Atmadharma magazine - Ank 052
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: ५४ : आत्मधर्म : माह : २४७४ :
निश्चय ने पर ते व्यवहार एवी अपेक्षापूर्वक नयोनुं वर्णन कर्युं छे. तेथी रागादि पर्यायने अशुद्ध निश्चय तरीके
वर्णववामां आव्या छे. नयोना अनेक पडखांनुं ज्ञान ते विशेष निर्मळतानुं कारण छे, माटे घणां पडखां आवे
त्यां मूंझावुं नहि.
(१) त्रिकाळी कारण परमात्मा छे, (२) तेने जाणनार–माननार निर्मळ पर्याय उघडे छे, (३) रागादि
अशुद्धता छे ते टळे छे (४) अने कर्मो एने कारणे टळी गयां–ए बधायने ओळखवा तो पडे ने! तेने कयुं ज्ञान
ओळखे छे? १–त्रिकाळी शुद्धआत्म स्वभाव छे तेने जाणवुं ते परम शुद्ध निश्चयनय छे. २–ते स्वभावनी श्रद्धा–
ज्ञान–स्थिरतारूप मोक्षमार्ग प्रगट्यो तेने जाणे ते एकदेश शुद्धनिश्चयनय छे; पूर्ण मोक्षदशा प्रगटी तेने जाणे ते
शुद्धनिश्चयनय छे. ३–अशुद्धता हती ते टळी गई–एने जाणे ते अशुद्धनिश्चयनय छे अने ४–ध्यानरूपी अग्निवडे
कर्मो टळ्‌यां, एने जाणवुं ते असद्भुत अनुपचरित व्यवहारनय छे.
आखी चीज, निर्मळ अवस्था, मलिन अवस्था अने कर्म वगेरे निमित्तोनो अभाव–एम जे चार प्रकार छे
ते दरेकने जाणनार ज्ञानने जुदुं जुदुं नाम आपवुं पडशे. ए चारेय एक ज नयनो विषय न कहेवाय. जेम
विषयमां चार प्रकार छे तेम तेने जाणनार ज्ञानमां पण चार प्रकार होय छे–ते ओळखावे छे. समयसारमां पहेली
बार गाथामां अने पंचाध्यायीमां ज्यां नयोनुं वर्णन छे त्यां तो एकला आत्माश्रित ज कथन छे, पर साथे त्यां
नय लागु पाड्या ज नथी. अहीं ते अपेक्षा नथी. अहीं स्व–पर बंनेनी अपेक्षाथी नयनुं कथन आवशे.
जे त्रिकाळी द्रव्य छे तेमां अशुद्धता न होय. त्रिकाळी वस्तु बंधाय तो अभाव थाय, ने त्रिकाळी वस्तु
प्रगटे तो नवी उत्पत्ति थाय; माटे त्रिकाळी वस्तुमां बंध–मोक्ष नथी. पण पर्यायमां बंध–मोक्ष छे. अशुद्धताने
जाणे ते अशुद्धनिश्चयनय छे, पण ते ज नय त्रिकाळीवस्तुने जाणतो होय तो त्रिकाळी वस्तु ज अशुद्ध थई जाय.
पण त्रिकाळी वस्तुने जाणनार नय जुदो छे. ए रीते चार पडखां छे ते दरेकने जाणनार नय जुदा छे.
प्रश्न:– वर्तमान एक समय तो आखी वस्तु अशुद्ध थई जाय छे?
उत्तर:– नहि, आखी वस्तु अशुद्ध थाय ज नहि. आखी वस्तु अशुद्ध थई एम कहेवुं ते उपचारथी छे.
केमके अज्ञानी जीव मात्र वर्तमान पर्यायने ज वस्तु तरीके जाणे छे, पण बीजा शुद्ध पडखांने जाणतो ज नथी
तेथी ते आखी वस्तुने ज अशुद्ध माने छे; एम जाणीने ज्ञानीओ अशुद्ध द्रव्यार्थिकनयथी वस्तु अशुद्ध थई एम
कहे छे. अज्ञानी तो आखी वस्तुने अशुद्ध ज माने छे, बीजा शुद्ध पडखांनुं तेने ज्ञान नथी तेथी तेना ज्ञानमां
‘नय’ होता नथी.
पाणी ऊनुं थयुं त्यारे ज द्रव्य–गुण शुद्ध छे, ए शुद्धता ईन्द्रियोवडे नहि जणाय. तेम आत्मामां विकारी
पर्याय होय ते वखते ज द्रव्यगुण स्वभाव शुद्ध छे–ए शुद्धता ईन्द्रियोवडे नहि जणाय. बीजी रीते कहीए तो
शास्त्रमांथी नहि जणाय; स्वभावथी ज जणाय तेम छे. शुं त्रिकाळी शक्ति वर्तमानरूपे थई गई छे? त्रिकाळी
जो वर्तमानरूप थई जाय तो बीजा समये पर्याय क्यांथी आवे? माटे वस्तुनी शक्ति त्रणे काळ शुद्ध छे.
अशुद्धपर्याय वखते पण शुद्ध स्वभाव ज छे; ए स्वभाव ईन्द्रियो, शास्त्रथी के गुरुना अवलंबनथी जणाय तेम
नथी, ए स्वभावद्रष्टिनो विषय छे. जीवनो स्वभाव तो ईन्द्रियज्ञानथी जणातो नथी, परंतु पुद्गलनो स्वभाव
पण ईन्द्रियज्ञानथी जणातो नथी. माटे पर्यायमां विकार होवा छतां ते ज वखते, जो ईन्द्रिय अने ईन्द्रियना
विषयभूत पदार्थोनुं लक्ष छोडीने पोताना त्रिकाळी स्वभावने अतीन्द्रिय ज्ञानवडे जुए तो, पोतानो स्वभाव
शुद्ध छे ते अनुभवमां आवे छे.
जेम (१) पोते पिता होय (२) एक कमाउ पुत्र होय, (३) एक उडाउ खराब पुत्र होय अने (४)
घरमां एक नोकर रहेतो होय तो ते दरेकने जुदाजुदा जाणे छे. (१) हुं ज पुत्र छुं एम नथी मानतो, (२)
कमाउ पुत्रने आदरणीय माने छे (३) उडाउ पुत्रने हेय जाणे छे अने (४) नोकरने पर जाणे छे. तेम
आत्मामां– (१) त्रिकाळी शुद्धस्वभाव छे ते पितारूप छे, एक पर्याय थाय तेना जेटलो ते नथी पण त्रिकाळ छे.
(२) निर्मळ मोक्ष–दशा के मोक्षमार्गदशा ते आदरणीय छे. (३) मलिन अवस्था ते टाळवा जेवी छे अने (४)
कर्म पर छे. ते चारे प्रकारने जाणनार ज्ञानमां पण जुदा जुदा चार नय छे. (१) त्रिकाळी स्वभावने जाणे ते
परम शुद्ध निश्चयनय छे. (२) निर्मळ पर्याय ते आत्मा छे एम जाणे ते शुद्धनिश्चयनय छे. (३) रागादि
अशुद्धभाव आत्मामां छे एम जाणे ते अशुद्धनिश्चयनय छे अने (४) कर्म टळ्‌यां एम जाणे ते अनुपचरित
असद्भुत व्यवहारनय छे.–चालु