Atmadharma magazine - Ank 052
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: माह : २४७४ : आत्मधर्म : ५५ :
ज्ञान अने सुखरूपे आत्मा पोते ज थाय छे, तेने
ईन्द्रियोनी अपेक्षा नथी.
वर स. २४७२: करतक सद १ न दवस श्र प्रवचनसर गथ १९ उपर परम पज्य
श्री कानजी स्वामीनुं मंगळ – प्रवचन
(१) सुप्रभातनां सबरस
प्रक्षीणघातिकर्म, अनहदवीर्य, अधिकप्रकाश ने ईन्द्रिय–अतीत थयेल आत्मा ज्ञानसौख्ये परिणमे. १९.
आ वर्षे सुप्रभातना मांगळिक तरीके आ गाथा आवी छे. घणीवार पद्मनंदीशास्त्रमांथी ‘सुप्रभात–
अष्टक’ ना श्लोक वंचाय छे. पण आ वखते कुदरते आ सुंदर गाथा मांगळिक तरीके आवी छे. केवळज्ञान ते ज
सुप्रभात छे. जे आत्माओने केवळज्ञान प्रगट्युं होय तेमने स्वभावथी ज ज्ञान अने सुखरूप परिणमन होय
छे, –एनुं वर्णन करीने श्री कुंदकुंदाचार्यदेव पोते आ गाथामां केवळज्ञानरूपी सुप्रभातना गाणां गाय छे.
शुद्ध उपयोगना प्रभावथी अनादिकाळना आत्माना संसारनो नाश करीने जे पवित्र केवळज्ञान अने
सिद्धदशा प्रगटी ते आत्मानुं सुप्रभात छे, ते आगामी अनंतकाळ रहेशे.
आजे बेसता वर्षना प्रभातमां लोको ‘सबरस’ ने संभारे छे. लोको तो मीठांने (नीमकने) सबरस
माने छे परंतु ए तो खारुं छे, ए खरेखर सबरस नथी, केवळज्ञान अने पूर्णआनंदरूप जे आत्मदशा ते ज
‘सब–रस’ छे. जेम मीठुं दरेक रसोईमां प्रवेशीने तेने स्वादिष्ट बनावे छे तेथी लोको तेने सबरस कहे छे; तेम
आत्मानुं केवळज्ञान प्रगट थतां बधी ज वस्तुमां अंतर्गत थईने ज्ञान तेने जाणी ले छे अने ते ज्ञान
अनाकुळतारूप आनंदरसथी भरेलुं छे, तेथी खरेखर ते ज सबरस छे. जेम मीठुं बधी वस्तुमां प्रवेशीने तेने
स्वादवाळी बनावे छे तेम ज्ञान बधी वस्तुओथी जुदुं रहेवा छतां, जाणे के ते वस्तुमां प्रवेशी गयुं होय तेम सर्वे
वस्तुना स्वरूपनो पार पामी जाय छे. अने जेम मीठुं रस आपे छे तेम केवळज्ञान पोते आनंदरूप छे. ए रीते,
बधाने जाणे छे माटे सब अने आनंद सहित छे माटे रस–एम केवळज्ञान पोते सबरस छे. एवा आत्मिक
सबरसने यथार्थ जाणवुं–मानवुं ते मंगळ छे. बेसता वर्षना मंगळ प्रभाते खरी रीते ते ज सबरसनुं
(आत्माना ज्ञान–आनंद स्वभावनुं) स्मरण–ज्ञान–ध्यान करवुं जोईए. एवा निर्मळ ज्ञान ने आनंदरूप जे
आत्मदशा ते ज साचुं सुप्रभात छे. आ कारतक सुद १ नी तिथि तो अनंत आवी अने चाली गई, परंतु
तेनाथी आत्मानुं कांई हित थयुं नथी. माटे खरेखर दिवस ते सुप्रभात नथी पण आत्मानो पवित्र भाव ते ज
सुप्रभात छे; के जे सुप्रभात प्रगटवाथी आत्मामां सुख–आनंद प्रगटे छे, अने जे कदी अस्त पामतुं नथी. एवा
सुप्रभातनुं वर्णन श्री कुंदकुंदभगवाने आ गाथामां कर्युं छे.
आसो वद अमासना दिवसे श्री वर्द्धमानप्रभु सिद्ध थया, ने गौतमस्वामी केवळज्ञान पामी अरिहंत
थया. केवळज्ञान थतां तेमनुं ज्ञान लोकालोकना बधा ज पदार्थोनो अंत पामी गयुं–बधाने जाणी लीधा, अने
आत्मानो परिपूर्ण स्वाभाविक आनंद प्रगट थयो, ए रीते तेमने ‘सब–रस’ नी प्राप्ति थई. एवा सबरसनी
प्राप्तिनी भावनाथी आजे पण भव्य जीवो प्रभातमां तेनुं स्मरण करे छे. प्रभातमां एटले के आत्मानी दशामां;
जे अज्ञानरूपी अंधारी रात छे तेने ज्ञानप्रकाशवडे दूर करवी ते ज साचुं प्रभात छे. परिपूर्ण ज्ञानवडे बधाने
जाणनार अने आनंद रसथी भरपूर एवा आत्मस्वभावरूपी सबरसनी, पोताना ज्ञानप्रकाशरूपी सुप्रभातमां
प्रतीत करवी ते ज मंगळ प्रभात छे. ‘हुं आत्मा परिपूर्ण ज्ञान–आनंद स्वरूप छुं, मारा स्वभावमांथी
शुद्धोपयोगरूपी कार्यनी ज उत्पत्ति थाय छे’ एम पोताना शुद्धोपयोगस्वभावनी श्रद्धा अने अंतर–आचरणद्वारा
केवळज्ञान प्रगट थाय छे, ते ज सुप्रभातमांगळिक छे. पहेलांं आवी श्रद्धा करवी ते पण मंगळस्वरूप छे. कारतक
सुद एकमनो सूर्य तो अनंत वखत ऊग्यो, पण एना उदयथी आत्मानुं हित थतुं नथी, अने ए तो पाछो अस्त
थई जाय छे. अने शद्धोपयोगवडे आत्मस्वभावमांथी जे चैतन्य प्रकाश प्रगट्यो– (केवळज्ञानरूपी सूर्य
प्रगट्यो) ते परिपूर्ण आनंदस्वरूप छे अने तेनो कदी अंत आवतो नथी. एवुं जे आत्मामां नवुं वर्ष बेठुं ते
सादि–अनंत छे, ए ज साचो मंगळमहोत्सव छे.