प्रश्न:–परजीवोनुं जीवन के मरण तेना कारणे थाय छे, ‘हुं तेनुं कांई न करी शकुं, हुं तो मात्र जाणनार
अज्ञानीओ भले तेने निष्ठुर कहे. संसारमां पण एकनो एक वीस वर्षनो पुत्र मरी जाय त्यां कांई तेनो बाप
साथे मरी जतो नथी, तो तेने केम निष्ठुरता कहेता नथी? ए निष्ठुरता नथी पण ते प्रकारनो विवेक छे.
जगतना जीवो पण विकारना लक्षे निष्ठुर (लागणी रहित) थई जाय छे. घरमां वीस वर्षनी जुवान बाई
विधवा थई होय अने ६० वर्षनो डोसो विषयमां लीन थई रह्यो होय, जुओ तो खरा! तेनां परिणाम केटला
निष्ठुर छे? अज्ञानीओ कषायना लक्षे निष्ठुर–लागणीहीन थाय छे, ज्यारे ज्ञानीओ पोताना चैतन्यस्वभावना
लक्षे एकाग्र थईने विकारी लागणीओथी रहित सिद्ध थाय छे, तेओने तो वीतरागी कहेवाय छे. जे जीवो विकारी
लागणी करे छे ते परने माटे करता नथी पण पोताने ते जातनो कषाय होवाथी ते लागणी थाय छे. ए
लागणीने जे करवा जेवी माने–फरज माने ते मिथ्याद्रष्टि छे.
‘नानाभाईनी स्त्री आपणो हरख सहन नहि करी शके’ एम धारीने खरा प्रसंगे शेठे तेने पीयर मोकली दीधी,
अने पोते मोज शोखथी हरख पूरां कर्यां. जुओ, स्वार्थीनां निष्ठुर परिणाम! पोताने जे राग रुच्यो छे ते
साधवा माटे परनी दरकार करतो नथी. तेम ज्ञानीओ पोताना वीतरागस्वभावने साधवा माटे परनी दरकार
करता नथी. दयादि विकारी वृत्ति थई जाय तो तेना प्रत्ये एम विचारे छे के अमारा मोक्षदशानां हरख
(वीतरागी भाव) तमाराथी सहन नहि थाय माटे तमे बधा विकल्पो तमारा घरमां चाल्या जाव. ए रीते बधा
भेदविकल्पोने तोडवानी भावना करे छे. जो रागरहित थईने आ ज क्षणे चैतन्यस्वरूपमां लीन थवातुं होय तो
मारे दया के भक्तिनी लागणीओ पण जोईती नथी.
मूकीने पोताने जे गोठ्युं ते करवा मागे छे. सगा संबंधीनो राग गोठयो त्यां सुधी राख्यो अने ज्यां
रुचि बीजे फरी त्यां ते राग तोडयो. तेम ज्ञानीओने पुरुषार्थनी नबळाईथी अल्प राग थाय छे, पण
खरा प्रसंगे पुरुषार्थनी ऊग्रता वडे ते तोडीने स्वभावमां समाई जाय छे. फेर एटलो छे के अज्ञानीने
रागथी भिन्न चैतन्यस्वभावनुं भान नहि होवाथी ते परलक्षे रागने बदल्या करे छे, अने ज्ञानीओने
रागथी भिन्न चैतन्यस्वभावनुं भान होवाथी तेओ चैतन्य स्वभावना लक्षे रागनो अभाव करे छे.
ज्ञानीओ जगतनी दरकारमां के रागमां रोकाता नथी, हुं कोई परद्रव्यनो कर्ता नथी अने विकल्पनो पण
करता नथी, ए निष्ठुरता नथी, परंतु स्वभावदशा छे, वीतरागतानी साधक दशा छे, अने तेनुं फळ
वीतरागता ने केवळज्ञान छे.
चैतन्य स्वभावनी जागृति करीने मुक्त परिणतिने वरवाने माटे अप्रतिहतपणे आगळ चालीए छीए. ज्ञानीओने
पोतानो स्वभाव रुचे छे तेथी तेओ स्वभावने खातर अन्य सर्व प्रकारना रागनो नाश करवा मागे छे.