Atmadharma magazine - Ank 055
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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वैशाख : २४७४ : १०१ :
छुं; में कदी व्यवहार कर्यो ज नथी, रागरूपे हुं कदी थयो ज नथी, पूर्वे अनंत काळमां हुं सदाय चैतन्यमय ज हतो, हुं विकारी
थयो ज नथी. हुं त्रणेकाळे चैतन्यमय शुध्ध ज्ञायक ज्योति छुं, संसारभावने बाळनार छुं पण तेने टकावनार नथी.
जेम अग्नि पासे उधई बळी जाय छे तेम चैतन्यज्योत पासे विकार नष्ट थई जाय छे. हुं चैतन्यमय
परमज्योति छुं, रागनो करनार के रागनो टाळनार हुं नथी. मारा स्वभावमां राग होय तो टाळुंने?
स्वभावमां कदी राग छे ज नहि माटे हुं रागनो टाळनार पण नथी. चैतन्यमय स्वभाव सदाय शुद्ध छे. आम
पोताना स्वभावनुं सेवन करवाथी विकार स्वयं टळी जाय छे अने मोक्ष दशा प्रगटे छे. माटे मोक्षार्थीओए आ
सिद्धांतनुं ज सेवन करवुं, तेमां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे समाई जाय छे.
श्री आचार्यदेवे अहीं मोक्षार्थीओने ज संबोधन कर्युं छे, स्वच्छंदी जीवोनी वात लीधी नथी. जेओ व्यवहारथी
पण भ्रष्ट थईने पोताना स्वच्छंदे प्रवर्ते छे तेओ तो महा पापी अनंतसंसारी छे. व्यवहारना सेवनथी धर्म थतो
नथी, तो पण मुमुक्षु जीवोने पहेली भूमिकामां व्यवहार होय छे. साचा देव–गुरु–शास्त्र प्रत्येनी अत्यंत भक्ति–
बहुमान, विनय, एकदम नम्रता, अर्पणता मुमुक्षुने होय ज, जगत पासेथी मान लेवानी दरकार न होय. जेनी
पासेथी एक अक्षर मळे तेनो पण विनय भूलाय नहि, तो जे सद्गुरुए आखो आत्मा समजाव्यो तेमना प्रत्ये
मुमुक्षुने केटली अर्पणता अने विनय होय! सद्गुरुना विनयने लोपे ते महा स्वच्छंदी छे. शास्त्रोनुं ज्ञान मेळवीने
तेनाथी जे सांसारिक प्रयोजन पोषे छे ते पण महा पापी अनंतसंसारमां रखडी मरनार छे. सत्शास्त्रोना ज्ञाननुं
प्रयोजन तो वीतरागभाव करवानुं हतुं तेने बदले तेनाथी ज रागभावने अने स्वच्छंदने जे पोषे छे ते जीव
आत्मानो महा विराधक छे. एवा जीवोनी तो वात ज नथी. तेओ तो आवी मोक्षनी वातनुं श्रवण करवाने पण
लायक नथी. आत्मार्थी जीव तो देव–गुरु पासे एकदम निर्मान–निर्मान थई जाय, जाणे के हुं मरी गयो छुं–मडदुं छुं–
एवी निर्मानता होय. अनंतकाळथी हुं मारा स्वभावनो अजाण छुं, मारे आत्मा सिवाय कांई जोईतुं नथी, हुं अत्यंत
पामर छुं, हुं कांई ज जाणतो नथी, मने स्वभावनो लाभ केम थाय? एम अत्यंत पात्र थईने, स्वच्छंदताने सर्वथा
छोडीने, झंखना करतो करतो सद्गुरुना चरणे अर्पाई गयो छे–एवा मोक्षार्थीने आचार्यदेव आ वात करे छे अने
एवो मोक्षार्थी चोक्कस आ वात समजीने स्वभाव पामी जाय छे.
व्यवहारने लीधे निश्चय पमाय ए मान्यता खोटी छे, परंतु ‘देव–गुरु–शास्त्रना विनय वगर हुं मारी
मेळे निश्चय पामी जउं’ एम मानीने जे व्यवहारथी ज भ्रष्ट थईने स्वच्छंद सेवे छे ते तो महा अपात्र छे. ऊंची
अध्यात्मनी वात ज्यारे प्रचारमां आवी छे अने घणुं आध्यात्मिक साहित्य बहार आव्युं छे, त्यारे ते सांभळीने
के वांचीने अनेक जीवो पोताना नामे लोको पासे वात करवा मंडी पड्या छे अने ए रीते पोतानुं मान पोषी
रह्या छे, ते जीवो एकला स्वच्छंदी छे, अने महा मोहनीयकर्म बांधीने अनंत भवमां भटकवाना छे.
सद्गुरु ज्ञानीना चरणे विनय अने अर्पणता वगर पोतानी मेळे एक अक्षर पण सवळो परिणमवानो नथी.
वैशाख अने जेठ मासना मांगळिक दिवसो
वैशाख सुद २ सोमवार: परम पूज्य परम उपकारी वैशाख वद ८ सोमवार: श्री शांतिनाथ प्रभुनां
श्री कानजी स्वामीनी ५९मी जन्म जयंति. जन्म–तप तथा मोक्ष कल्याणकनो दिवस अने
वैशाख सुद ३ मंगळवार: अक्षयत्रीज. दानतीर्थ श्री जैन स्वाध्यायमंदिर–सोनगढ–ना उद्घाटननो
प्रवर्तननो दिवस. भगवान श्री ऋषभदेवने तथा तेमां श्री समयसार शास्त्रजीनी
श्रेयांसकुमारे सौथी पहेलुं आहारदान कर्युं. स्थापनानो ११ मो वार्षिक उत्सव.
वैशाख सुद १० मंगळवार: श्रीमहावीर भगवाननो जेठ सुद प शुक्रवार: श्रुतपंचमीःश्री भूतबली
केवळज्ञानकल्याणक दिवस. आचार्यदेवे चतुर्विध संघसहित श्री षट्खंडागमनी
वैशाख वद ६ शनिवार: सोनगढना पूजानो उत्सव कर्यो हतो ते दिवस.
समवसरणमंदिरमां श्रीसीमन्धर भगवाननी जेठ वद २ बुधवार: श्री ऋषभदेव
चौमुखी प्रतिमानी तथा श्रीकुंदकुंदाचार्यदेवनी भगवानना गर्भ–कल्याणकनो दिवस.