भगवान छे. एकरूप स्वभावद्रष्टिमां कोई माता के स्त्री छे ज नहि, सिद्ध के निगोद, एकावतारी के
अनंतसंसारी, स्त्री के माता ए बधाय जीवो परिपूर्ण चैतन्य स्वरूप एक सरखां छे. आवी स्वभावद्रष्टिमां
अनंतो वीतरागभाव आवी जाय छे.
धर्मात्मा जीवो संयोगोथी अने विकारथी पोताना स्वभावने जुदो जाणीने स्वभावनी एकतामां स्थित छे.
ज्ञानीने स्त्री आदि संबंधी जे राग होय ते रागथी जुदुं पोतानुं स्वरूप अनुभवे छे, रागनो आदर करता नथी,
तेथी खरेखर ज्ञानी जीवो पोताना स्वभावमां ज बेठा छे.
पोतानी मानता नथी अने विकारने पोतानुं स्वरूप मानता नथी, तेथी ते परमांथी अने विकारमांथी ऊठीने
पोताना स्वभावनी रुचिमां ज बेठा छे, आ ज धर्म छे.
एटले परने पण परतंत्र माने छे. पोताना त्रिकाळी स्वभावने न जाणतां क्षणिक विकार जेटलो पोताने माने
छे, तेथी परना पर्यायने जाणतां ते पदार्थोने पण क्षणिक पर्याय जेटला ज माने छे, अने तेना पर्यायमां ईष्ट–
अनिष्ट एवा भेद पाडीने एकत्वबुद्धिना रागद्वेष करे छे, ए महा अधर्म छे. परथी छूटो ने विकारथी छूटो एवो
पोतानो ज्ञान स्वभावएकलो छे, तेनी श्रद्धा–ओळखाण करीने तेमां अभेद थवुं तेनुं नाम एकलो बेठो कहेवाय.
नग्न थईने जंगलमां जईने बेसे अने एम माने के शरीरनी क्रिया हुं करुं छं, ने आनाथी मने धर्म थाय छे–तो
ते जीव एकलो नथी पण शरीरना अहंकारने साथे राखीने बेठो छे, तेना अभिप्रायमां अनंता पदार्थोनो संग ते
सेवी रह्यो छे.
वगर मात्र निमित्तना लक्षे हा पाडे तेथी धर्म थाय नहि.
वखतना निमित्तनुं ज्ञान कराववा माटे ‘आणे आ कर्युं’ एम उपचारथी मात्र कहेवुं ते व्यवहार छे. पण जीव
परनुं व्यवहारे करी शके छे एम मानवुं ते व्यवहारनय नथी, ते तो मिथ्यात्व छे.
बोलवुं ए बधी जड द्रव्यनी स्वतंत्र क्रियाओ छे. पहेलांं ए नक्की करो के ‘खावुं’ एटले शुं? ते कोई द्रव्य छे? गुण
छे? के पर्याय छे? खावुं ते जड परमाणुओनी पर्याय छे. अमुक वस्तु बहार हती ते क्षेत्रांतर थईने पेटमां पडी तेने
लोको ‘खाधुं’ कहे छे. ए तो जडनी क्रिया छे, तेमां जीवे शुं कर्युं? जीव खातो नथी, अने जड पण खातुं नथी. ‘खाधुं’
ते तो बोलवानी रीत छे, परमाणुना पर्यायने ओळखवा माटेनुं एक नाम छे. ‘छींक खाधी, बगासुं खाधुं, थाक
खाधो’ ए वगेरे बोलाय छे ते जुदी जुदी दशाने ओळखवानी भाषा छे, जडनी अवस्थानुं ते परिणमन छे, आत्मा
व्यवहारे पण तेने करतो नथी. पण आत्मा पोताना ज्ञान सहित परनुं ज्ञान करे ते ज्ञानने व्यवहारनय कहेवाय छे.
पोताना स्वभावनुं ज्ञान करे ते निश्चयनय छे, अने परनुं ज्ञान करे ते व्यवहारनय छे. पण निश्चयनयथी पोताना