: ८८ : आत्मधर्म चैत्र : २४७४
परम पूज्य श्री कानजी स्वामीनुं व्याख्यान
: फागण सुद १प :
सर्व जीव छे सिद्धसम, जे समजे ते थाय;
सद्गुरु आज्ञा जिनदशा, निमित्त कारणमांय.
[आत्मसिद्धि गा. १३५]
आत्माने धर्म केम थाय अने तेनी मुक्ति केम थाय ते आमां बताव्युं छे. पोतानो आत्मा शुद्ध सिद्ध
भगवान जेवो छे, शरीरथी जुदो छे, तेनी ओळखाण अने माहात्म्य न करे तो शरीरनी ममता करीने तेने
टकावी राखवा मागे छे. एक आंगळीमां सर्प करडे अने आंगळी सडवा लागे त्यां ते आंगळी कापी नाखीने
पण शरीरने टकावी राखवा मागे छे, आंगळी तोडीने पण जीववा मागे छे, तेम जेणे पोताना आत्माने
विकारथी छोडावीने शुद्ध परमात्मापणे जीवतो राखवो होय तेणे शरीर, मन, वाणी अने विकारीभावो–ए बधुंय
जतुं करवुं पडशे.
सर्प करडे अने आंगळी सडवा मांडे, त्यां कोई वैद्य कहे के जो जीवतर टकाववुं होय तो आंगळी कपाववी
पडशे. त्यां शरीरनी ममता खातर आंगळी जती करे छे. तेम ज्ञानी कहे छे के तारो आत्मा परमात्म स्वभावी
छे, अने वर्तमान हालतमां विकाररूपी सडो छे. जो तारा आखा आत्माने शुद्ध परमात्मापणे, विकारथी जुदो
टकावी राखवो होय तो, ते विकारने अने शरीरादिने जतां करवां पडशे.
प्रश्न:– विकारने अने शरीरादिने कई रीते जतां करी शकाय?
उत्तर:– पहेलांं तो पोताना आत्मानी एवी श्रद्धा करवी के मारो आत्मस्वभाव सिद्ध भगवान जेवो ज
छे, मारा आत्मस्वभावमां राग–द्वेषादि विकार नथी तेम ज शरीर, मन, वाणी पण नथी. आम पोताना
आत्माने रागादिथी अने शरीरादिथी जुदो जाण्यो अने मान्यो त्यां श्रद्धामां एकलो आत्मस्वभाव रह्यो अने
शरीरादि जतां करी दीधां. शरीरने राखवा खातर आंगळी जती करे छे त्यां तो ममता छे, ने आत्माने खातर
शरीरादिनी ममता छोडे छे त्यां स्वभावनी द्रढता छे, ने ते धर्म छे.
‘सर्व जीव छे सिद्ध सम’ आ द्रव्यद्रष्टिनी वात छे. हुं सिद्ध जेवो छुं. सिद्ध भगवान आत्मा छे, ते पण
पहेलांं संसारमां हता; ए आत्माए पहेलांं पोताना स्वभावने शरीरथी ने विकारथी जुदो ओळख्यो, ने
आत्माना महिमावडे शरीरादिने श्रद्धामांथी जता कर्यां. तेम हुं पण सिद्ध जेवो छुं, मारो आत्मा ज्ञान–दर्शननी
मूर्ति छे, शरीरादि हुं नथी ने रागादि पण मारुं स्वरूप नथी– एम श्रद्धा करवाथी पोताना आत्मस्वभावनी
द्रढता थाय छे, ने शरीरादिनो महिमा टळे छे; आने आत्माने खातर शरीरादि जतां कर्या एम कहेवाय छे.
हुं विकारथी ने शरीरथी जुदो सिद्ध समान आत्मा छुं–एम जेणे पोताना आत्माने विकारथी ने शरीरथी
जुदो जाण्यो, तेणे श्रद्धामां शरीरादिने जतां कर्यां छे. अने त्यार पछी क्रमेक्रमे पोताना आत्मामां स्थिरता करीने
राग टाळतां सिद्धदशा प्रगटे छे, ने विकार तथा शरीर सर्वथा टळी जाय छे. ए रीते, जेओ पोताना आत्माने
सिद्धसमान समजे छे तेओ सिद्ध थाय छे. सिद्ध थवुं ते तो नवी हालत छे, पण स्वभावथी तो बधा आत्मा
सदाय सिद्धसमान छे.
जे पोताना आत्माने शुद्ध सिद्धसमान ओळखे ने विकारथी जुदो ओळखे तेज विकारने जता करी शके.
जेम वैद्य कहे के एक आंगळी कापी नाखो तो ज शरीर बचशे. त्यां पोताने विश्वास आवे छे के आ एक
आंगळी कापी नाखतां पण आखुं शरीर टकी रहेशे. तेथी त्यां शरीरनी ममतावडे आंगळी कपावी नाखे छे. तेम
ज्ञानी कहे छे के जो तारे तारा आत्माने आखो जीवतो राखवो होय तो रागादिनी श्रद्धा छोड. राग अने
शरीरादि जाय तोय तुं आखो सिद्ध रहीश. सिद्ध भगवंतो शरीर वगर अने राग वगर जीवे छे ते साचुं जीवतर
छे. हे जीव! तारे जो तारा आत्मानुं साचुं जीवतर जीववुं होय तो तुं तारा आत्माने सिद्ध जेवो जाण. पोताना
आत्माने विकारी मानवाथी आत्मानुं भावमरण थाय छे. पोताना आत्माने सिद्ध जेवो जाणवो–मानवो ते ज
धर्म छे, ते शांतिनो उपाय छे.
शरीरमां सर्पनुं झेर चडयुं होय तो वैद्य ऊलटी करावीने ते कढावी नाखे छे. तेम आत्मामां मिथ्यात्वरूपी
सर्पनुं झेर चडयुं छे. आत्मा शरीरथी जुदो छे तेने जीवतो राखवो होय तो ते मिथ्यात्वरूपी सर्पना झेरनी
ऊलटी करवी जोईए, एटले के आत्मानी ओळखाण वडे मिथ्याश्रद्धानी ऊलटी करीने सम्यक् श्रद्धा करवी
जोईए. मने शुभरागथी लाभ थाय, के हुं शरीरनुं कांई करुं,