Atmadharma magazine - Ank 056
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १४० : आत्मधर्म जेठ : २४७४
जे शुद्धतानो अंश प्रगट्यो छे अने भावनमस्कारनो विकल्प छे–ते बंनेने अहीं अशुद्धनिश्चयनयनो विषय
गण्यो छे. एक अंश शुद्धता ते त्रिकाळ स्वभाव नथी माटे अशुद्धनिश्चयनयनो विषय छे. वाणीथी नमस्कार
कहेवा ते असद्भूत व्यवहारनयनो विषय छे.
द्रव्यसंग्रहमां तो जे शुद्धतानो अंश प्रगट्यो छे तेने भावनमस्कार कह्यो छे अने तेने एकदेश
शुद्धनिश्चयनो विषय गण्यो छे. जेवुं सिद्धनुं स्वरूप छे तेवुं पोताना ज्ञानमां यथार्थ जाणीने पोते जेटले अंशे
स्वभाव तरफ ढळे तेटला भावनमस्कार छे, अने विकल्प तेमज वाणी ते द्रव्यनमस्कार छे. आ ग्रंथनी
कथनशैलीमां द्रव्यसंग्रह करतां जुदी अपेक्षा छे.
शुद्धनिश्चयनयना विषयमां तो वंद्य वंदकभावना भेद ज नथी. वंद्य–वंदकभाव ते अशुद्धनयनो विषय छे.
अहीं अंशे शुद्धता प्रगटी तेने अशुद्धता साथे अभेद गणीने अशुद्धनयना विषयमां ज गणेल छे. अने
द्रव्यसंग्रहमां तेने शुद्धतानी विवक्षाथी एकदेश शुद्धनिश्चयनयनो विषय गणेल छे.
वीर सं. २४७३ द्वि. श्रावण वद–१० : मंगळवार
(२१) पांच प्रकारे शास्त्रोना अर्थ समजवानी रीत
पहेली गाथामां सिद्ध भगवानने नमस्कार करतां तेमनुं स्वरूप जणाव्युं छे. अहीं शास्त्रने समजवा माटे
पांच प्रकारे अर्थ करवानुं कहे छे–शब्दार्थ, नयार्थ, मतार्थ, आगमार्थ अने भावार्थ.
पहेली गाथामां ते पांच प्रकार नीचे मुजब छे.
१–शब्दार्थ आ प्रमाणे छे–‘जेओ ध्यानरूपी अग्निवडे कर्मकलंकने दग्ध करीने नित्य निरंजन ज्ञानमय
थया छे ते परमात्माने हुं नमस्कार करुं छुं.’
२–नयार्थ आ प्रमाणे छे–शुद्धनिश्चयनयथी आत्मा परमानंदस्वरूप छे; रागादि टळ्‌यां ते
अशुद्धनिश्चयनयनो विषय छे. कर्मो टळ्‌यां ते असद्भुत अनुपचरितव्यवहारनयनो विषय छे. आम दरेक ठेकाणे
नयथी समजवुं जोईए. नय न समजे तो वास्तविक अर्थ न समजाय. बधायमां नय लागु पडे छे, केमके नय तो
ज्ञान छे. कया पदार्थने जाणवामां ज्ञान न होय? दरेक ज्ञेयने जाणवामां ज्ञान तो होय ज, अने यथार्थ ज्ञानमां
साधकने नय होय ज.
‘ज्ञानावरणीकर्मे ज्ञानने रोकयुं’ तेवुं वाक्य होय त्यां ‘ज्ञानावरणीय नामनुं जडकर्म छे तेणे ज्ञानने
रोकयुं’ एवो शब्दार्थ छे; ज्ञानावरण जड छे अने ज्ञान तो जीवनी पर्याय छे, पर द्रव्य ज्ञानने रोके एम कह्युं छे–
माटे ते व्यवहार कथन छे. बे द्रव्यनो संबंध बताव्यो छे माटे व्यवहार नयनुं कथन छे. दरेकेदरेक विषयोने
भेदीने ज्ञान बराबर जाणे छे. ‘नय’ लागु पाडवो ते ज्ञाननो पेच (युक्ति) छे; जेम ताळुं उघाडवा माटे
चावीनो पेच लागु पडे छे तेम शास्त्रना साचा रहस्यने खोलवा माटे नयो लागु पडे छे. नयार्थ समज्या वगर
चरणानुयोगनां कथन पण समजाय नहि. गुरुनो उपकार मानवानुं कथन आवे त्यां समजवुं के गुरु परद्रव्य छे
माटे ते व्यवहारनयनुं कथन छे; ते असद्भूत अनुपचरितव्यवहारनय छे. चोथी गाथामां असद्भूतनो अर्थ
‘मिथ्या’ एम करशे.
आ पांच प्रकारे शास्त्रना अर्थ करवानी वात पंचास्तिकाय, द्रव्यसंग्रह, समयसार वगेरे शास्त्रोनी
टीकामां पण आवे छे. कोईक शास्त्रोमां ते न कह्युं होय तो पण ए पांच प्रकार दरेक शास्त्रना दरेक कथनमां लागु
पाडीने तेना भाव समजवा.
शास्त्रमां ज्यां चरणानुयोगनी वातमां पर द्रव्य छोडवानी वात आवे त्यां समजवुं के ए कथन राग
छोडाववा माटे छे. प्रवचनसारमां शुद्धताने अने शुभ रागने मैत्री कीधी छे त्यां खरेखर तेमने ‘मैत्री’ नथी पण
राग तो शुद्धतानो वेरी छे–पण चरणानुयोगथी तेम कह्युं छे, ए कथन व्यवहारनयनुं छे. ज्यारे सम्यग्द्रष्टिने
स्थिरता नथी थती त्यारे शुभ रागमां जोडाय छे अने अशुभथी बचे छे माटे ते शुभने निमित्त तरीके
वीतरागता साथे मैत्री कही छे; तेनो भावार्थ तो ए छे के खरेखर ते वीतरागतानो वेरी छे. पण त्यां
चरणानुयोगनुं कथन छे तेथी एम ज कथन होय छे. जेवो नय होय ते समजीने तेनो अर्थ करे तो ज बराबर
समजण थाय.
३–मतार्थ–अन्य विरुद्धमतो कई रीते खोटा छे तेनुं वर्णन करवुं ते मतार्थ छे. चरणानुयोगमां कहेला
व्यवहार व्रतादि करवाथी धर्म थाय एवी मान्यतावाळा अन्यमत छे, जिनमत नथी. अहीं बौद्ध, नैयायिक
वगेरेमां जे एकांत मान्यता छे ते जणावीने तेनुं अयथार्थपणुं जणाव्युं ते मतार्थ छे. ए प्रमाणे जैनमतमां
रहेला जीवोमां पण जे प्रकारनी ऊंधी मान्यता चाली रहेली होय ते जणावीने तेमां शुं भूल छे ते जणाववुं ते
मतार्थ छे.
४–आगमार्थ–सिद्धांतमां जे कह्युं होय तेनी साथे