स्वभावनी द्रष्टि खसती नथी पण स्वभावनी अधिकता ज छे, तेथी तेमने समभाव ज वर्ते छे.
देशविरतसामायिक अने सर्वविरतसामायिक–एम चार प्रकारनी सामायिक छे. पोताना पूर्ण ज्ञानस्वभावनो
आदर ने विकारनो आदर नहि ते ज्ञान–दर्शनरूप सामायिक छे. पहेलांं मिथ्यात्वने लीधे एम मानतो के ‘पुण्य
सारां ने पाप खराब अमुक मने लाभ करे ने अमुक नुकशान करे, ’ तेथी श्रद्धा अने ज्ञानमां विषमभाव हतो.
हवे, कोई पर मने लाभ नुकशान करनार नथी, ने पुण्य तथा पाप बंने मारुं स्वरूप नथी एवी स्वभावना
आश्रये सम्यक्श्रद्धा थतां ज्ञानदर्शनमां समभाव प्रगट्यो. दयाभाव हो के हिंसाभाव हो, ते मारुं स्वरूप नथी,
त्रिकाळ चैतन्यभाव ते हुं छुं–एम स्वभावनी श्रद्धा अने ज्ञान करवां ते श्रद्धा–ज्ञानरूप सामायिक छे. आरंभ–
परिग्रहमां रहेला सम्यग्द्रष्टिने पण ते सामायिक होय छे. ए सामायिक बे घडीनी ज नथी होती, पण सदाय वर्ते
छे. त्यार पछी स्वभावनी लीनतारूप भाव प्रगटे ने रागादि टळे त्यारे देशविरतिरूप सामायिक होय छे अने
विकल्प रहित ज्ञानस्वभाव ते हुं छुं एवी श्रद्धा–ज्ञान ते दर्शन–ज्ञानरूप सामायिक छे. जेने आवी सामायिक होय
ते जीवो बधाय जीवोने समान जाणे छे; जगतमां कोई शत्रु–मित्र नथी, एकेन्द्रिय–पंचेंद्रिय वगेरे आत्मा नथी
पण बधाय ज्ञानदर्शननी मूर्ति छे. आम जोनारने कोनां कारणे राग थाय? ने कोनां कारणे द्वेष थाय? परने
देखवाना कारणे जे राग–द्वेष मानतो ते रागद्वेष टळी गया, ने बधा उपर समभाव थई गयो. आ धर्म छे, आ
मुक्तिनो उपाय छे.
पण पर्यायने जुए छे, तेथी पर्यायबुद्धिथी तेमने रागद्वेष थाय ज छे. ज्ञानी जीव स्वभावद्रष्टिथी बधाय जीवोने
समान जाणे छे तेथी सामा जीवोना पर्यायमां जे फेर छे ते कांई मटी जतो नथी. पर्यायथी तो सिद्ध ते सिद्ध छे ने
निगोद ते निगोद छे. सिद्धने सिद्ध तरीके अने निगोदने निगोद तरीके जाणवुं ते कांई विषमभावनुं कारण नथी.
पण सिद्धने सिद्धपर्याय जेटला ज मानीने तेना उपर राग अने निगोदने निगोदपर्याय जेटलो ज मानीने तेना
उपर द्वेष करवो–एवी पर्यायबुद्धि ज विषमभावनुं कारण छे. ज्ञानी परने जाणे ते वखते य स्वभावनी एकता
टळती नथी तेथी समभाव छे. केवळी भगवान बधाय जीवोने अने बधाय पर्यायोने जाणता होवा छतां तेमने
स्वभावनी संपूर्ण एकता होवाथी समभाव ज छे, पर्यायने जाणवा छतां पर्यायमां एकताबुद्धि थती नथी तेथी
सम्यग्द्रष्टि जीवो पण पोतानी स्वभाव सत्ताने शुद्ध जाणता थका बीजा बधाने पण शुद्ध ज देखे छे. रागादिवाळो
हुं नथी, ने बीजा जीवो पण रागादिवाळा नथी, बधाय शुद्ध चैतन्य सत्तावाळा छे. आवी द्रष्टिमां
स्वभावद्रष्टि ए ज धर्म छे. धर्मी जीवो स्वभावद्रष्टि राखीने पर्यायने जाणे छे त्यां तेमने स्वभावद्रष्टिना फळनी
ज वृद्धि छे, पर्यायद्रष्टिनुं फळ (अर्थात् विषमभाव) तेमने नथी.
बधाय आत्मा शुद्ध परमेश्वर छे एम ज्ञानी जुए छे.
उत्तर:–अहीं स्वभावद्रष्टिनी वात छे, ने स्वभावद्रष्टिमां बधाय जीवो समान छे. स्त्रीनो जीव ते स्त्री