Atmadharma magazine - Ank 053
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: ७४ : आत्मधर्म : फागण : २४७४ :
अधूरीदशाने अल्पकाळमां पूर्णताए पहोंचाडवानो छुं. हुं भगवान थवानो छुं पण रागवाळो थवानो नथी.
ज्ञानी सम्यग्द्रष्टि तो आत्मस्वभावपणे ज रहे छे. आ रीते स्वभावनो आदर अने विकारनो निषेध–एवुं जे
भेदज्ञान ते ज मुक्तिनो उपाय छे.
(८) अज्ञानी जीवोने भेदज्ञान करवा माटेनो उपदेश
ज्ञानीओ सदाय पोताने रागथी भिन्न स्वभावपणे अनुभवे छे, पण विकारपणे के विकारना फळपणे
ज्ञानीओ पोताने कदी अनुभवता नथी. जेमने स्वभावनुं भान नथी एवा अज्ञानीओ पोताने रागना अने
जडना स्वामी माने छे, तेथी तेओ विकारने ज अनुभवे छे पण स्वभावने अनुभवता नथी. अहीं
आचार्यभगवान एवा जीवोने कहे छे के– ज्ञाताद्रष्टा शक्ति ते ज तुं छो, राग तुं नथी पण ज्ञान ज तुं छो, ज्ञान
ने आत्मा एकमेक छे पण राग साथे तारे एकपणुं नथी, माटे तारी भेदज्ञान शक्ति प्रगट करीने तुं तारा
चेतकस्वभावने अनुभव. मारो स्वभाव ‘चेतक’ छे पण राग नथी, माटे हुं सदा चेतक–ज्ञाताद्रष्टा–पणे ज
रहीश, पण विकारपणे नहि थाउं. आम, विकारने अने स्वभावने जुदापणे जाणीने, पूरा ज्ञाताद्रष्टापणे ज रही
जवुं अने विकारपणे न थवुं ते ज मोक्ष छे.
(९) पुण्य अनंतवार कर्या छे, पण साची समजण एकेय वार करी नथी: पुण्य कर्तव्य नथी पण साची
समजण ज कर्तव्य छे.
साची समजण ते ज मोक्षनो उपाय छे, पुण्य ते मोक्षनो उपाय नथी एम धर्मनुं साचुं स्वरूप सांभळीने
घणा अज्ञानी जीवो कहे छे के, ‘पहेलांं पुण्य करीने देवलोकमां तो जवा दो, मोक्ष अत्यारे क्यां छे? पंचमकाळे मोक्ष
तो छे नहि, मफतना शामाटे समजवानी वात करी करीने पुण्यथीये रखडावी मारो छो? अत्यारे मानवभव
पाम्या छीए तो निरांते पुण्य करी लईए, पछी सत् समजशुं. पुण्य करतां करतां क्यारेक सत् समजाई जशे.’
ज्ञानी तेने कहे छे के–अरे भाई, भाई! पुण्यनी होंश करी करीने, तुं मांड मांड मळेलो आ मनुष्यभव
हारी जवानो छे. सत्य समजणरूपी दोरो परोव्या वगर तारी सोय (तारो आत्मा) चोराशीना ऊकरडामां
क्यांय खोवाई जशे. अने जो साची समजणरूपी दोरो परोवी लईश तो गमे त्यां जतां पण तारी सोय खोवाशे
नहि. अनंत संसारमां रखडतां तें पुण्य तो अनंतवार कर्यां छे पण आत्मा शुं? तेनी साची समजण एकेय वार
नथी करी. आ मानवभवमां समजवानी ना पाडी तो बीजे क्यां जईने समजीश? पुण्य वडे आत्मानी समजण
थवानी नथी, अने भवनो अंत आववानो नथी. माटे आ पंचमकाळे पण आत्मानी समजण ए ज कर्तव्य छे,
ए ज धर्म छे, अने ए अत्यारे पण थई शके छे.
अत्यारे पुण्य करीने अहींथी देव थशुं अने पछी सीमंधर भगवान पासे जईने समजशुं अने मोक्ष जशुं–
एम कहे छे, पण अरे भाई, जो तने धर्मनी रुचि खरेखर होय तो अत्यारे अहीं ज धर्म समजी लेने! तारो
भगवान तो तारामां अत्यारे विद्यमान छे, तारो पुण्य–पाप रहित पूर्ण स्वभाव छे ते ज भगवान छे, अहीं
तेनी श्रद्धा करवानी तो ना पाडे छे तो देवना भवमां संयोगमां गूंचवाईने भगवान पासे जईश ज शेनो? अने
कदाच जईश तो भगवान पासे जईने पण तुं शुं करवानो हतो? ‘सीमंधर’ एटले पोताना स्वरूपनी मर्यादाने
धारी राखनार. तुं तारा स्वभावनी मर्यादाने धारी राखनार छो, तारे तारा रागरहित चैतन्य स्वरूपनी श्रद्धा
करवी ते ज परमार्थे सीमंधर भगवाननो भेटो छे. सीमंधर भगवान पण स्वभावनो ज उपदेश करे छे. अहींथी
ज स्वभावनो नकार करीने अने पुण्यनो आदर करीने मिथ्यात्वभावने पोषतो जाय छे तो त्यां जईने तने सत्
स्वभाव सांभळवानो अवकाश ज क्यांथी रहेशे?
(१०) पुण्य करतां करतां धर्म थाय के नहि?
केटलुं झेर भेगुं करवाथी अमृत थाय? लाखगणुं करो के अनंतगणुं करो पण झेरना सरवाळाथी अमृत न
ज आवे. तेम पुण्य गमे तेटलुं भेगुं करो पण धर्म न थाय. केम के पुण्य तो विकार छे ने स्वभाव तो अविकार छे,
विकारना गुणाकारथी स्वभावनी प्राप्ति न थाय. एटले के पुण्य करतां करतां कोई काळे धर्म थाय नहि.
(११) आत्मामां शुं वधारवुं ने शुं बाद करवुं?
जेवो पोतानो गुण छे तेवो ओळखीने ते गुणना आकारे पोतानी परिणति करे तो ते साचो गुणांकार छे.
अने जे पुण्य पापना परिणाम थाय छे ते बधायने आत्मामांथी बाद करीने एकलो स्वभाव बाकी राखवो ते साची
बादबाकी छे. गुणनी वृद्धि अने दोषनी हानि करतां करतां जेवो छे तेवो पूरो स्वभाव रही गयो अने दोष टळी
गया तेनुं नाम मोक्ष छे. जेणे पहेलांं भेदज्ञान वडे गुण–दोषने जाण्यां होय एटले के स्वभाव अने विकारने जुदा