Atmadharma magazine - Ank 053
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४७४ : आत्मधर्म : ७५ :
ओळख्यां होय ते जीव गुणनाअंशनी वृद्धि अने रागनी हानि करीने पूर्णता प्रगट करे छे. पण जेणे गुण–दोष
जुदा स्वरूपे ओळख्या नथी तेने तो आत्मा साथे कोनो गुणाकार करवो ने कोने बाद करवुं–एनुं ज भान नथी.
(१२) ज्ञानीओए भेदज्ञानने ज मोक्षनो उपाय जाण्यो छे
अहीं आचार्यभगवान महान कृपा करीने कहे छे के–बीजी बधी वात काढी नांख अने कबुल कर के
ज्ञाताद्रष्टाभाव ज हुं छुं, ने रागनो अंश पण मारो नथी. एकवार पण प्रज्ञाछीणी वडे बे कटका करीने, रागथी
जुदापणानो अनुभव कर्या पछी जे कोई रागनी वृत्ति आवे ते बधी ज्ञाताद्रष्टाबुद्धिनी भूमिकामां पुरुषार्थनी
नबळाईथी आवे छे पण कर्ताबुद्धिए नहि. माटे तुं भेदज्ञानवडे भिन्न चेतनने पकडीने तेमां ज लीन था. ए ज
मुक्तिनो उपाय छे. बंधनना नाशनो अने मोक्षनी प्राप्तिनो उपाय ए भेदज्ञान ज ज्ञानीओए जाण्यो छे.
(१३) जाणवानुं काम करनार पर्याय छे, गुण नथी.
भेद ज्ञान ते पर्याय छे, गुण नथी. जाणवानुं काम पर्याय करे छे, गुण पोते जाणवानुं काम करे नहि.
गुणनुं परिणमन क्षणे क्षणे थया करे छे एटले के गुणनी वर्तमान हालत पलटाया करे छे. पलटाती हालत तो
त्रिकाळी गुणने जाणे पण आखो गुण छे ते पर्यायने जाणे नहि. आखो गुण तो बधा जीवोने छे, पण जे
जीवोए तेनी ओळखाण करीने पर्यायमां जेटलुं ज्ञानसामर्थ्य प्रगट कर्युं तेटलुं जाणवानुं काम करे छे. अवस्था
पोते अधूरा सामर्थ्यवाळी होय छतां ते पोते परिपूर्ण गुणने जाणे छे. वर्तमान वर्ती रहेलो अंश त्रिकाळमांथी
आवे छे अने ते वर्तमान अंश त्रिकाळ पूर्ण स्वभावने कबुले छे–एम अहीं बताववुं छे. वर्तमान अंश तो दरेक
जीवने प्रगट छे, ते अंशद्वारा ज कार्य थाय छे. ते अंश जो अंतरमुख थईने त्रिकाळी स्वभावने कबुले तो तेना
अवलंबने पर्यायमां वृद्धि थईने पूर्णता प्रगटे छे;–ए ज मोक्ष छे, अने ते अंश जो बहिरमुख थईने पोताने
विकारीपणे ज कबुले तो पर्यायमां विकार ज थया करे छे. ए ज संसार छे.
(१४) पर्यायनुं कारण द्रव्य छे, तेना अवलंबने मुक्ति प्रगटे छे.
अवस्था पोते अंश छे, कार्य छे, वर्तमान पुरतो भाव छे. अंश पूर्णता वगरनो न होय, कार्य कारण
वगरनुं न होय अने वर्तमान, त्रिकाळी वगर होय नहि. अवस्थारूपी कार्य क्या कारणमांथी आवे छे? वर्तमान
पुरता कारणमांथी आवे छे के त्रिकाळी कारणमांथी आवे छे? त्रिकाळी द्रव्यस्वभाव ज त्रणे काळना पर्यायनुं
कारण छे. अहीं पर्यायनुं कारण त्रिकाळी द्रव्यने कह्युं छे केमके त्रिकाळी द्रव्यनुं परिणमन थईने ज पर्याय प्रगटे
छे. परंतु, पर्यायमां जे राग–द्वेष–अज्ञानरूप भावो होय ते विकारभावोनुं कारण कांई त्रिकाळीद्रव्य नथी, पण ते
पर्याय पोते परसन्मुख थईने विकारी परिणमे छे. पोतानो पर्याय प्रगटवा माटे कोई पर कारणनी अपेक्षा नथी
पण स्वभावमांथी ज प्रगटे छे,–एम समजीने जो पर्यायमां पोताना त्रिकाळी कारणस्वभावनुं अवलंबन ल्ये तो
पर्यायनी कार्यशक्ति पूरी प्रगटे छे. स्वद्रव्यना अवलंबनथी मुक्ति छे, ने परद्रव्यना अवलंबनथी बंधन छे.
(१५) ज्ञान पोतानुं छे, राग पोतानो नथी
स्वद्रव्य तो ज्ञानमय छे, राग पण पर द्रव्य छे. ज्ञान अने राग खरेखर एकमेक थईने वर्तता नथी, पण
जुदा वर्ते छे. ज्ञान रागने करतुं नथी पण जाणे छे. कोई पर जीव मरे के बचे तेने ज्ञान जाणे छे, पण ज्ञान
कोईने मारी के बचावी शकतुं नथी. पहेलांं पर साथे संबंध मानीने तीव्र राग–द्वेष करतो होय, पछी एम
भावना थाय के अहो, मारे पर साथे शुं संबंध छे, मारा राग द्वेष मने ज दुःखदायक छे;– एथी राग–द्वेष ओछा
कर्यां पहेलांं घणा राग द्वेष हता अने हवे ओछा राग–द्वेष छे–एम बंनेने ज्ञान जाणे छे. पहेलांंना रागद्वेष टळी
गया छे पण तेनुं ज्ञान टळी गयुं नथी. केम के रागद्वेष पोतानां नथी ने ज्ञान पोतानुं छे.
(१६) ज्ञानमां राग नथी, ने रागमां ज्ञान नथी.
ज्यारे तीव्र राग हतो त्यारे पण ज्ञान तेनाथी जुदुं हतुं अने मंद राग वखते पण ज्ञान तेनाथी जुदुं छे.
बंने पर्यायो वखते ज्ञान जाणनारपणे सळंग रह्युं छे. अने जाणवानुं कार्य ज्ञाने पोते ज परिणमीने कर्युं छे.
‘आ राग–द्वेष छे’ एम जाणवानी ताकात राग–द्वेषमां नथी पण ज्ञाननी ताकातथी ज ते जणाय छे. पहेलांं तीव्र
राग–द्वेषने जाणवारूप ज्ञानपर्याय हतो, पछी मंद राग–द्वेषने जाणवारूप ज्ञान–पर्याय थयो, ए रीते ज्ञान पोते
परिणमी परिणमीने जाणे छे. जुओ, सामे राग–द्वेष घटवा मांडया छतां अहीं ज्ञान तो विशेष खीलवा मांड्युं.
अने ज्ञान वध्युं