Atmadharma magazine - Ank 055
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४७४ : १२१ :
एक दिवसे श्रेयांसकुमारने सात महा मंगळ
स्वप्नो आव्यां. तेनुं फळ पूछतां तेमणे जाण्युं के कोई
महा–पुरुषनुं शुभागमन पोताने त्यां थशे. आथी
बन्ने भाईओने अपार हर्ष थयो. तेओ ते
महापुरुषना आववानी राह जोई रह्या हता.
एवामां श्री आदिनाथ मुनिराज फरतां फरतां
राज–महेल पासे पधार्या, ते सांभळतांज बन्ने
भाईओ प्रभु पासे दोडया अने तेमना दर्शनथी बहु ज
आनंदित थया.
भगवाननुं दिव्य रूप देखतां ज श्रेयांसकुमारने
जातिस्मरण ज्ञान थयुं अने पूर्व भवमां एकवार
भगवान साथे पोते मुनिओने आहारदान कर्युं हतुं ते
प्रसंग याद आव्यो, तेथी मुनिओने कई रीते
आहारदान कराय तेनी तेमने खबर पडी गई.
तरत ज नव प्रकारनी भक्तिपूर्वक भगवानने
आहार माटे आमंत्रण कर्युं अने बहुज विनय,
बहुमान ने प्रसन्नताथी भगवानने पोताना महेलमां
लई गया. त्यां पूजन वगेरे विधि कर्या पछी
श्रीश्रेयांसकुमारे भगवानना हाथमां शेरडीना पवित्र
रसनी धारा रेडी...अने ते शेरडीना रसथी भगवाने
पारणुं कर्युं.
(४) अक्षय त्रीज
आ दिवसे वैशाख सुद त्रीज हती.
आ महा पवित्र दानथी देवो पण प्रभावीत थया
अने आकाशमांथी रत्नोनो वरसाद वरसाव्यो, देवोनां
वाजां वगाड्यां फूल वर्षाव्या, दशे दिशा प्रकाशमान थई
गई. सुगंधी पवन वहेवा लाग्यो अने जय जयकार
ध्वनि सहित “
अहो दानम् अहो दानम्” एम कहीने
दाननी प्रशंसा करी. श्रेयांसकुमारने त्यां ऋषभदेव
भगवानना पारणाना समाचार सांभळीने आखी
दुनिया आनंद पामी, अने ए दाननुं अनुमोदन कर्युं.
श्रीऋषभदेव भगवान आहार करी लीधा पछी
जंगलमां विहार करी गया. आ काळमां सौथी पहेलांं
आहारदाननी रीत श्रेयांसकुमारे शरू करी, तेथी देवोए
तेमनी खूब प्रशंसा करी, भरत चक्रवर्तीए पण तेमनुं
खूब सन्मान कर्युं. आचार्यो कहे छे के तीर्थंकरोने सौथी
पहेलांं आहारदान करनार जीव नियमथी ते ज भवे
मोक्ष पामे छे. श्री श्रेयांसकुमार पण तेज भवमां
अक्षय आत्मसुखने पाम्या.
वैशाख सुद त्रीजने दिवसे ऋषभदेव भगवाने
ईक्षुरसथी पारणुं कर्युं तेमज पारणुं करावनार श्री
श्रेयांसकुमार
अक्षयसुख पाम्या तेथी ते दिवस “अक्षय त्रीज” तरीके
ओळखाय छे, ने आजे पण जगतमां मंगळ–दिवस
तरीके उजवाय छे.
[श्रीऋषभदेव भगवानना पारणानुं सुंदर द्रश्य
‘भगवान श्री कुंदकुंदप्रवचनमंडप–सोनगढ’ मां छे, जे
जोतां मुमुक्षुहृदयमां अत्यंत भक्ति जागृत थाय छे.
]
३. द्रव्यत्वगुणनी समजण
बाळको, आ वखते तमने ‘द्रव्यत्व’ नामना
गुणनी समजण आपवानी छे. आ जगतमां जीव अने
अजीव एवी बे जातनी वस्तुओ छे. जेनामां ज्ञान
होय ते जीव छे ने जेनामां ज्ञान न होय ते अजीव छे.
जीव अने अजीव बंने वस्तुओमां पोतपोताना गुणो
होय छे.
ते बंनेमां अस्तित्व नामनो गुण छे. तेथी
तेओनो कदी नाश थतो नथी.
ते बंनेमां वस्तुत्व नामनो बीजो गुण छे. तेथी
वस्तु पोताना गुणपर्यायने पोतामां धारण करी राखे
छे, ने पोतेपोताना गुणपर्यायमां वसे छे. आटली
समजण अत्यार सुधीमां तमने बाल विभागमां
अपाई गई छे.
त्रीजो द्रव्यत्व नामनो सामान्य गुण छे. आ
गुण जीवमां पण छे ने अजीवमां पण छे. द्रव्य सदाय
एक सरखुं रहेतुं नथी पण तेनी हालत सदाय
बदलाया करे छे–आने द्रव्यत्व कहेवाय छे.
द्रव्यत्वगुण बधी वस्तुओमां छे तेथी बधी
वस्तुओनी अवस्थानो फेरफार तेना पोताथी ज थाय
छे, द्रव्यत्वगुणने लीधे वस्तुनी हालत सदा बदलाया
ज करे छे, पण कोई बीजो तेनी हालत बदलावतो
नथी. जडमां य द्रव्यत्व गुण छे, तेथी शरीरनी दशा
एनी मेळे बदलाया करे छे, जीव तेने बदलावनो नथी.
जीवमां अज्ञान दशा छे ते सदाय एक सरखी रहेती
नथी, पण अज्ञानदशा पलटीने ज्ञानदशा थई शके छे.
पहेलांं ओछुं ज्ञान होय ने पछी वधारे ज्ञान
थाय, त्यां ज्ञाननी दशानो फेरफार पोताना
द्रव्यत्वगुणने लीधे थयो छे. शास्त्रमांथी ज्ञान आव्युं
नथी पण ज्ञानगुण पोते ज एक दशामांथी बीजी
दशामां बदल्यो छे.
माटीमांथी घडो थाय छे, त्यां अजीवना
द्रव्यत्वगुणने लीधे माटी पलटीने घडो थयो छे, कुंभारे
ते माटीनी हालत बदलावी नथी.
सिद्ध भगवानमां पण द्रव्यत्वगुण होय छे तेथी
तेमनी हालत पण बदलाया ज करे छे.