चैत्र : २४७४ आत्मधर्म : ९५ :
बाल – विभाग
धर्मप्रेमी बाळको!
ज्यारथी आत्मधर्ममां बालविभाग शरू थयो त्यारथी घणा बाळको उत्साहपूर्वक तेमां भाग ले छे–ए
आनंदनी वात छे. परंतु–छेल्ला बे मासथी बालविभाग बराबर व्यवस्थित आपी शकायो नथी, तेथी केटलाक
बाळको तरफथी तेनी मागणी आववा लागी छे हवेथी दरेक महिने बालविभाग व्यवस्थित रीते आवशे. तमे
उत्साहथी समजजो, ने तमारा मित्रोने पण तेमां भाग लेवरावजो.
सिंहनो वैराग्य
एक हतो सिंह. एक वार ते हरणनो शिकार
करतो हतो. एवामां आकाश मार्गे बे मुनिओ जता
हता, तेमणे ते सिंहने जोयो. अने ते मुनिओए जाण्युं
के आ सिंहनो जीव दसमा भवे तीर्थंकर थवानो छे.
एथी मुनिओ ते सिंहने प्रतिबोधवा माटे नीचे ऊतर्या
अने सिंह सामे एक शिला उपर उभा.
अचानक आकाशमांथी बे मुनिओ ऊतर्या अने
निडर पणे पोतानी सामे उभा, ते जोईने सिंहने
नवाई लागी. अने ते शांतिथी टगर टगर तेमना
सामे जोई रह्यो; तेनो क्रोध टळी गयो ने शांतभाव
प्रगट थया. त्यारे तेनी तरफ जोईने, हाथ लंबावीने
एक मुनि बोल्या, “अरे सिंह! आ शुं? दसमा भवे
तो तुं तीर्थंकर भगवान थवानो छे–एम अमे
भगवान पासेथी सांभळ्युं छे. हे जीव! तने आ न
शोभे. आ घोर पापने हवे तुं छोड, छोड.
!........ज्ञानमूर्ति आत्माने आ भावथी शांति न होय.
तुं तारा ज्ञानभावने समज रे समज! ”
मुनिओनो उपदेश सांभळतां ज ते सिंहने
पोताना पूर्वभवनुं ज्ञान थयुं. अने पश्चातापने लीधे
तेनी आंखमांथी आंसुनी धार टपकवा लागी. त्यां ने
त्यां आत्मभान पाम्यो; मुनिने वंदन कर्युं, अने
खोराकनो त्याग करीने समाधि करी.
बाळको, ए सिंहनो जीव ते ज आपणा
भगवान महावीर. ए सिंहनो जीव पोते
सम्यग्दर्शनना प्रभावथी दसमा भवे केवळज्ञान पामीने
तीर्थंकर भगवान थयो. आजे जगत तेमने महावीर
प्रभु तरीके पूजे छे.
क्यां मांस खानारो सिंह, ने क्यां जगतपूज्य
भगवान! पोताना आत्माने ओळखे तो सिंहनो जीव
पण भगवान थाय छे. आत्मानी ओळखाण करवाथी
पापी जीवनो पण उद्धार थाय छे. सिंह जेवा पशुने
पण ए आत्मभान थाय छे; बाळको, तमे तमारा
आत्मानो उद्धार करवा माटे जरूर आत्मानी समजण
करजो: ए ज जीवननुं कर्तव्य छे. [ए सिंहना वैराग्यनुं
बहु ज सुंदर चित्र ‘भगवान श्री कुंदकुंद प्रवचन
मंडपमां छे, ज्यारे तमे सोनगढ आवशो अने ए
सिंहनुं द्रश्य जोशो त्यारे तमने पण ए सिंह जेवो
पुरुषार्थ करवानी भावना थशे.]
आतम देव
(कोई कहेशो के भगवान... ए राग)
१. मारे जोवो–आतमदेव केवो हशे?
देव केवो हशे, शुं करतो हशे?....मारे....
२. पोते देवाधिदेव, पोते भगवान जे,
पोते परमेश्वर केवो हशे?....मारे....
३. जाणे बधुंय, विश्व झळके बधुंय ज्यां,
दर्पण समान देव केवो हशे?....मारे....
४. जुदो जगतथी ने जुदो शरीरथी,
आनंदे एक मेक केवो हशे?....मारे....
५. जन्म मरण नहि, राजा के रंक नहि,
सागर आनंदनो केवो हशे?....मारे....
६. आंखे देखाय नहि, काने सुणाय नहि,
ज्ञाने समाय ए केवो हशे?....मारे....
(श्री. हिंमतलाल. जे. शाह. बी. एस. सी.)
न्याय आपो
जीव अने अजीव वच्चे कजीयो थयो.
जीव कहे के ‘अस्तित्व गुण मारो छे. ’ ने
अजीव कहे के ‘मारो छे. ’ तमने न्यायाधीश
नीम्या होय तो तमे शुं चूकादो आपशो?
(चूकादो न आवडे तो बालविभागमांथी
शोधी काढजो.)
श्री सीमंधर भगवाननुं बीजुं नाम
‘स्वयं–प्रभजिन’ छे.
(मोक्ष प्राभृत संस्कृत टीका)