जेठ : २४७४ आत्मधर्म : १४१ :
अर्थ मेळववो ते आगमार्थ छे. सिद्धांतमां प्रसिद्ध होय ते आगमार्थ छे.
५–भावार्थ–एटले के ए कथननो सरवाळो शुं?–सार शुं? परमात्मस्वरूप वीतरागी आत्मद्रव्य ज उपादेय छे,
ए सिवाय कोई राग–विकल्प वगेरे उपादेय नथी; ए बधुं मात्र ज्ञान करवा जेवुं छे. एक परम शुद्धस्वभाव ते ज
आदरवालायक छे. भावनमस्काररूप पर्याय पण परमार्थे आदरणीय नथी. ए रीते परम शुद्धात्म–स्वभावने ज
उपादेयपणे अंगीकार करवो ते ज भावार्थ छे. उपर कहेला पांच प्रकार मुजब दरेके दरेक शास्त्रना कथननो अर्थ
समजवो.
(२२) निर्मळपर्याय उपादेय छे के नहि?
प्रश्न:–निर्मळपर्याय केम आदरणीय नथी? आपणने द्रव्य तो छे, पण मोक्षपर्याय जोईए छे, माटे ते पर्याय
आदरणीय केम नथी?
उत्तर:–अहीं द्रव्यद्रष्टि बताववी छे. द्रव्यद्रष्टि करतां शुद्धपर्याय ऊघडी जाय छे. शुद्धपर्यायनो आधार शुं छे? ते
शेमांथी प्रगटे छे?–ए जाणवुं जोईए. द्रव्यस्वभावने जाणीने त्यां एकाग्रता करवी ते ज निर्मळपर्याय प्रगटवानो
उपाय छे. पर्यायना लक्षे निर्मळता प्रगटती नथी माटे पर्यायने परमार्थे उपादेय कहेवामां आवती नथी. निर्मळ–
पर्यायने उपादेय कहेवी ते पर्यायार्थिकनयथी छे.।। १।।
(२३) भविष्यना अनंत सिद्धोने नमस्कार
पहेली गाथामां सामान्यपणे सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या; हवे बीजी गाथामां भविष्यना सिद्धोने
नमस्कार करे छे.
गाथा–२
ते वंदउं सिरि–सिद्धगण होसहिं जे वि अणंत।
सिवमय णिरूवम णाणमय परम समाहि भजंत।।२।।
अर्थ:–भविष्यमां जे अनंत सिद्धो थशे ते सिद्धसमूहने हुं नमस्कार करुं छुं.–ते सिद्धभगवंतो केवा थशे? परम
कल्याणमय अनुपम अने ज्ञानमय थशे.–शुं करवाथी तेओ सिद्ध थशे? रागादि विकल्प रहित परम समाधि (–
निर्विकल्प ध्यान) नुं सेवन करवाथी सिद्ध थशे.
भविष्यमां सिद्ध थनारा अनंत जीवो अत्यारे तो निगोदमां पण पड्या होय, छतां अहीं ग्रंथकारमुनि कहे छे के
भविष्यमां जेओ सिद्ध थशे तेमने नमस्कार हो. खरेखर पोताने भविष्यमां सिद्धदशा थवानी छे तेने ज्ञानमां निकट
लावे छे–पोतानी भविष्यनी पर्यायने निकट लावे छे. द्रव्यद्रष्टिथी भविष्यने अने वर्तमानने एक करे छे. भविष्यमां जे
सिद्धदशा थशे तेने हुं अनुमोदन आपुं छुं, पण कोई विकल्पने अनुमोदन आपतो नथी.
(२४) सिद्धदशानो उपाय
भविष्यमां केवा सिद्ध थशे? केवळज्ञानादि मोक्ष लक्ष्मी सहित अने सम्यग्दर्शनादि आठगुणो सहित थशे–
सम्यकत्वादि ते खरेखर गुण नथी पण संपूर्ण निर्मळ पर्याय छे. भविष्यमां जेओ सिद्ध थवाना छे तेओ पण
व्यवहारना अवलंबने के रागथी सिद्ध नहि थाय, पण निज शुद्धात्मस्वरूपनी भावनाथी रागादिने तोडीने सिद्ध थशे.
श्रेणीकराजा वगेरे जीवो भविष्यमां सिद्ध थशे, तेओ आ ज रीते सिद्ध थशे. शुं करतां करतां सिद्ध थशे?
वीतरागसर्वज्ञदेवे प्ररुपेल मार्गवडे पहेलांं तो दुर्लभसम्यग्ज्ञान पामीने, निजशुद्धात्मानी भावनाथी सिद्धदशा पामशे.
पोतनो त्रिकाळी ज्ञानदर्शनमयस्वभाव छे, ते स्वभाव रत्नत्रयथी पूर्ण छे, एवा पोताना शुद्धात्मानी भावनाथी
वीतरागी सहज आनंद प्रगट करीने अने संसारमां स्वार्गादि दुःखोनो नाश करीने, परमसमाधिरूप जहाजना सेवनथी
सिद्धदशा थाय छे. एवा उपायथी भविष्यमां अनंतानंत जीवो सिद्धभगवान थवाना छे.
अनंतकाळ पछी निगोदमांथी नीकळीने जे सिद्ध थशे तेने पण वर्तमान नमस्कार कर्या छे. अनंत
पद्गलपरावर्तन पछी जे सिद्ध थशे तेने वर्तमानमां नमस्कार कर्या छे. एमां पोताने द्रव्यद्रष्टिनुं जोर छे. आ रीते बीजी
गाथामां भावि सिद्धोने नमस्कार कर्या; तेथी सिद्धसमान परमशुद्ध आत्मस्वरूप ज आदरणीय छे–ए भावार्थ छे.
त्रिकाळना सिद्धोने मारा ज्ञाननी एक पर्यायमां समाडुं–एवो मारो स्वभाव छे; ए स्वभावनी एकाग्रतावडे
सिद्धोने नमस्कार कर्या छे. अहो, ए सिद्धपद ज संपूर्ण पद छे. ए सिवाय कोई पद मारे आदरणीय नथी.।। २।।
(२५) वर्तमानमां जेओ सिद्ध थाय छे तेओने नमस्कार
हवे, वर्तमान बिराजमान श्री सीमंधरादि भगवंतोने नमस्कार करे छे–
गाथा–३
ते हउं वंदउं सिद्धगण अच्छहिं जे वि हवंत।
परमसमाहि महग्गियए कम्मिंधणइं हुणंत।।३।।
अर्थ:–हुं ते सिद्ध समूहने नमस्कार करुं छुं के जेओ वर्तमानमां (अर्हंतपदे) बिराजी रह्या छे, अने परम
समाधिरूपी महाअग्निवडे कर्मरूपी लाकडांने भस्म करी रह्या छे. [चालु–