Atmadharma magazine - Ank 053
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: फागण : २४७४ : आत्मधर्म : ७९ :
चित्रो
भगवान श्री कुन्दकुन्द प्रवचनमंडपनी दीवालो पर २९ सुंदर चित्रो छे, जे जोतां महा पवित्र संतोना स्मरण
थाय छे अने ज्ञान – ध्यान – भक्ति – वैराग्य ने अडोलताना पुरुषार्थप्रेरक द्रश्यो जोई जोईने जिज्ञासुनो आत्मा डोली
ऊठे छे. ते चित्रोनी टूंकी विगत अहीं आपवामां आवी छे.
१. भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेव वनमां ताडपत्र उपर समयसारशास्त्र लखे छे.
२. परमपूज्य परमोपकारी सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामी.
३. श्री धरसेन आचार्यदेव श्री पुष्पदंत तथा भूतबलि नामना मुनिवरोने षट्खंडागमनुं ज्ञान आपे छे. (आचार्य
देवनुं स्वप्न तथा मुनिओनी मंत्र–साधनानो पण देखाव छे.)
४. श्री श्रेयांसकुमार मुनिदशामां वर्तता श्री ऋषभदेव भगवानने पडगाहन करीने नवधाभक्तिपूर्वक ईक्षुरसनुं
आहारदान दे छे.
५. शाश्वततीर्थ श्री सम्मेद शिखरजी.
६. श्री नेमनाथ भगवाननीलग्न यात्रा अने दीक्षा प्रसंग.
७. श्री सीमंधर भगवाननां माताजीने आवतां १६ स्वप्न तथा गर्भकल्याणक–प्रसंगे ईन्द्र, ईन्द्राणी वगेरे दिव्य
वस्त्राभूषणथी माता पितानुं पूजन करे छे ते द्रश्य.
८. श्री सीमंधर भगवाननां जन्मकल्याणक प्रसंगे ईन्द्रो ऐरावत हाथी उपर बेसी भगवानने हाथमां तेडी मेरु उपर
जई जन्माभिषेक करावे छे.
९. श्री सीमंधर भगवाननो दीक्षाकल्याणक प्रसंग
१०. श्री सीमंधर भगवाननो केवळ–कल्याणक प्रसंग.
११. चेलणा राणी श्रीयशोधर मुनि राजनो उपसर्ग दूर करे छे अने श्रेणीक राजा जैन धर्मना श्रद्धाळु बने छे.
१२. लंका जीती सीताजीने पाछां मेळवीने तुरत ज श्रीशांतिनाथ भगवानना मंदिरमां रामचंद्रजी, सीताजी, लक्ष्मण,
विशल्या हनुमान, सुग्रीव अने भामंडळ महा भक्तिपूर्वक, वाजींत्रो साथे भगवाननी स्तुति करे छे.
१३. स्मशानमां ध्यानस्थ सुदर्शन शेठने दासी मारफत तेडी मंगावी, पोतानी दुष्ट मागणीमां न फावतां, अभयाराणी
आळ मूके छे; राजानी आज्ञाथी शिरच्छेद करवा जतां तरवार चालती नथी अने शेठ दीक्षित थाय छे.
१४. सुकौशलना पिता कीर्तिधरमुनिने आहार लेवा नगरमां आवता देखीने सुकौशलनी माता सहदेवी ते मुनिने नगर
बहार कढावी मूके छे; मुनि नगर बहार जई ध्यानमां बेसे छे. रूदन करती धावमाता पासेथी मुनिनी विगत सांभळी
सुकौशलकुमार ते मुनि पासे दोडी जाय छे, त्यां अश्रुपात करे छे अने दीक्षित थाय छे. सहदेवी अति दुःखी थई मरण
पामी वाघण थाय छे, ने ध्यानमग्न सुकौशलमुनिने खाय छे. सुकौशल अंतकृत केवळी थाय छे. वाघण कीर्तिधरमुनिना
उपदेशथी जातिस्मरण ज्ञान पामी, संन्यास धारण करी देवलोकमां जाय छे.
१५. नव परिणीत वज्रबाहुकुमार, तेमनां राणी मनोदया अने तेमना साळा उदय सुंदर मनोदयाना पिताने त्यां जवा
नीकळे छे. रस्ते जंगलमां ध्यानस्थ मुनिने देखी वज्रबाहुकुमार एकीटसे तेमना सामे जोई रहे छे. त्यारे उदय सुंदर मश्करी
करे छे, वज्रबाहु दीक्षित थाय छे, साथे उदयसुंदर तथा २६ राजकुमारो दीक्षित थाय छे, ने मनोदया अर्जिका थाय छे.
१६. कैलास पर्वत उपर भरत चक्रवर्तीवडे प्रतिष्ठापित गत, वर्तमान अने भावी चोवीशीनां जिनबिंबो तथा भरत
चक्रवर्तीवडे मुनिश्री बाहुबलिजीनुं पूजन अने केवळज्ञानने प्राप्त बाहुबलीजीनुं द्रश्य.
१७. महावीर भगवाननो जीव पूर्वे दसमा भवे सिंह पर्यायमां हतो; अने हरणनो शिकार करतो हतो. ते वखते बे
चारणऋद्धिधारी मुनिओ आकाशमांथी ऊतरी जोरथी उपदेश आपे छे, अने कहे छे के– ‘अरे, सिंह! तुं दसमा भवे
तीर्थंकर थवानो छे. ’ ते वखते सिंहने जातिस्मरणज्ञान थाय छे, आंखमांथी चोधार आंसु वहे छे, ने सम्यग्दर्शन पामी
निराहार व्रत अंगीकार करे छे.
१८. श्री सीमंधर भगवान, श्रीकुंदकुंदाचार्यदेव, श्री अमृतचंद्राचार्यदेव, सद्गुरुदेवश्री कानजी स्वामी अने श्रोता जनो.
१९. श्रीसुकुमारजी गोखमांथी मुनिराजना दर्शन करी नीचे उतरे छे, ने मुनिराज पासेथी ‘पोतानुं मात्र त्रण दिवसनुं
आयुष्य बाकी छे’ एम सांभळी, तरत ज दीक्षित थाय छे, ने जंगलमां जई ध्यान करे छे, त्यां शियाळीया तेमने खाय छे.
२०. श्रीशांतिनाथ प्रभु पूर्वे पांचमा भवे विदेहक्षेत्रमां श्रीक्षेमंकर तीर्थंकरना पुत्र वज्रयुधचक्रवर्ती हता. ईन्द्रसभामां
तेमना ज्ञाननी प्रशंसा सांभळीने एक देव परीक्षा करवा आवे छे अने तेमना ज्ञानसामर्थ्यने जोईने आश्चर्य पामे छे,
ने स्तुति करे छे. तथा श्री शांतिनाथ प्रभु पूर्वे त्रीजा भवे विदेहक्षेत्रमां श्रीधनरथ तीर्थंकरना पुत्र हता. ते पौषधोपवास
करी वनमां मेरुसमान अडग थई ध्यान करे छे. त्यारे, ईन्द्रसभामां तेमना शीलनी प्रशंसा सांभळीने बे देवीओ
परीक्षा करवा आवे छे, अने तेमना शीलथी आश्चर्य पामीने नमस्कार करे छे.