Atmadharma magazine - Ank 056
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 25

background image
: १३२ : आत्मधर्म जेठ : २४७४
लाभ लेनारा जीवो एटला बधा वधता जाय छे के बे ज वर्षमां आ प्रवचनमंडप पण टूंको पडशे.
घणा जीवो धर्म पामे छे अने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे मोक्षमार्ग साधीने पोतानुं आत्महित करे छे;
परंतु पवित्रता साथे महा पुण्य होय तेवा जीवो थोडा होय छे. एवा घणा थोडा धर्मात्मा जीवो होय छे के जेओ
पोते तो धर्म पामे अने ते उपरांत तेमने एवा पुण्यनो योग होय के तेमना उपदेशवडे संख्याबंध पात्र जीवो
धर्म पामे. एवा धर्मात्मा जीवो कां तो तीर्थंकर यातो तीर्थंकरवत् होय छे. पू. गुरुदेवश्रीने पवित्रता साथे महान
प्रभावना उदय पण वर्ते छे. पात्र जीवोने पूज्य सद्गुरुदेवनो आवो उपदेश सद्भाग्ये मळी रह्यो छे, तेथी
मुमुक्षु जीवोनी फरज छे के तेमनो उपदेश सांभळीने, ते पोताना आत्मामां परिणमाववो अने तेमनी साथे साथे
ज सिद्ध गति सुधी पहोंची जवुं.
पूज्य सद्गुरुदेवे आपणने अनेकांत, निश्चय–व्यवहार उपादान–निमित्त, निमित्त–नैमित्तिकसंबंध,
कर्ताकर्म संबंध, द्रव्य–गुण–पर्याय, क्रमबद्ध पर्याय वगेरेनुं रहस्य अने तेमां रहेलो द्रव्यद्रष्टिनो अनंत पुरुषार्थ
बहु ज सारी रीते समजाव्यो छे. द्रव्यद्रष्टि विना कोई पण जीव धर्म पामी शके नहि. धर्मनी शरूआतथी पूर्णता
सुधी साधक जीवोने द्रव्यद्रष्टिनो आश्रय होय छे. ए वीतरागी विज्ञाननो सिद्धांत घणी स्पष्ट रीते जुदा जुदा
पडखांओ अने दलीलोथी तेओश्री आपणने समजावी रह्यां छे. जैनधर्मनुं रहस्य एवी सरळ, मीठी–मधुर
भाषामां समजाव्युं छे के नाना बाळकथी शरू करीने वृद्ध सुधीना सर्वे पोतानी देशभाषामां घणी सरळताथी
समजी शके छे; ए तेमनो महान उपकार छे. जैनतत्त्वोनुं सूक्ष्म रहस्य एवी तो सरळ अने घरगथ्थु भाषामां
समजाववामां आवे छे के शास्त्रोनी परिभाषानुं रहस्य पात्र जीवो एकदम समजी ले छे.
छेल्लां चौद वर्षो थयां तेओश्री एक कलाक सवारे तथा एक कलाक बपोरे–एम सामान्यपणे हंमेशा बे
प्रश्नो पूछे त्यारे तेनुं सरळ रीते समाधान आपे छे, तथा हमेशा रात्रे एक कलाक मुमुक्षुभाईओना प्रश्नोना
खुलासा माटे राखवामां आव्यो छे. तेथी अनेक जिज्ञासु जीवोने अपूर्व लाभ मळी रह्यो छे. आ बधो पू.
गुरुदेवश्रीनो आपणा उपरनो महान उपकार छे.
परम पूज्य सद्गुरुदेवश्रीनी अनेक अनेक जन्म जयंतिना उत्सवो उजववानो सुयोग आपणने प्राप्त
थाय–एवी भावना साथे विरमुं छुं.
[किसनगढना भाईश्री नेमिचंदजी पाटनीना भाषणनो टूंको सार]
परम उपकारी अनादि कालसे नहिं प्राप्त करा ऐसे आत्मस्वरूपको प्राप्त करानेवाले पूज्य महापुरूषको
अत्यंत अत्यंत भक्तिभावसे कोटि कोटि प्रणाम.
आज मेरा परम सौभाग्य है कि ईस ५९वीं जन्म–जयंति उत्सव–जो विशेष समारोहके साथ मनाया जा
रहा है,–में भाग ले रहा हूं तथा मेरे हृदयके उद्गार प्रगट करनेका सौभाग्य भी मुझे प्राप्त हुआ है.
पूज्य महाराज साहबके जीवनके बारेमें, मैं यहांसे ५०० मील दूर रहनेवाला व्यक्ति कया कह सकता हूं?
बस ईतना ही कहना पर्याप्त है कि ये भूतकालीन महापुरुष है, वर्तमानमें युगप्रधान महापुरुष है, तथा
भविष्यत् के त्रिलोक पूज्य महाविभूति हैं.
पूज्यश्री के गुणोंके बारेमें कुछभी कहना सूर्यको दीपककी उपमा देना है, बाह्यद्रष्टिसे भी ईनका असाधारण
व्यक्तित्व है; अत्यंत प्रतिभासंपन्न, तेजस्वी, प्रभावशाळी मुखमुद्रा होनेपर भी अत्यंत शान्त; ओजस्वी सिंह
जेसी गर्जना होने पर भी अत्यंत मिष्ट भाषी; अपने सिद्धांतोंमें अत्यंत निःशंक एवं कट्टर तथा निर्भयता द्रढता
आदि अनेक गुण है जो सब ही किसी एक व्यक्तिमें नहि पाये जाते जो ईनमें कूट कूट कर भरे हैं.
मैं द्रढतापूर्वक कह सकता हूं कि यथार्थ आत्मधर्म के ज्ञाता पुरुषों का ईस भरतक्षेत्रमें आज अभाव जैसा
ही है, जगह जगह यथार्थ धर्म के नाम पर कल्पित धर्मों का प्रचार हो रहा है, अनादि कालसे नहिं प्राप्त किया
ऐसे आत्माका स्वरूप आपके द्वारा हम मुमुक्षुओंको प्राप्त हो रहा है यह बडा सौभाग्य है. मुझे तो पूज्य
महाराज साहबका ८–९ माहकाही समागम प्राप्त हो पाया हैं आप लोग धन्य हैं जो आज बहुत वर्षोसे ईस
उपदेशको प्राप्त कर रहे हैं, जिसमें परिवर्तन के बाद १३ वर्षसे तो सोनगढमें ही सतत धारावाही लाभ मिल
रहा है.