आजथी लगभग बे हजार वर्ष पूर्वे करी. तेनी दरेक
बाद लगभग एक हजार वर्षे भगवान
श्रीअमृतचंद्राचार्य थया. तेमणे ते ते शास्त्रोनी दरेक
गाथामां जे रहस्य गुप्त पड्युं हतुं तेने दोहीने अर्थात्
तेना उपर टीका रचीने रहस्य प्रगट कर्युं. ते पछी
लगभग एक हजार वर्षे पूज्य श्री कानजी स्वामी
थया. जेम भेंसना आउमां अर्धो मण दूध भयुृर्ं होय
तेने दोहीने बहार काढ्युं होय तो ते दोहनारनुं केटलुं
सामर्थ्य छे ते जणावे छे, तेम तेओ श्री समयसारादि
सुगम–सरळ–छतां उच्च तत्त्वने प्रगट करतुं विस्तृत
विवेचन करे छे, तेथी तेमनामां ज्ञानानुभवनुं केटलुं
सामर्थ्य छे तेनी साबिती तेमनां प्रवचनोनां प्रत्यक्ष
श्रवणथी तथा प्रसिद्ध थयेला तेमनां प्रवचनग्रन्थो
उपरथी मळी आवे छे.
श्री अमृतचंद्राचार्य देवे तेना उपर टीका रची मंदिर
पूज्य श्री कानजी स्वामीए तेना उपर प्रवचनो करी
ध्वजा फरकावी. आ रीते तेओश्रीनो जगतना भव्य
जीवो उपर महान उपकार वर्ते छे.
प्रगटता पामती शासन प्रभावना! भक्तिभावे
नमस्कार हो ते युगावतार भगवन्तोने!!
मारी अपेक्षाए आखुं जगत अवस्तु छे अने
आखा जगतनी बधी वस्तुओनी अपेक्षाए हुं
अवस्तु छुं. ‘अवस्तु’ एटले शुं? दरेक वस्तु
पोताना अस्ति–नास्ति स्वभावमां रहेली छे;
पदार्थोनी अपेक्षाए अवस्तु छे. ए रीते
अवस्तुपणुं अर्थात् नास्तिपणुं ए दरेक वस्तुनो
एक धर्म छे. चैतन्य वस्तुनो ‘नास्ति’ धर्म एवो
छे के ते कदी परमार्थे विकारपणे के जडपणे थतो
नथी. एवां त्रिकाळी चैतन्य स्वभावनी श्रद्धा तेनुं
ज्ञान अने तेमां स्थिरता रूप चारित्र ते ज
मोक्षमार्ग छे. आत्मानी अवस्था पण चैतन्यरूप
छे; आत्मानी अवस्था स्वपणे छे, पर द्रव्यनी
साथे नास्तित्व संबंध छे एटले के परद्रव्यो अने
आत्मा तो सदाय भिन्न छे.
नथी. बधा पदार्थोथी भिन्न पोताना स्वभाव साथे ज
संबंध (–एकता) करीने श्रद्धा, ज्ञान अने स्थिरता
करवां ते ज धर्म छे. पर साथे तो कदी संबंध नथी;
विकार साथे क्षणिक संबंध छे, पण चैतन्यस्वभावमां
अभेद थतां पर्याय चैतन्यस्वभावमां भळी गई अने
विकार साथेनो क्षणिक संबंध पण न रह्यो. अस्ति–
वीतरागभाव प्रगटे छे; केमके अस्तिधर्म स्वभाव साथे
एकता करावे छे अने नास्तिधर्म पर भावो साथेनी
एकताने तोडावे छे.
ते माटे, अमरेलीना भाईश्री मोहनलाल त्रीकमजी देशाईए आत्मधर्मनो आ वैशाख मासनो अंक ३२ पानानो
काढवा जणाव्युं छे, ने तेमां जे वधारानुं खर्च थाय ते तेमना तरफथी आपवामां आव्युं छे. आ माटे तेमनो