Atmadharma magazine - Ank 056
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १४६ : आत्मधर्म जेठ : २४७४
बालविभाग
श्री वज्रबाहुकुमारनो वैराग्य
वज्रबाहुकुमार नामना एक राजकुमार हता. एकवार ते पोतानी मनोदया राणी सहित पोताना साळा
उदयसुंदरनी साथे तेना घरे जता हता. रस्ते जतां जंगलमां एक महावीतरागी मुनि दीठा. वज्रबाहुकुमार एकी
टसे तेमनी सामे जोई रह्या. ए जोईने उदयसुंदरे मश्करी करीने कह्युं–कुमारजी! क्यांक तमे पण एमना जेवा न
थई जता?
वज्रबाहुकुमारे कह्युं–भाई, हुं एज भावना करतो हतो. तमे ठीक मारा मननी वात कही दीधी. हवे
तमारा मननी वात शुं छे ते कहो?
उदयसुंदरे कह्युं–मारा विचार पण तमारा जेवा ज छे. बस, त्यांने त्यांज वज्रबाहुकुमारे दीक्षा लई लीधी
साथे उदयसुंदरे पण दीक्षा लई लीधी. तेम ज बीजा पण छवीस राजकुमारो ए दीक्षा लई लीधी. अने मनोदया
पण आर्जिकाओनी पासे दीक्षा लईने आर्जिका थया.
बाळको, जुओ राजकुमारोनो वैराग्य!
राजवैभवमां होवा छतां आवुं वैराग्यजीवन तेओ जीवता हता; एनुं कारण एज हतुं के तेओने
शरीरथी जुदा आत्मानुं भान हतुं. आत्मिक सुखनो अनुभव हतो. जेने आत्मभान होय छे तेने अंतरमां
आखा संसार प्रत्ये वैराग्य होय छे. अने आत्मभान वगरनो वैराग्य साचो होतो नथी. तमे पण झट झट
आत्मानी समजण करीने वैराग्यजीवन जीवजो.
[ए वज्रबाहुकुमार वगेरेनी दीक्षानुं एक सुंदर चित्र ‘भगवानश्री कुंदकुंदप्रवचन मंडप’मां छे. तमे
सोनगढ आवो त्यारे जोवानुं भूलता नहि.]
प्रमेयत्वगुणनी समजण
अस्तित्व, वस्तुत्व अने द्रव्यत्व ए त्रण सामान्य–गुणोनी समजण अपाई गई छे. चोथो सामान्यगुण
‘प्रमेयत्व’ छे. सामान्यगुण जीवमां पण होय छे ने अजीवमां पण होय छे.
जेम जीवनो स्वभाव जाणवानो छे तेम जगतना बधा द्रव्योमां जणावानो स्वभाव छे. ‘न जणाय’
एवा स्वभाववाळुं कोई द्रव्य नथी. जेम स्वच्छ अरिसानी सामे कोई वस्तु राखो तो अरिसामां तेनुं प्रतिबिंब
देखाय छे तेम आत्माना ज्ञानमां छए द्रव्यो देखाय एवो दरेक द्रव्यनो स्वभाव छे. आने ‘प्रमेयत्वगुण’
कहेवाय छे.
जाणवानो स्वभाव तो एकला जीवमां ज छे. पण प्रमेय थवानो (–जणावानो) स्वभाव छए द्रव्योमां
छे. जीवनुं ज्ञान पूरुं थाय त्यारे तेना ज्ञानमां कोई पण पदार्थ जाणवानो बाकी रहेतो नथी, बधा ज पदार्थो
एकीसाथे एकज समये जणाय छे.
कोई जीव एम ईच्छे के, केवळीभगवानना ज्ञानथी हुं छूपो रही जउं तो तेम बनी शके नहि. केम के ते
जीवमां प्रमेयत्व गुण छे, तेथी ते ज्ञानमां जणाया वगर रही शके नहि.
घणा अज्ञानी लोको एम माने छे के आत्मा तो अरूपी छे तेथी तेने जाणी शकाय नहि. तेमनी वात पण
खोटी छे. आत्मामां पण प्रमेयत्व गुण रहेलो छे तेथी ते कोईने कोई ज्ञानमां जरूर जणाय छे. एटलुं खरूं छे के
आत्मा अरूपी होवाथी आंख वगेरे ईन्द्रियोथी जणातो नथी पण साचा ज्ञानथी तो आत्मा जरूर जणाय छे.
‘आत्मा कोई रीते जाणी न शकाय’ एम जे माने छे ते आत्माना प्रमेयत्व गुणने जाणतो नथी तेमज आत्माना
ज्ञानगुणने पण जाणतो नथी. आत्मामां ज्ञान अने प्रमेयत्व ए बंने गुण होवाथी आत्मा पोते पोताने जाणी
शके छे.
आत्मानो ज्ञानगुण ते विशेषगुण छे ने प्रमेयत्वगुण ते सामान्यगुण छे. जगतना कोई पदार्थो पोतानुं
स्वरूप जणाववानी ना पाडता नथी, छतां जीव पोते तेने जाणतो नथी ते पोताना ज्ञाननो ज दोष छे. पोताना
ज्ञाननो स्वभाव बधायने जाणवानो छे एम समजीने,–पोताना पूरा ज्ञाननो विश्वास करे तो जीवनुं ज्ञान विकास
पामे. अने तेना ज्ञानमां बधाय पदार्थो जणाय एटले तेने आकुळता टळीने शांति थाय, ने तेनो मोक्ष थाय.
गया अंकना प्रश्नोना जवाब
(१) जे पोताना आत्माना स्वभावने भगवान जेवो ओळखे, अने सम्यग्ज्ञान प्रगट करे, ते जीव खरेखर
पंडित छे. ते शास्त्रो भणेलो न होय तोपण पंडित छे.
अने जे जीव पोताना आत्माने भगवान जेवो न जाणे पण उलटो ए वातनो विरोध करे ते जीव मूर्ख