‘दस–लक्षणपर्व’ कहेवाय छे अने तेज साचा पर्युषण छे. आजे उत्तममार्दवधर्मनो दिवस होवाथी
पद्मनंदीपंचविंशतिका–शास्त्रमांथी तेनुं वर्णन वंचाय छे, तेना वर्णनना बे श्लोक छे. उत्तम मार्दव एटले उत्तम
निराभिमानता. सम्यग्दर्शन सहित निराभिमानता ते उत्तम मार्दवधर्म छे. उत्तमक्षमामार्दव वगेरे दश धर्मो
जात्यादिगर्वपरिहरमुषन्ति सन्तः।
तद्धार्यते किमु न बोधद्रशा समस्तं
स्वप्नेन्द्रजालसद्रशं जगदीक्षमाणैः।।८७।।
मार्दवने केम न धारे? अर्थात् अवश्य धारण करे छे.
दया–भक्ति के व्रत वगेरे शुभराग ते धर्म नथी, तेमज ते धर्ममां मददगार नथी. आत्मा चैतन्यस्वरूप छे, ते
विकार रहित छे, आम पोताना निश्चयस्वभावनी ओळखाणवडे सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान प्रगट कर्या पछी
विशेष स्वरूपस्थिरताथी चारित्रदशा प्रगटे छे, ने दशामां धर्मीजीवने एवी आत्मस्थिरता होय छे के जाति–कुळ
वगेरेना अभिमाननो विकल्प पण उठतो नथी, एनुं नाम उत्तममार्दवधर्म छे. जे चैतन्यस्वरूप आत्माने
ओळखे नहि अने शरीर–कुटुंब कुळ वगेरेने पोतानां माने तेने कदी जाति–मद वगेरे टळे नहि अने तेने
उत्तममार्दव धर्म होय नहि. धर्मी जीवने खरेखर जाति–कुळ–धन वगेरेनो मद होतो नथी. केम के ते जाणे छे के हुं
तो चैतन्यस्वरूप आत्मा छुं, आत्माने शरीर ज नथी, अने माता–पिता, कुळ, जाति, धन वगेरे पण आत्माने
होय ज. आत्मानी जाति शुद्धचैतन्यधातु नित्य आनंदकंद छे, वीतरागता आत्मानुं कुळ छे ने चैतन्य केवळज्ञान
लक्ष्मीनो पोते स्वामी छे. ए सिवाय बीजा कोई जाति–कुळ के लक्ष्मीने ज्ञानी पोतानुं मानता नथी, तेथी तेमने
तेनुं अभिमान होतुं नथी. शरीर के शरीर संबंधी कोई पदार्थो ज्ञानीने पोतापणे भासता नथी, राग के अधूरा
ज्ञानने पण ते पोतानुं स्वरूप मानता नथी. पण परिपूर्ण स्वभावने ज पोतानो जाणीने तेनी श्रद्धा करे छे.
आम होवाथी ज्ञानीने जातिमद–कुळमद–ज्ञानमद के बळमद होता नथी. जाति–कुळ वगेरेने पोताथी जुदा जाण्या
छे तेथी तेनुं अभिमान थतुं नथी. ए रीते, सम्यग्ज्ञान ज उत्तम मार्दवधर्मनुं मूळ छे–एम अहीं बताव्युं छे.