त्यां मूंझावुं नहि.
ओळखे छे? १–त्रिकाळी शुद्धआत्म स्वभाव छे तेने जाणवुं ते परम शुद्ध निश्चयनय छे. २–ते स्वभावनी श्रद्धा–
ज्ञान–स्थिरतारूप मोक्षमार्ग प्रगट्यो तेने जाणे ते एकदेश शुद्धनिश्चयनय छे; पूर्ण मोक्षदशा प्रगटी तेने जाणे ते
कर्मो टळ्यां, एने जाणवुं ते असद्भुत अनुपचरित व्यवहारनय छे.
विषयमां चार प्रकार छे तेम तेने जाणनार ज्ञानमां पण चार प्रकार होय छे–ते ओळखावे छे. समयसारमां पहेली
बार गाथामां अने पंचाध्यायीमां ज्यां नयोनुं वर्णन छे त्यां तो एकला आत्माश्रित ज कथन छे, पर साथे त्यां
जाणे ते अशुद्धनिश्चयनय छे, पण ते ज नय त्रिकाळीवस्तुने जाणतो होय तो त्रिकाळी वस्तु ज अशुद्ध थई जाय.
पण त्रिकाळी वस्तुने जाणनार नय जुदो छे. ए रीते चार पडखां छे ते दरेकने जाणनार नय जुदा छे.
उत्तर:– नहि, आखी वस्तु अशुद्ध थाय ज नहि. आखी वस्तु अशुद्ध थई एम कहेवुं ते उपचारथी छे.
तेथी ते आखी वस्तुने ज अशुद्ध माने छे; एम जाणीने ज्ञानीओ अशुद्ध द्रव्यार्थिकनयथी वस्तु अशुद्ध थई एम
‘नय’ होता नथी.
शास्त्रमांथी नहि जणाय; स्वभावथी ज जणाय तेम छे. शुं त्रिकाळी शक्ति वर्तमानरूपे थई गई छे? त्रिकाळी
अशुद्धपर्याय वखते पण शुद्ध स्वभाव ज छे; ए स्वभाव ईन्द्रियो, शास्त्रथी के गुरुना अवलंबनथी जणाय तेम
नथी, ए स्वभावद्रष्टिनो विषय छे. जीवनो स्वभाव तो ईन्द्रियज्ञानथी जणातो नथी, परंतु पुद्गलनो स्वभाव
पण ईन्द्रियज्ञानथी जणातो नथी. माटे पर्यायमां विकार होवा छतां ते ज वखते, जो ईन्द्रिय अने ईन्द्रियना
विषयभूत पदार्थोनुं लक्ष छोडीने पोताना त्रिकाळी स्वभावने अतीन्द्रिय ज्ञानवडे जुए तो, पोतानो स्वभाव
शुद्ध छे ते अनुभवमां आवे छे.
कमाउ पुत्रने आदरणीय माने छे (३) उडाउ पुत्रने हेय जाणे छे अने (४) नोकरने पर जाणे छे. तेम
आत्मामां– (१) त्रिकाळी शुद्धस्वभाव छे ते पितारूप छे, एक पर्याय थाय तेना जेटलो ते नथी पण त्रिकाळ छे.
(२) निर्मळ मोक्ष–दशा के मोक्षमार्गदशा ते आदरणीय छे. (३) मलिन अवस्था ते टाळवा जेवी छे अने (४)
कर्म पर छे. ते चारे प्रकारने जाणनार ज्ञानमां पण जुदा जुदा चार नय छे. (१) त्रिकाळी स्वभावने जाणे ते
परम शुद्ध निश्चयनय छे. (२) निर्मळ पर्याय ते आत्मा छे एम जाणे ते शुद्धनिश्चयनय छे. (३) रागादि
अशुद्धभाव आत्मामां छे एम जाणे ते अशुद्धनिश्चयनय छे अने (४) कर्म टळ्यां एम जाणे ते अनुपचरित
असद्भुत व्यवहारनय छे.–चालु