मलिनता हती
अने ते टळी ए अशुद्धनिश्चयनयनो विषय छे. अहीं स्व ते निश्चय ने पर ते व्यवहार ए अपेक्षा छे, तेथी रागादि
स्वपर्यायने निश्चयना भेदमां गणी छे. त्रिकाळी शुद्धस्वभाव ते शुद्धनिश्चयनयनो विषय छे, सम्यग्दर्शननो विषय ते
त्रिकाळीस्वभाव छे. पण सम्यग्दर्शन प्रगट्युं ते तो नवी पर्याय छे, ते आत्मानी शुद्धपर्याय छे. आ गाथामां शुद्धपर्याय
प्रगटी तेने नय लागु पाड्यो नथी; आ गाथामां तो त्रिकाळी स्वभावने ज शुद्धनिश्चयनयनो विषय कह्यो छे. पण
ज्यारे त्रिकाळी शुद्धस्वभावने परम शुद्धनिश्चय कहीए त्यारे निर्मळ पर्यायने शुद्धनिश्चयनयनो विषय कहेवाय छे.
अशुद्ध निश्चयनयवडे कर्म बळ्‌यां–एम नथी. पण शुद्ध निश्चयना अवलंबने कर्म बळ्‌यां छे. अहीं तो ‘कर्म
बळ्‌यां’ एम जाणनार क्यो नय छे तेनी वात छे. अशुद्धनिश्चयनय तेने जाणे छे.
प्रश्न:– अशुद्ध निश्चयनयवडे अशुभ टळीने शुभ थाय, एटली तो शुद्धता थाय छे ने?
उत्तर:– ना, शुभराग थाय ते वडे शुद्धता वधती नथी. पण त्रिकाळस्वभाव तरफनी द्रष्टिना जोरपूर्वक जो
अशुभमांथी शुभ थाय तो शुद्धता वधे छे; अने त्यां जेटलो राग टळ्‌यो छे तेटलो अशुद्धनिश्चयनयनो विषय छे.
पण स्वभावना आश्रय वगर अशुभमांथी शुभ करे तो त्यां कांई शुद्धि वधती नथी. ‘भाव कर्म आत्माए
बाळ्‌यां’ एम जाणवुं ते अशुद्धनिश्चयनय छे. आ ग्रंथमां स्व ते
– भलामण –
आत्मधर्म मासिक गुजराती भाषामां पांच वर्षथी प्रगट थाय छे. ए वर्षो दरमियान आत्मधर्ममां अनेक
धार्मिक न्यायोनी विस्तृत छणावट थयेली छे. यथार्थ धर्मनी रुचि धरावता जिज्ञासुओने सहेलाईथी समजाय एवी
सादी अने सरळ भाषामां भगवाननी दिव्य ध्वनिना भावोने आत्मधर्म मासिकमां रजु करवामां आव्या छे. एथी
जेमनी पासे आत्मधर्म मासिक न होय तेओ जरूर मंगावी ले. पहेलां बीजा वर्षनी थोडी ज फाईलो बाकी छे.
आत्मधर्मनी पहेला, बीजा, त्रीजा तथा चोथा वर्षनी बांधेली फाईल दरेकनी किंमत ३ – ४ – ० टपालखर्च माफ
आत्मधर्म कार्यालय – मोटा आंकडिया – काठियावाड