आचार्यो–संतो तो महा ज्ञानना सागर छे, अगाध बुद्धिवाळा छे, एकदम आराधक दशा प्रगटी छे, छतां तेमने
केटली निर्मानता छे? ज्ञाननो जरा पण गर्व करता नथी. अधूरी दशा के पूरी दशा एवो विकल्प तोडीने वारंवार
स्वरूपमां लीन थई जाय छे.–आनुं नाम मार्दव धर्म छे. पर्यायद्रष्टि छोडीने अखंड स्वभावना श्रद्धा–ज्ञान टकावी
बचवा माटे धर्मी गृहस्थने पूजा भक्ति वगेरेनो शुभ राग होय छे, खरो, परंतु ते शुभराग कांई धर्म नथी. पण
रागरहित चैतन्यस्वभावनी श्रद्धाज्ञान पूर्वक जेटलो राग टाळ्यो तेटलो धर्म छे. राग रह्यो ते धर्म नथी.
जगतमां कोईनी साथे संबंध ज नथी.–आवुं जाणनारा ज्ञानीओने मान क्यांथी होय? अर्थात् न ज होय.
मुनिने तो माननी वृत्ति ज ऊठे नहि ते निर्मानता छे, अने गृहस्थने कोई मानादिनी लागणी थई जाय तो पण
ते तेना ज्ञाता ज छे, मानादिथी भिन्न स्वरूपना श्रद्धा–ज्ञाननी ज द्रढता तेमने थाय छे. नित्य अबंध चैतन्य–
स्वभाव छुं. एम स्वभावनी प्रभुता पासे ज्ञानीने अधूरा पर्यायनी पामरता भासे छे, तेमने क्षणिक पर्यायनुं
कायादौतुजरादिभिःप्रतिदिनं गच्छत्यवस्थांतरम्।
इत्यालोचयतो हृद्रि प्राशमिनः भास्वद्विवेकोज्वले
गर्वस्यावरसः कुतोऽत्र घटते भावेषु सर्वेष्वपि।।८८।।
धारण करे छे,–एम निरंतर पोताना निर्मळ हृदयमां सम्यग्ज्ञानरूपी उजवळ विवेकथी शरीरनी अनित्यतानुं
चिंतवन करनारा मुनिने जगतना सर्व पदार्थोमां गर्व करवानो अवसर ज कई रीते छे? अर्थात् जेओ धु्रव
नित्य चैतन्य स्वभावने जाणीने अने शरीरने अनित्यताने जाणीने, निर्मळ आत्मध्यानमां मग्न छे ते
मुनिओने जगतमां कोई पदार्थोनो गर्व होतो ज नथी.
आचार्यदेव समजावे छे के आ शरीर अनित्य छे, वृद्धावस्थावाळुं छे, सदाय ते पोतानी दशा बदलतुं बदलनुं
जीर्णताने पामे छे, जेवी अवस्था आज होय छे तेवी अवस्था काल देखाती नथी, एवा आ अनित्य शरीरने
कोई रीते रोकी शकाय तेम नथी. ज्यां आ शरीर ज पोतानुं नथी त्यां बीजा क्या पदार्थो पोताना होय?
आत्मानो चैतन्यस्वभाव ज धु्रव अने नित्य एकरूप छे, ते कदी जीर्ण थतो नथी, ने तेमां आग लागती नथी.
आम, शरीरादिनी अनित्यता अने पोताना चैतन्यस्वभावनी नित्यतानो पोताना अंतरमां भेदज्ञानवडे विचार
करनारा जीवोने आ जगतमां कोई पदार्थोनो गर्व थवानो अवकाश ज नथी. ज्यां शरीरने ज पर जाण्युं त्यां
बीजा कोनो अहंकार करे!
अने शरीर तो जड परमाणुनुं बनेलुं छे. आत्मा कदी पण शरीरादिने अडयो पण नथी, आत्मा तो अस्पर्शी छे.
द्रव्यमां अभेद एकाकार थईने सदाय एवी ने एवी रहेशे, पण शरीरनी कोई अवस्था मारी साथे रहेनार