छे. बहारना पदार्थोथी पोताने मोटो मानवो ते मद छे, अने मारी जाति हलकी, मारुं कुळ हलकुं वगेरे प्रकारे
बहारना पदार्थोथी पोताने हलको मानवो ते पण मद छे, केम के तेणे जाति–कुळमां अहंपणुं कर्युं छे.
तेनुं ज जेने भान नथी एने उत्तम मार्दव धर्म क्यांथी होय? आत्मा नित्य ज्ञानघन छे, देहादि अनित्य संयोगो
ते आत्मानुं स्वरूप नथी. जेम ‘घीनो घडो’ एम बोलाय छे पण ते खरुं वस्तुस्वरूप नथी, तेम ज्ञानीने
ओळखवा माटे एम बोलाय के आ माता, आ पिता, आ कुळ, आ जाति. परंतु खरुं स्वरूप एम नथी. ज्ञानीने
तेमना आत्माथी ओळखवा ते ज साची ओळखाण छे. आत्मानो संसार माता–पिता–स्त्री शरीर वगेरेमां नथी
पण पोताना पर्यायमां ज जे अज्ञान अने रागद्वेष छे ते ज संसार छे. आत्मानो संसारभाव आत्मानी दशामां
छे. पोते पोताने चैतन्य स्वरूपे न जाण्यो ने शरीरवाळो मान्यो तेथी शरीरना संबंधी माता–पिताने पोताना ज
माता–पिता माने छे, अने तेथी जीवने शरीरना रूप वगेरेनुं अभिमान होय छे.
टळे छे. आ शरीर तो जड परमाणुओ छे–माटी छे. जे जीव शरीरना बळनुं अभिमान करे छे ते जीव जडनो
अनादर करीने शरीरना बळ वगेरेनो अहंकार करनार जीव मोटो हिंसक छे. शरीर मारुं, शरीरनी क्रिया हुं करी
शकुं अने शरीर बळ सारूं होय तो धर्मध्यान बराबर थई शके–एम जे माने छे ते जीव आत्मानी हिंसा
करनारो छे. आत्मा शरीरादिनुं कांई करी शके नहि. आत्मानुं बळ (–पुरुषार्थ) कां तो अज्ञानभावे पुण्य–
पापमां अटके अने कां तो असंग स्वभावने ओळखीने तेमां राग–द्वेष रहित स्थिरता प्रगट करे.
पछी जे अल्प रागनी वृत्ति ऊठे तेनो ज्ञानीने निषेध छे. अहीं तो एवी वात छे के ते रागनी वृत्ति ऊठवा ज न
देवी, ने वीतरागपणे स्थिर रहेवुं–ते उत्तम मार्दव धर्म छे, अने ते धर्म मोक्षमार्गमां विचरता मुनिओने
सहचारीपणे होय छे.
होय ते ‘परनुं हुं करुं’ एवुं अभिमान करे नहि, राग–द्वेषने पोतानुं स्वरूप माने नहि.
गुणस्थान सुधीनुं बधुंय ज्ञान अल्प छे, केवळज्ञानना अनंतमा भागनुं छे, ते तूच्छ पर्यायनुं अभिमान ज्ञानीने
नथी, पण अनंत चैतन्य स्वभावना विनय अने महिमाथी स्वभावमां लीन थईने, अधूरा ज्ञाननो विकल्प
अभिमान थाय छे ते जीव पर्यायद्रष्टिवाळो मिथ्याद्रष्टि छे, तेणे पूरा स्वभावने जाण्यो नथी तेथी थोडाक
जाणपणानो महिमा अने अभिमान थाय छे. कोई जीवो सत् स्वभाव समज्या वगर मंद कषाय करीने
निर्मानता राखे ते तो पुण्यबंधनुं कारण छे, अहीं तेनी वात नथी, पण धर्मात्माने स्वभावनी जागृतिपूर्वक
वीतरागभाव प्रगटतां मदनो विकल्प ज थतो नथी, ते ज साचो मार्दव धर्म छे. स्वभाव जाण्या वगर पर्यायनुं
अभिमान टळे नहि, ने तेने धर्म थाय नहि.
वखाण अमे शुं करी शकीए? अमारुं ज्ञान अत्यंत अल्प छे,