: ९४ : आत्मधर्म चैत्र : २४७४
तो जड जेवा छे, ते गमे तेम बोलशे; पण हे मुनि!
केवळज्ञान लेवानी तैयारीमां तने जे उपसर्ग आवे
तेनी सामे शुं जोवुं छे? तने तारामां शुभ विकल्प ऊठे
तेनुं पण जोर नथी, ने तारा पर्याय सामे पण तारे
जोवानुं नथी, पण एकलो ज्ञायकस्वभाव पूरो छे तेमां
ज लक्ष करीने लीन थई जा. आ रीते, पोताना ज्ञायक
स्वभावनी भावनाना जोरे चैतन्य समुद्र फाटीने जाणे
हमणां केवळज्ञान थशे–एवी दशा मुनिराजने वर्ते छे.
मारामां पूर्ण ज्ञायकपणुं छे, तेथी हुं पूर्ण ज्ञायक रहीने
बधाय जीवो प्रत्ये क्षमा करुं छुं, बधा प्रत्येनो राग–द्वेष
छोडीने हुं वीतराग भावे मारा स्वभावमां रहुं छुं,
मारे परनी उपेक्षा छे ने स्वभावनी एकाग्रता छे.
आम पोताना ज्ञायक स्वभावनी रुचि अने एकाग्रता
करीने आराधना करवी ते ज महानपर्व छे.
परमां लक्ष जईने कल्पना ऊठे के ‘आम केम?
’ अथवा तो उपसर्ग उपर लक्ष जाय, के हुं उपसर्ग
सहन करुं – एवी वृत्ति ऊठे ते वृत्ति तोडवा कहे छे के
– अरे मुनि! स्वभावनी एकाग्रता वडे तने
केवळज्ञान केम नहि, ने आ वृत्तिनुं उत्थान केम? –
आम अप्रतिहतभावे आराधना टकावी राखवी तेनुं
नाम मुनिनी उत्तमक्षमा छे.
चैत्र अने वैशाख मासना मांगळिक
दिवसो
चैत्र सुद १३ बुधवार : परम पूज्य श्री महावीर भगवानना जन्म कल्याणकनो मंगळ दिवस. अने
पूज्य श्री कानजी स्वामीना परिवर्तननी १४मी जयंति.
चैत्र सुद १५ शुक्रवार : श्री पद्मप्रभु–केवळकल्याणक.
वैशाख सुद २ सोमवार : परम पूज्य श्री कानजी स्वामीनो जन्म–मंगळ दिवस. (५९मी वर्ष गांठ.)
वैशाख सुद ३ मंगळवार : अक्षयत्रीज. भगवान–श्री ऋषभदेवने श्री श्रेयांसकुमारे सौथी पहेलुं
आहारदान कर्युं, त्यारथी दानतीर्थनुं प्रवर्तन थयुं.
वैशाख सुद १० मंगळवार : श्रीमहावीर भगवान–केवळज्ञान कल्याणक.
वैशाख वद ६ शनिवार : सोनगढनां श्रीसमवसरण मंदिरमां श्री सीमंधर भगवाननी चौमुखी
प्रतिमानी तथा श्रीकुंदकुंद आचार्य देवनी उभेली प्रतिमानी प्रतिष्ठानो तथा समवसरणनो सातमो वार्षिक
उत्सव.
वैशाख वद ८ सोमवार : श्रीशांतिनाथ भगवानना जन्मकल्याणक–तपकल्याणक तथा मोक्षकल्याणक.
अने सोन गढना श्री जैन स्वाध्याय मंदिरनुं उद्घाटन तथा तेमां श्री समयसारशास्त्रनी स्थापनानो ११ मो
वार्षिक उत्सव.
जीव द्रव्य ज उत्तम छ
(श्री स्वामीकार्तिकेयानुप्रेक्षा पृ. ७८–७९)
उत्तमगुणानां धाम सर्वद्रव्याणां उत्तमं द्रव्यं
तत्त्वानां परमतत्त्वं जीवं जानीहि निश्चयतः।।२०४।।
अर्थ:–जीवद्रव्य उत्तम गुणोनुं धाम छे, ज्ञानादि उत्तम–गुणो तेनामां ज छे. बधाय द्रव्योमां जीवद्रव्य ज
उत्तम छे, केमके बधा द्रव्योने जीव ज प्रकाशे छे. वळी बधा तत्त्वोमां जीव ज परम तत्त्व छे, अनंतज्ञान–
उत्तमतत्त्व–एवा जीवने हे भव्य! तुं निश्चयथी जाण.
अन्तरतत्त्वं जीवः बाह्यतत्त्वं भवन्ति शेषाणि।
ज्ञानविहीनं द्रव्यं हेयाहेयं नैव जानाति।।२०५।।
अर्थ:–जीव अंतरतत्त्व छे, अने जीव सिवायनां बीजां बधां बहिरतत्त्वो छे; ते बहिरतत्त्वो ज्ञानरहित छे
तेथी हेय अने उपादेय तत्त्वने ते जाणता नथी. जीवतत्त्व वगर तो बधुं शून्य समान ज छे. तेथी बधाने जाणनार
अने हेय–उपादेयने पण जाणनार एवुं जीवद्रव्य ज परमतत्त्व छे. भव्योने ते ज सर्व प्रकारे आदरणीय छे.
भूल सुधारो
आत्मधर्मना ५३ मा अंकमां नीचे प्रमाणे सुधारीने वांचवा विनंति छे–
(१) पृ. ६९ कोलम २ लाईन ३० मां “रागरहित नवतत्त्वो” छे तेने बदले “रागसहित नवतत्त्वो” वांचवुं.
(२) पृ. ७० कोलम १ लाईन २६–३४ तथा ३७ मां “सम्यक्मिथ्यात्व मोहनीय” ने बदले “सम्यक्
मोहनीय” एम वांचवुं.