: १४४ : आत्मधर्म जेठ : २४७४
धन्य तुज मातकुळ धन्य तुज काळ अनुप
हांरे धन्य धन्य हो तुज भक्त वृंद वृंद...
हांहारे गुरुवर वाणी सरितामां नाहीए
हांरे एना निर्मळ नीरमां तरबोळ रहीए....
ईन्द्र:–बोलो बोलो कहान जन्म जयंतीकी
समूह:– जय हो......
बोलो भक्तोंकी भक्तिकी
जय हो........
लीला ल्हेर
(वैशाख सुद एकमनी सवारे व्याख्यान पछी गवायेलुं)
ठेर ठेर ठेर आनंद मंगळ घेर घेर
आज कान गुरुजी जनम्या छे
थयां लीला ल्हेर ल्हेर...............१
ज्ञान गंगा वहेवडावनारा
तरण तारण बिरुद धराव्या
जीनवरना छे भक्त प्यारा..........
हुं तनथी हुं मनथी हुं तन मन धनथी भक्ति करुं
करो प्रभुजी म्हेर
थयां लीला ल्हेर ल्हेर.........२
आत्मसुखथी भरपुर रहीशुं
देव–गुरुने चरणे रहीशुं
हुं तनथी हुं मनथी हुं तन मन धनथी भक्ति करुं
करो प्रभुजी म्हेर
थयां लीला ल्हेर..........३
कनकमय थाळमां अर्ध्य लईने
कान प्रभु पूजने जईशुं
जीवन धन्य बनावीशुं
हुं तनथी, हुं मनथी, हुं तन मन धनथी भक्ति करुं
करो प्रभुजी म्हेर
थयां लीला ल्हेर ल्हेर........४
ठेर ठेर ठेर आनंद मंगळ घेर घेर...........
बंध थतो नथी. कारणके ते पोताना
स्वभावथी ज मुक्त छे, तेथी ते
मुक्त छे.
प्रतीन्द्र––आपणे क्यारे ए
परम महिमाधारी सम्यग्दर्शनमां
निरंतर तरबोळ रहीशुं?
महादेवी:–धन्य, धन्य कान
प्रभुनो! ते पण आ ज धर्म लोकोने
समजावनार छे.
बीजीदेवी––आपणे क्यारे
सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वक बाह्य
अभ्यंतरथी निर्ग्रंथ थई मुनिधर्म
अंगीकार करीशुं? ते काळने धन्य छे,
ते पळने धन्य छे, ते जीवनने पण
धन्य छे.
ईन्द्र––देवीओ, चालो आपणे
स्वर्गमां रही श्री कहानदेवनुं पूजन
करीए.
(महादेवी स्तोत्र भणावे छे
अने बधा देवीदेवीओ समूह पूजन
करी श्री कहानदेवने पूजी अर्ध्य स्वाहा
करे छे.)
ईन्द्र––बोलो बोलो श्री कान
प्रभुनो.........
(देवोनो समूह कहे छे) जय
हो.....
ईन्द्र––बोलो भक्तोना
आतमना आधार श्री कहान
गुरुराजनो
जय हो.......
महादेवी:––बोलो भव्योना
तारणहार श्री कहान देवनो जय हो.
ईन्द्र––चालो देवी, हवे कान
प्रभुनी भक्ति करो.
समूह:––जेवी आज्ञा.
आभार
आत्मधर्मनो वैशाख मासनो अंक ‘श्री सद्गुरुदेव जन्मजयंति अंक’ तरीके वधारे पानांनो प्रसिद्ध करवा
भाई श्री मोहनलाल त्रीकमजी देशाई तरफथी ५००/–रूा. मळ्या हता. तेमांथी गया अंकमां १६ पानां वधु
आप्या हता अने वधेली रकमनो उपयोग आ अंकमां करीने आ अंकमां ८ पानां वधु आपवामां आव्या छे.