सामग्रीनी जरूर नथी. जीव सुखरूप के दुःखरूप स्वतंत्रपणे थाय छे. कोई माणस छाती उपर चडी बेसे अने
छरावडे छातीमां घा मारे ते वखते पण जीवने सुखरूप परिणमवुं के दुःखरूप परिणमवुं तेमां ते स्वतंत्र छे.
अनुकूळ संयोगो होय तो ज सुख थाय ने प्रतिकूळ होय तो दुःख थाय–एम नथी. अनुकूळ संयोग कांई जीवने
सुखी करी देता नथी ने प्रतिकूळ संयोग कांई जीवने दुःखी करी देता नथी. जीव पोते स्वभावमां ज्ञानपणे
परिणमे ते वखते बहारमां भले प्रतिकूळ संयोग होय, पण ते कांई जीवना सुखने रोकता नथी.
शरीरादि अकिंचित्कर छे. परंतु उपादान निमित्तनो मेळ एवो छे के जीव ज्यारे केवळज्ञान प्रगट करे त्यारे शरीर
परमौदारिकपणे स्वयं परिणमे ज. तेवी ज रीते अज्ञान अने राग भावे परिणमीने जीव पोते ज दुःखी थाय छे,
रोग वगेरे बाह्य प्रतिकूळ सामग्री तेमां अकिंचित्कर छे.
पण ते मान्यतामां पण पर वस्तुओ तो अकिंचित्कर ज छे. ते जीव भले विषयोमां सुख माने पण खरेखर तो
विषयो तरफनी आकुळताथी ते दुःखी ज छे. अज्ञान अने रागद्वेषरूपे परिणमीने जीव पोते ज दुःखी थाय छे,
प्रतिकूळ सामग्रीमां दुःखनो मफतनो आरोप करे छे. अहीं आचार्यदेव आत्माना स्वाभाविक सुखनुं वर्णन करतां
बतावे छे के आत्मानुं साचुं सुख बहारना बधाय पदार्थोथी निरपेक्ष छे. अज्ञानीओ पोते स्वयं सुखरूपे
परिणमता नथी तेथी बहारनी वस्तुमां सुखनो आरोप करे छे. आरोप एटले मिथ्या. एटले के परमां तेणे जे
सुख मान्युं छे ते मिथ्या छे, ते दुःख ज छे. सिद्धभगवान तो स्वयं ज्ञान अने वीतरागपणे परिणमीने
सुखस्वरूप थयेल छे, तेथी तेमने पारमार्थिक सुख छे; अने पारमार्थिक सुख होवाथी क्यांय बहारमां सुखनो
आरोप नथी. माटे सिद्धभगवाननी जेम बधाय जीवोने बहारना पदार्थो सुखनुं कारण नथी.
उत्तर:–आत्मा सिवाय बहारना कोई पदार्थने भोगववानी वृत्ति ते आकुळता छे, दुःख छे. इंद्रियना
छे. जेम विष्टामां सुख छे नहि पण विष्टानो प्रेमी भमरो तेमां सुखनी कल्पना करे छे, ते कल्पनाना सुखरूपे
पोते परिणमे छे, कांई विष्टा तेने सुखनुं साधन थती नथी. तेम आत्माना ज्ञानस्वभाव सिवाय बहारमां कोई
विषयोमां के शुभाशुभभावमां सुख नथी, छतां ‘आमां मारुं सुख छे’ एवी फोगट बुद्धिवडे अज्ञानी जीव
विषयोनो संग करे छे, परंतु विषयो तेने कांई ज करता नथी, ते पोते ज स्वयमेव सुखनी कल्पनारूपे परिणमे
छे. सिद्धभगवानने इंद्रियो अने इंद्रियोना विषयो नथी, पोते ज स्वयमेव पूर्ण सुखमय थई गया छे. आत्मानो
स्वभाव ज सुख छे, ते सुखमां कोई बीजानी अपेक्षा नथी. लोकालोकना समस्त पदार्थो सिद्धभगवानना
ज्ञानना विषयो छे अर्थात् सिद्धभगवान आखा लोकालोकने जाणे छे, तेमने विषयोमां सुखनी कल्पना नथी
पण तेमनो आत्मा स्वभावथी स्वयमेव सुखी थई गयो छे. इंद्रियो होय तो ज सुख होय–एम नथी. सिद्धोने
पोताना सुखमां परवस्तुओ कारण नथी. ज्ञानमां परवस्तुओ जणाय ते कांई सुखनुं के दुःखनुं साधन नथी.
केवळी भगवानोने पोताना ज्ञानमां नरकनां दुःख–निगोदनां दुःख–स्वर्गनां कल्पित सुख अने अनंत
केवळज्ञानीओना पारमार्थिक सुख–ए बधुंय जणाय छे, पण ते कोई पदार्थो तेमने सुख–दुःखनुं कारण नथी,
पोते स्वयं पारमार्थिक सुखी छे. पोताना आत्मस्वभावना सुखमां कोई पर विषयोनी अपेक्षा नथी पण
अज्ञानीने तेनुं भान नथी तेथी ते जीव विषयोमां सुखनी कल्पना करीने आकुळताथी दुःखी थाय छे. तेने पण
पर विषयो सुखनुं के दुःखनुं साधन थती नथी.