ज्ञान महीं मस्तानो उजम बा, तमारो कानो कानो.
वात करे छे ज्ञान तणी ए, दिलडां हरे छे लोकोनाए;
कुंद सुत केसरी जाग्यो उजम बा, तमारो कानो कानो.
सीमंधर प्रभुना संदेशा लाव्यो, दिव्यध्वनिनो नाद गजाव्यो;
भव्योनो तारणहारो उजम बा, तमारो कानो कानो.
एकाकी सत् शोधी काढ्युं, असत् मिटावी सत्य प्रकाश्युं;
धुरंधर मस्तानो उजम बा, तमारो कानो कानो.
जगमां कोई अन्य न मानुं, धून मचावी अलख जगावुं;
सीमंधर लाडकवायो उजम बा, तमारो कानो कानो.
जैन धरमनी ज्योत जगावी, अज्ञान अंधारा दूर हटावी;
जगमां मानो न मानो उजम बा, तमारो कानो कानो.
टचली आंगळीए मेरू तोळ्यो,
भरते आजे मंगळ दिन चालो वंदन जईए
स्वर्णे सीमंधर भगवान चालो वंदन जईए
बिराजे महाविदेही नाथ चालो वंदन जईए
भरत भूमिना आंगण आज चालो वंदन जईए
जनम्या जीनेश्वर लघुनंद चालो वंदन जईए
ए छे शासनना शिरताज चालो वंदन जईए...भरते
भरतना जनम्या तारणहार चालो वंदन जईए... भरते
डोल्युं? (अवधिज्ञाननो उपयोग मूकी
जुए छे) वाह, वाह, (कही हर्षीत
हृदये ताळी पाडे छे. चारे दिशाएथी
चार देवी नवाई पामती आवे छे.)
पंचमकाळना अनेक जीवोने सनाथ
बनावशे.
उद्धार थशे. अनेक जिनमंदिरो बनशे.
देव–गुरु–शास्त्र माटे प्राण पथराशे.
श्री कहान मिथ्यामतना नाशक अने
खंडनमंडन करी सत्य मार्गना
स्थापनार थशे.
(प्रतीन्द्र आवे छे, देवीओ आवकार
आपे छे).