मुनिने पवित्र चारित्रदशा वर्ती रही छे. ए चारित्रदशाना अंतरअनुभवने आ गाथाओमां ऊतार्यो छे.
लगभग बे हजार वर्षो पहेलांं तेओश्रीए जे अक्षरो वडे रचना करी छे ते ज अक्षरो आजे कायम छे. एमना
अंतरमांथी जे शब्दो नीकळ्या हता ते ज मूळ शब्दो आजे वंचाय छे. शब्दो लखवानो वळांक भले जुदो होय,
परंतु शब्दोनो ध्वनि अने उच्चार तो जे श्री कुंदकुंद भगवान वखते हतो ते ज छे. आ शब्दो नथी पण
केवळज्ञान माटेना मंत्रो छे; विकल्प ऊठतां ज्ञातापणे ते शब्दोनी रचना थई छे, तेनो वाच्यभाव तेओश्रीना
अंतरमां हतो. आ ३७ अक्षरना महामंत्रमां शुं भाव भरेला छे ते जुओ:–
जादो अदिं दिओ सो णाणं सोक्खं च परिणमदि।।
ईन्द्रिय–अतीत थयेला आत्मा ज्ञानसौख्येपरिणमे. १९.
आत्मानो स्वभाव समजवो.
श्रीआचार्यदेव करे छे के–शरीर अने ईन्द्रियो कोई पण जीवने ज्ञान के सुखनुं कारण नथी. परंतु जीव पोते ज
ज्ञान अने आनंदस्वरूप छे. संसारी जीवोने जे ईन्द्रियजनित ज्ञान अने सुख छे ते ज्ञान अने सुखरूपे कांई
शरीर के ईन्द्रियो परिणमती नथी, पण शरीरादिना लक्षे ते जीव पोते ज कल्पित सुख अने ज्ञानरूपे परिणमे छे.
जे जीवो–शरीर अने ईन्द्रियोनुं लक्ष छोडीने शुद्ध उपयोगना प्रभावथी अतीन्द्रिय थया छे तेओ पोते स्वयमेव
ज्ञान अने आनंदरूपे परिणमे छे, तेमने ज्ञान अने आनंद माटे कोई अन्य पदार्थनी जरूर नथी. कोईपण
आत्मानुं ज्ञान के सुख पर पदार्थोमांथी आवतुं नथी, पण पोताना स्वभावना भानपूर्वक शुद्धोपयोगना
प्रभावथी आत्मा पोते ज ज्ञान–आनंद स्वरूप थई जाय छे. –ए ज सुमंगळप्रभात छे.
आत्मामां सुप्रभात प्रगट्युं. आ पहेलां प्रकारनुं (जघन्य) सुप्रभात छे. त्यार पछी ते ज शुद्धोपयोगना बळे
स्वरूपमां लीनता करतां सम्यक्चारित्ररूप सुप्रभात प्रगट्युं, अने अव्रतरूप (शुभ–अशुभ भावरूप)
अंधकारनो नाश थयो. आ बीजा प्रकारनुं (मध्यम) सुप्रभात छे. त्यारपछी संपूर्ण शुद्धोपयोगना प्रभावथी
वीतरागता थईने घातिकर्मो नष्ट थयां एने आत्मामां केवळज्ञानादि स्व चतुष्टयनो परिपूर्ण प्रकाश थयो. आ
मांगळिक तरीके एवा संपूर्ण सुप्रभातनी वात छे.
आत्मा पोते परिणमी गयो. तेथी पोते जे ज्ञान अने सुखरूपे थयो ते पोताथी कदी दूर थाय नहि, अने तेने माटे