Atmadharma magazine - Ank 055
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १२२ : आत्मधर्म : ५५
द्रव्यत्वगुणने लीधे एम समजाय छे के–
जगतनी बधीये वस्तुओ पोतानी हालत पोतानी मेळे
ज बदलाव्या करे छे. कोई पदार्थनी हालत बीजो पदार्थ
करतो नथी. अजीवनी हालत जीव न बदलावे अने
जीवनी हालत अजीव न बदलावे.–आम दरेक वस्तुनी
स्वतंत्रता ओळखाय छे. पोतानी मेली दशा टाळीने
पवित्र दशा प्रगट करवा माटे बीजा कोईनी मदद नथी,
आम समज–वाथी बीजा उपरनो मोह टळे छे ने
पोतानुं साचुं ज्ञान प्रगट थाय छे. माटे तमे आ
द्रव्यत्वगुणने बराबर ओळखजो.
जीवमां ज्ञान छे, अजीवमां ज्ञान नथी.
जीवमां अस्तित्वगुण छे, अजीवमां पण छे.
जीवमां वस्तुत्वगुण छे, अजीवमां पण छे.
जीवमां द्रव्यत्वगुण छे, अजीवमां पण छे.
चैत्र मासना प्रश्नोना जवाब
(१) आ आत्मा पोते ज आत्मदेव छे. ते
पोताना ज्ञानथी बधाने जाणे छे. अरिसानी जेम तेना
ज्ञानमां आखुं विश्व झळके छे, ते जगतथी जुदो छे,
शरीरथी जुदो छे, पोते ज भगवान छे ने पोते ज
परमेश्वर छे, ते आनंदथी भरेलो छे, तेने जन्म के
मरण नथी, ते राजा के रंक नथी, ते तो ज्ञान अने
आनंदनो दरियो छे. आवो आतमदेव आंखथी देखातो
नथी, कानथी संभळातो नथी पण साचा ज्ञानथी ते
जणाय छे. बाळको, तमे साचा ज्ञान वडे आत्मदेवना
दर्शन करजो.
(२) दरेक द्रव्य त्रिकाळ छे, तेनो कदी नाश
थतो नथी. आवी शक्ति दरेक द्रव्यमां छे, तेने
अस्तित्वगुण कहेवाय छे. आ गुण जीव अने अजीव
बधा द्रव्योमां छे. आने सामान्य गुण कहेवाय छे.
(३) ज्ञान अने सुख ए बे गुणो जीवमां छे.
रंग गुण अजीवमां (पुद्गलमां) छे.
अस्तित्व अने वस्तुत्व ए बे गुणो जीवमां
पण छे ने अजीवमां पण छे.
(४) ‘कुंदकुंद’ आचार्य भगवान.
आ वखते कुल ७२ बाळकोना जवाब आव्या
हता, तेमांथी नीचेना ४८ बाळकोना जवाब साचा हता,
(१–४) अमदावाद: प्रमोद, किरीट, नलिनी बेन,
रमीला बेन. (५–७) सावरकुंडला:– वसंत, राजेन्द्र, कान्ति.
(८–१०) जामनगर–हरसुख, ललिता बेन, कंचनबेन.
(११–१३) वढवाण शहेर: विनय, मंजुला बेन,
रसिक. (१४–१५) वींछीया: भूपेन्द्र, उत्तमलाल.
(१६–१७) अमरेली: विनोदराय, कैलास. (१८)
माणेकलाल–मोरबी. (१९) शांतिलाल–वांकानेर.
(२०) किशोरकांत–कलकत्ता. (२१) कैलासचंद्र–दाहोद.
(२२) चंपकलाल–धूलिया. (२३) हसमुख बोटाद,
(२४) कान्तिलाल–राणपुर. (२५–२६) मुंबई:
कुसुमबेन, जगदीशचंद्र. (२७) कान्तिलाल–लाठी.
(२८) कंचनबेन वढवाण केम्प. (२९) राजेन्द्र–
आमोद. (३०) चंद्रप्रभा सोनगढ (३१) वीरबाळा–
बोरसद, (३२) नवनीतलाल मोगरी. (३३–३४–
३५–३६) वींछीया: रसिकलाल, जसवतीबेन,
मंजुलाबेन, स्नेहलत्ताबेन (३७) हरिहर–अमदावाद
(३८–४०) मोरबी: वसंतबेन, भूपतराय,
हसमुखलाल. (४१) सुशीलाबेन: सोनगढ (४२)
छबीलदास–कलकत्ता (४३) अनीलकुमार: लीमडी
(४४–४६) वींछीया: मंछाबेन, मंजुलाबेन,
रसिकलाल. (४७–४८) मोरबी: चंद्रकान्ता, इंदुलाल.
नवा प्रश्नो
(१) खरेखर पंडित कोने कहेवाय? ने मुर्ख कोने
कहेवाय?
(२) नीचेना वाक्योमांथी जे खोटा होय ते सुधारो–
१. एक जीव पासे घणा पैसा हता तेथी ते सुखी हतो.
२. जे जीव साचुं ज्ञान करे ते सुखी थाय.
३. एक ज्ञानी पासे पैसा न हता तेथी ते दुःखी हता.
४. जो निरोग शरीर होय तो धर्म झट थई शके.
५. शरीरनी क्रियाथी धर्म थाय छे.
(३) द्रव्यत्व गुणने ओळखवाथी जीवने शुं लाभ थाय छे?
वधारानो प्रश्न
(४) एक जीव पासे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
अने सम्यकचारित्र ए त्रण रत्नो हता तेमांथी एक
सम्यग्दर्शन रत्न खोवाई गयुं. तो तेनी पासे क्या क्या
रत्नो बाकी रहेशे? ते जणावो.
‘आत्मधर्म मळ्‌या पछी जेम बने तेम
वहेलासर जवाबो मोकली देवा विनंती छे. जवाबो
नीचेना सरनामे मोकलवा–
आत्मधर्म–बालविभाग.
सोनगढ–काठियावाड