Atmadharma magazine - Ank 052
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 17

background image
: ५६ : आत्मधर्म : माह : २४७४ :
() त्र क्ष त्र : आ कुंदकुंद प्रभुश्रीनी मंगळगाथा ते केवळज्ञानरूपी सुप्रभात प्रगटवाना
मंत्रो छे. आ पुस्तकमां (–व्याख्यानमां जे शास्त्र वंचाय छे तेमां) आ ओगणीसमी गाथा सोनेरी छे. श्रीकुंदकुंद
मुनिने पवित्र चारित्रदशा वर्ती रही छे. ए चारित्रदशाना अंतरअनुभवने आ गाथाओमां ऊतार्यो छे.
लगभग बे हजार वर्षो पहेलांं तेओश्रीए जे अक्षरो वडे रचना करी छे ते ज अक्षरो आजे कायम छे. एमना
अंतरमांथी जे शब्दो नीकळ्‌या हता ते ज मूळ शब्दो आजे वंचाय छे. शब्दो लखवानो वळांक भले जुदो होय,
परंतु शब्दोनो ध्वनि अने उच्चार तो जे श्री कुंदकुंद भगवान वखते हतो ते ज छे. आ शब्दो नथी पण
केवळज्ञान माटेना मंत्रो छे; विकल्प ऊठतां ज्ञातापणे ते शब्दोनी रचना थई छे, तेनो वाच्यभाव तेओश्रीना
अंतरमां हतो. आ ३७ अक्षरना महामंत्रमां शुं भाव भरेला छे ते जुओ:–
मूळमंत्र
पक्खीणधादिकम्मो अणंतवरवीरिओ अधिक तेजो।
जादो अदिं दिओ सो णाणं सोक्खं च परिणमदि।।
१९।।
सोळमी गाथामां कह्युं हतुं के शुद्धोपयोगनी भावनाना प्रभावथी आत्मा पोते स्वभावने पामेलो, सर्वज्ञ
अने त्रण लोकना अधिपतिओथी पूजित स्वयमेव थयो होवाथी ते ‘स्वयंभू’ छे–एम जिनेन्द्रदेवे कह्युं छे.
ए रीते शुद्धोपयोगना प्रभावथी स्वयंभू थयेला आ आत्माने ईन्द्रियो विना कई रीते ज्ञान अने आनंद
होय ते आ गाथामां बताव्युं छे; तेनुं गुजराती–हरिगीत नीचे मुजब छे–
प्रक्षीणघातिकर्म, अनहदवीर्य, अधिकप्रकाश ने
ईन्द्रिय–अतीत थयेला आत्मा ज्ञानसौख्येपरिणमे. १९.
अर्थ:– जेनां घातिकर्मो क्षय पाम्यां छे, जे अतीन्द्रिय थयो छे, अनंत जेनुं उत्तम वीर्य छे अने अधिक (–
उत्कृष्ट) जेनुं (केवळज्ञान अने केवळदर्शनरूप) तेज छे एवो ते (–स्वयंभू आत्मा) ज्ञान अने सुखरूपे परिणमे छे.
() त् स् ज्ञ . : आजना मांगळिक तरीके स्वाभाविकज्ञान अने स्वाभाविक
आनंदनी वात आवी छे. केवळी भगवानना जेवो ज बधा आत्मानो स्वभाव छे. केवळीभगवाननी जेम बधा
आत्मानो स्वभाव समजवो.
कोई एम कहे के शरीर, ईन्द्रियो वगेरे पदार्थो वगर आत्माने ज्ञान अने आनंद कई रीते प्रगटे?
सिद्धभगवानने शरीर अने ईन्द्रियो वगर आत्मानो आनंद अने ज्ञान केवी रीते होई शके? तेनुं समाधान
श्रीआचार्यदेव करे छे के–शरीर अने ईन्द्रियो कोई पण जीवने ज्ञान के सुखनुं कारण नथी. परंतु जीव पोते ज
ज्ञान अने आनंदस्वरूप छे. संसारी जीवोने जे ईन्द्रियजनित ज्ञान अने सुख छे ते ज्ञान अने सुखरूपे कांई
शरीर के ईन्द्रियो परिणमती नथी, पण शरीरादिना लक्षे ते जीव पोते ज कल्पित सुख अने ज्ञानरूपे परिणमे छे.
जे जीवो–शरीर अने ईन्द्रियोनुं लक्ष छोडीने शुद्ध उपयोगना प्रभावथी अतीन्द्रिय थया छे तेओ पोते स्वयमेव
ज्ञान अने आनंदरूपे परिणमे छे, तेमने ज्ञान अने आनंद माटे कोई अन्य पदार्थनी जरूर नथी. कोईपण
आत्मानुं ज्ञान के सुख पर पदार्थोमांथी आवतुं नथी, पण पोताना स्वभावना भानपूर्वक शुद्धोपयोगना
प्रभावथी आत्मा पोते ज ज्ञान–आनंद स्वरूप थई जाय छे. –ए ज सुमंगळप्रभात छे.
() त्र प्र प्र : अनादिथी आत्मामां मिथ्यात्वरूपी रात्रिनो अंधकार छवायो हतो, आत्माना
शुद्धोपयोगना बळे सम्यग्दर्शनरूपी प्रकाश प्रगट करतां अनादिना मिथ्यात्वरूप अंधकारनो नाश थयो अने
आत्मामां सुप्रभात प्रगट्युं. आ पहेलां प्रकारनुं (जघन्य) सुप्रभात छे. त्यार पछी ते ज शुद्धोपयोगना बळे
स्वरूपमां लीनता करतां सम्यक्चारित्ररूप सुप्रभात प्रगट्युं, अने अव्रतरूप (शुभ–अशुभ भावरूप)
अंधकारनो नाश थयो. आ बीजा प्रकारनुं (मध्यम) सुप्रभात छे. त्यारपछी संपूर्ण शुद्धोपयोगना प्रभावथी
वीतरागता थईने घातिकर्मो नष्ट थयां एने आत्मामां केवळज्ञानादि स्व चतुष्टयनो परिपूर्ण प्रकाश थयो. आ
संपूर्ण (उत्कृष्ट) सुप्रभात छे. अने त्यां आत्मा पोते स्वयमेव अतीन्द्रिय ज्ञान अने सुखरूप थाय छे. अहीं
मांगळिक तरीके एवा संपूर्ण सुप्रभातनी वात छे.
() िन्द्र ि त् ज्ञ . : केवळज्ञान दशामां आत्मा पोते अतीन्द्रिय
सुख अने अतीन्द्रिय ज्ञानरूपे परिणमे छे, ज्ञान अने सुख पोतानो स्वभाव ज छे. जे पोतानो स्वभाव छे ते रूपे
आत्मा पोते परिणमी गयो. तेथी पोते जे ज्ञान अने सुखरूपे थयो ते पोताथी कदी दूर थाय नहि, अने तेने माटे