थईने परमात्मदशा प्रगटे छे.
क्या सिद्धांतनुं सेवन करवुं जोईए ते समजावाय छे; मोक्षार्थी जीवने केवो नियम होय? त्रिकाळ शुद्ध चैतन्यमय
स्वभाव छुं–एम मानवुं ते ज साचो नियम छे. पण आत्माने विकारी के रागवाळो मानवो ते नियम नथी.
आत्मा त्रिकाळ शुद्ध परम चैतन्यमय छे–ते त्रिकाळ नियम छे. आ ज नियमना सेवनथी धर्म थाय छे. आठ
वर्षनी बालिका पण ए नियमना सेवनथी धर्म पामे छे, ने सो वर्षनो द्रव्यलिंगी साधु पण आ नियमना सेवन
वगर धर्म पामतो नथी. माटे मोक्षार्थीओए ए ज नियमनुं सेवन करवुं.
चैतन्यस्वरूप छुं, मारामां राग नथी–एवी स्वभावद्रष्टि ते धर्म छे.
जोईती नथी. लोकोमां पंडित कहेवराववुं नथी, संसार मात्रनुं कोई प्रयोजन नथी, पोताना जाणपणानुं
अभिमान नथी, साचा देव–गुरु–शास्त्र प्रत्ये अर्पणता थई गई छे, ज्ञानीओ पासेथी एक अक्षर सांभळता
उल्लास ने आनंद आवी जाय छे.–एवा आत्मार्थी जीवो मोक्षनो मार्ग समजे छे.
अहीं सांभळवानुं कह्युं छे एटले श्रीगुरु पासेथी शुद्धात्मानुं श्रवण करती वखते जे विनय, बहुमान जोईए अने
स्वच्छंदनो त्याग जोईए ते तेमां आवी जाय छे. जेने शुद्धात्मानो प्रेम होय ते जीवने, शुद्धात्माना संभळावनार
ज्ञानीओ प्रत्ये बहुमान अने विनय होय ज. गुरु पासेथी शुद्धात्मानुं श्रवण करतां केटलो केटलो विनय होय! हुं
समजीने जगतना जीवोने समजावी दउं–एवी जेनी बुद्धि नथी पण मारे मारा पोताना माटे समजीने आत्मार्थ
करवो छे एम पोतानी ज दरकार छे, जेने बहु ज गंभीरता छे, मारे सत् प्रत्ये अर्पणता सिवाय बीजुं कांई
काम नथी–एम जे स्वछंद मूकीने नम्रताथी एकदम कोमळ थई गयो छे अने जेने मोक्षनुं ज प्रयोजन छे एवा
जीवोने आचार्यदेव आदेश करे छे के हे मोक्षार्थीओ! तमे आवा सिद्धांतनुं सदाय सेवन करो के हुं शुद्ध ज्ञानमय
परमज्योति छुं. सामा जीवमां तेम करवानी पात्रता छे तेथी आचार्यदेवे आदेश–वचन कह्युं छे. मोक्षार्थी जीवोना
ज्ञाननो अभिप्राय उदार होय छे. ‘शुद्ध आत्मा’ ते सर्वज्ञदेवना कहेला अनंत शास्त्रोनो सार छे. हे मोक्षार्थीओ,
अनंत शास्त्रोना सारभूत आ सिद्धांतनुं सेवन करो के ‘ हुं चिद्रूप आत्मा छुं, विकार मारुं स्वरूप नथी. ’ जे
जीव आ सिद्धांत समज्यो ते जीवे सर्व शास्त्रोनो सार समजी लीधो. शुद्धआत्मस्वरूपनी सन्मुख अभिप्राय थयो
ते ज मुक्तिना रस्ते प्रयाण छे, ते अप्रतिहतभाव पाछो न फरे. परनुं कांई करवानी तो वात ज नथी केम के ते
तो कोई जीव करी शकतो ज नथी. अने पर्यायमां जे राग थाय ते करवानी पण वात नथी, साधकदशामां ते हो
भले, पण तेनाथी धर्म नथी. धर्मी जीव तेने पोतानुं स्वरूप मानता नथी. आ सिवाय बीजी रीते आत्मानुं
स्वरूप माने तेने धर्म नथी.
श्री अमृतचंद्राचार्यदेवे आ कळश चढाव्यो छे. अस्ति नास्तिथी सरस कथन कर्युं छे. पर्यायमां व्यवहारनुं
अस्तिपणुं तो बताव्युं पण चैतन्यना शुद्धज्ञायक स्वभावमां तेनो नकार कर्यो.
उत्तर:–एक शुद्ध चैतन्यस्वभाव ते हुं ने चैतन्यथी विलक्षण एवा सर्वे पर भावो ते हुं नहि, ते बधाय