Atmadharma magazine - Ank 054
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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चैत्र : २४७४ आत्मधर्म : ८७ :
मिथ्यात्वभाव तो टळी गयो. हवे ज्यांसुधी चारित्र अंगीकार करवानुं सामर्थ्य न होय त्यांसुधी, जेटलुं सामर्थ्य होय
तेटलुं तो करे अने ते सिवायनुं श्रद्धान करे. त्यां चारित्रनो दोष छूटयो न होवा छतां तेने हेय–उपादेयपणानी यथार्थ
श्रद्धा छे, तेथी एवुं श्रद्धान करवावाळाने भगवाने सम्यग्दर्शन कह्युं छे. समयग्दर्शन साथे चोथी भूमिकाने योग्य
स्वरूपाचरण चारित्र तो होय ज छे, पण मुनिदशाने योग्य चारित्र होय ज एवो नियम नथी.
(२१२) सम्यग्दर्शननुं कार्य अने सम्यक्चारित्रनुं कार्य
शंका–जे क्षणे जीव हेय–उपादेयपणाने यथार्थ समजे ते ज क्षणे हेयने छोडीने उपादेयने अंगीकार करे
एटले के साची श्रद्धा भेगुं ज पूरुं चारित्र होय. ज्यारे रागादि छोडीने चारित्र अंगीकार करे त्यारे ज साची
श्रद्धा थई कहेवाय. एम माने तेनुं समाधान–
समाधान–सम्यग्दर्शन तो परिपूर्ण आत्मस्वभावने ज माने छे; रागादिनुं ग्रहण–त्याग करवानुं कार्य
सम्यग्दर्शननुं नथी, पण चारित्रनुं छे. साची श्रद्धानुं कार्य ए छे के उपादेयनी उपादेय तरीके अने हेयनी–हेय
तरीके प्रतीत करवी; पण उपादेयने अंगीकार करवुं अने हेयने छोडवुं ए काम चारित्रनुं छे. राजपाटमां होवा
छतां अने राग होवा छतां भरत चक्रवर्ती, श्रेणीकराजा, रामचंद्रजी, भरतना नानी नानी उमरना कुमारो तथा
सीताजी वगेरेने सम्यग्दर्शन हतुं–आत्मभान हतुं. सम्यग्दर्शन थतां व्रतादि होवा ज जोईए अने त्याग होवो ज
जोईए–एवो नियम नथी, पण एटलुं खरूं के सम्यग्दर्शन थतां ऊंधा अभिप्रायनो त्याग अवश्य थाय छे.
(२१३) साचो त्याग कोण करशे?
प्रश्न:– जो आवुं समजशे तो कोई जीव त्याग अने व्रतादि नहि करे?
उत्तर:– कोण त्याग करे छे? अने शेनो त्याग करे छे? पर वस्तुनुं तो ग्रहण के त्याग कोई पण जीवो करी
शकता नथी; पोताना विकारनो त्याग करवानो छे. विकारनो त्याग कोण करी शके? जेने विकारथी भिन्न स्वभावनी
प्रतीति थई होय ते ज जीव विकारनो त्याग करी शके. रागथी भिन्न आत्मस्वभावने जाण्या वगर रागनो त्याग
कोण करशे? सम्यग्दर्शन वडे रागथी भिन्न स्वभावनी श्रद्धा कर्या पछी ज रागनो यथार्थ पणे त्याग थई शके छे,
पण जे जीव पोताना शुद्धस्वभावने जाणतो नथी अने राग साथे एकत्व माने छे ते जीव रागनो त्याग करी शकशे
नहि. माटे आ समज्या पछी ज साचो त्याग थई शके छे. साचो त्याग सम्यग्द्रष्टिओ ज करी शके छे, मिथ्याद्रष्टिने
तो कोनुं ग्रहण करवुं अने कोनो त्याग करवो एनुं ज भान नथी तो तेने त्याग केवो?
(२१४) सौथी पहेलो त्याग मिथ्यात्वनो
धर्ममां सौथी पहेलो त्याग तो मिथ्यात्वनो ज थाय छे. जिनमतमां एवी ज परिपाटी छे के सौथी पहेलांं
मोटुं पाप छोडावीने पछी नानुं पाप छोडावे छे. सौथी मोटुं पाप मिथ्यात्व ज छे. जो साचुं समजशे तो जीव
प्रथम तो मिथ्यात्वनो त्यागी थई जशे. आसक्तिना त्याग पहेलांं अने व्रतादि पहेलांं तत्त्वज्ञाननो अभ्यास
करवो–एम तत्त्वार्थसारमां कह्युं छे. केम के तत्त्वज्ञानना अभ्यास वगर विषयासक्ति टळे ज नहि अने व्रतादि
होय ज नहि. तत्त्वना अभ्यास वडे सम्यग्दर्शन थतां मिथ्यात्वनो त्याग थाय छे. मिथ्यात्वनो त्याग ए शुं
त्याग नथी? अनादिथी जेनो त्याग नहोतो कर्यो तेनो त्याग कर्यो. अज्ञानीने ए त्याग होई शकतो नथी.
(२१५) द्रव्यलिंगी मुनि अने सम्यग्द्रष्टि बालिकानुं अंतर
अनेक वर्षो सुधी व्यवहार चारित्र पाळनार द्रव्यलिंगी मिथ्याद्रष्टि मुनिना त्याग करतां राजपाटमां
रहेली आठ वर्षनी सम्यग्द्रष्टि बालिका साची त्यागी छे. मिथ्याद्रष्टि साधुए खरेखर कांई त्याग कर्यो ज नथी,
मात्र राग मंद कर्यो छे, पण सौथी मोटुं मिथ्यात्वनुं पाप तो तेने विद्यमान छे. अने सम्यग्द्रष्टि बालिकाए
मिथ्यात्व पापनो त्याग करीने अनंत भवनो त्याग करी नाख्यो छे. मिथ्याद्रष्टि द्रव्यलिंगीने मिथ्यात्वनो
अत्याग होवाथी तेनामां अनंत भवनुं ग्रहण करवानी ताकात पडी छे. आठ वर्षनी सम्यग्द्रष्टि बालिका होय ते
पण हजारो वर्षना मिथ्याद्रष्टि मुनिनी मिथ्या मान्यतानो बेधडकपणे नकार करे छे. सम्यग्दर्शन थया पछी परणे
अने संतान पण थाय, तेथी कांई सम्यग्दर्शनमां दोष आवतो नथी. पांचमा–छठ्ठा गुणस्थानना व्रत के चारित्र न
होवा छतां पण सम्यग्दर्शन होई शके छे, परंतु सम्यग्दर्शन वगर तो कोई पण जीवने सम्यक्चारित्र होई ज शके
नहि. माटे आचार्य भगवान कहे छे के सौथी पहेलांं सम्यग्दर्शन अवश्य धारण करो.
[–चालु