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नथी. केमके निश्चयसम्यग्दर्शनना सद्भावमां मिथ्यात्वसंबंधी बंधन थतुं नथी. अने कोई जीवने व्य्वहार
सम्यग्दर्शन तो बराबर होय, तेमां जराय अतिचार पण न लागवा देतो होय, परंतु जो तेने निश्चयसम्यग्दर्शन
न होय तो तेने मिथ्यात्वमोह बंधाया ज करे छे. सम्यग्दर्शननो जे व्यवहार छे ते सम्यकत्वना दोषने टाळवा
समर्थ नथी पण सम्यग्दर्शननो जे निश्चय छे ते मिथ्यात्वनुं बंधन थवा देतो नथी. एटले एम सिद्धांत छे के
निश्चय ते बंधनो नाशक छे अने व्यवहार ते बंधनो नाश करवा समर्थ नथी.
निश्चयसम्यग्दर्शन प्रगटी गयुं छे तेथी तेमने मिथ्यात्वनुं बंधन थतुं नथी, पण निर्जरा ज छे. चोथा गुणस्थाने
क्षयोपशम सम्यग्द्रष्टि जीवने सम्यग्दर्शनमां किंचित् सूक्ष्म दोष होय छे, अने त्यां तेने ‘सम्यक्मिथ्यात्वमोहनीय’
नामनी कर्म प्रकृतिनो उदय होय छे, परंतु ते वखते पण तेने मिथ्यात्व प्रकृतिनुं बंधन थतुं नथी; जुओ, जीवने
पण कंईक दोष छे अने कर्मनो उदय पण छे, छतां ते कर्मनुं बंधन थतुं नथी; केमके निश्चय–सम्यग्दर्शनना जोरे
सम्यकत्व संबंधी जे व्यवहार दोषो छे तेनी निर्जरा ज थई जाय छे पण सम्यग्द्रष्टिने ते बंधनुं कारण थतुं नथी.
‘सम्यक्–मिथ्यात्वमोहनीय’ प्रकृतिनो स्वभाव ज एवो छे के तेनो बंध कोई पण जीवने थाय नहि; ज्यारे तेनो
उदय होय (अने जीवने किंचित् दोष होय) ते वखते पण मिथ्यात्व प्रकृतिनुं बंधन थतुं ज नथी.
‘सम्यक्मिथ्यात्व मोहनीय’ नामनी कर्म प्रकृतिनो उदय सम्यग्द्रष्टि जीवने ज होय छे परंतु तेने
निश्चयसम्यकत्वना जोरमां ते बंधनुं कारण थती नथी पण निर्जरा ज थई जाय छे.
स्वभावनी प्रतीति करे तो निश्चयसम्यग्दर्शन प्रगटे छे. छ द्रव्यना अथवा सात तत्त्वोना विकल्पोने तोडीने
पोताना शुद्ध आत्मानी विकल्परहित श्रद्धा ते ज सम्यग्दर्शन छे. आचार्यदेव प्रेरणा करे छे के हे जीव! तुं ए
सम्यग्दर्शन प्रगट करीने परम चक्षुओवडे तारा पवित्र स्वभावने जो. दया–भक्ति वगेरे कोई प्रकारनो रागभाव
तारा आत्मस्वभावनी जात नथी.
ते सर्वे गुणोमां अने दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप रत्नत्रयीमां सार छे–उत्तम छे; वळी मोक्षरूपी महेलमां चढवा माटे
प्रथम पगथियुं छे. तेथी आचार्यदेव कहे छे के हे भव्य जीवो! तमे ते सम्यग्दर्शनने अंतरंग भावथी धारणा करो;
बाह्य क्रिया वगेरेथी जे मान्युं ते परमार्थ नथी. अंतरंगमां आत्मानी रुचिवडे सम्यग्दर्शन धारण करवुं ते मोक्षनुं
कारण छे.
सिद्धभगवानना वीतरागी संतान थवाने लायक एवा हे भव्य जीवो! तमे आत्मकल्याणने माटे पवित्र
समयग्दर्शनने ओळखीने अंतरंग भावथी धारण करो. चैतन्यभाव सन्मुख थईने सम्यग्दर्शन प्रगट करो.
करे छे. वस्तुस्वभाव स्वाधीन पूरो छे, तेनी श्रद्धा वगर सम्यग्दर्शन थतुं नथी. एक साथे समस्त लोकालोक