चोथा गुणस्थाननी–सम्यग्दर्शन पामवानी–धर्मी थवानी वात छे. ज्यां सुधी आवा शुद्ध आत्मस्वभावने न
समजे त्यां सुधी जीवनां बधा साधन खोटां छे.
शास्त्रो वांचीने वातो करे तेथी कांई अंतरमां परिणमे नहि. ज्ञानीओ पासेथी श्रवण करेली वात पोताना नामे
चडावीने जगतने कहेवा मांडे अने ए रीते मान पोषे ते तो मोटा स्वच्छंदी छे, अनंत संसारी छे. आ तो
हित सिवाय बीजुं कांई ज प्रयोजन नथी, समजीने बीजा पासेथी मोटाई नथी लेवी पण पोताना आत्मा माटे
ज समजे छे एवा मोक्षार्थी जीवनी वात छे. आ जेटली कहेवाणी तेटली बराबर पात्रता प्रगट करे पछी ज
शुद्धात्मानुं अंतर परिणमन थाय. सत् सांभळीने तेना वडे जे विषयकषायने पोषे छे ते महा पापी अनंत
संसारी छे, सत्नुं श्रवण करवाने पण ते पात्र नथी, तेने तो व्यवहारनी लायकात पण नथी, ए तो सीधा
दुर्गतिमां जाय छे.
छे ते ज आत्मार्थी छे, अने ते जीव शुद्धात्मानुं सेवन करीने मोक्ष पामे छे. आत्मामांथी स्वच्छंदता छोडे नहि ते
जीव ‘हुं शुद्धात्मा छुं’ एवा सम्यक्अभिप्रायनुं सेवन करी शके नहि. माटे स्वच्छंदने जेणे अत्यंतपणे छोडी दीधो
छे एवा मोक्षार्थी जीवोए शुद्धात्मानी ओळखाण करीने तेनुं ज सेवन करवुं. शुद्धात्मानी ओळखाण वगर जीव
अनंतवार द्रव्यलिंगी साधु थयो अने मेरुं पर्वत जेवडो ढगलो थाय एटला मोरपींछी ने कमंडळ धारण कर्या,
बधाय भावोनुं सेवन जीवे अनंतकाळथी कर्युं छे. व्यवहारना जेटला प्रकार छे तेनुं सेवन कर्युं छे पण
निश्चयस्वभाव एकरूप चैतन्यमय परिपूर्ण छे तेनुं कदी सेवन कर्युं नथी. शुद्धात्मा सिवाय तीर्थंकरगोत्र पण
सेववायोग्य नथी. तीर्थंकरगोत्र तो जड कर्म छे ते तो परद्रव्य छे ज, पण जे भावथी तीर्थंकरगोत्र बंधाय ते
भाव पण मारा आत्माथी परद्रव्य छे; हुं तो शुद्ध चिन्मात्र छुं. एवा सिद्धांतनुं सेवन करवुं ते मुक्तिनो उपाय
छे. माटे श्री आचार्यदेव कहे छे के–
परद्रव्य छे. ’
ज्यां जीव स्वयं सुख परिणमे, विषयो करे छे शुं तहीं? ६७.
विषयो शुं करे छे?
नथी. जे जीवनी आंखनी शक्ति ज अंधाराने हणनारी छे तेने पदार्थो जाणवा माटे दीपकनी जरूर नथी, ते