Atmadharma magazine - Ank 057
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २४७४ : आत्मधर्म : १६१ :
श्री सनातन जैन शिक्षणवर्ग सोनगढ
ता. २६: प :: ४८ परीक्षा : छठुं वर्ष : श्रेणी चोथी समय: सवारना ९ा थी ११
१. धर्म कोने कहेवाय? ते क्यां थाय? कोना लक्षे थाय? तेनां साधनो शुं अने ते साधनोनुं स्वरूप शुं? ते विषे २०
लीटीनो एक निबंध लखो.
२.
. ‘कषाय’ ना निमित्ते कया कया प्रकारना बंध पडे छे अने घाति अने अघातिकर्मोमां तेनो विभाग केवी रीते पडे छे?
. आठ कर्मोमांथी कया कर्म नवीन बंधमां निमित्त थाय छे ते कारण आपी समजावो.
. बंध टळवानो क्रम शुं छे?
३. . महाव्रत–अणुव्रतने मोक्षनुं साधन कही शकाय के केम, ते कारण सहित समजावो.
. संवर अने निर्जरा थवानो उपाय शुं?
. शुभयोगथी धर्म थाय के नहि, ते कारण आपी समजावो.
४. नीचेनां लक्षणो सदोष छे के निर्दोष? सदोष होय तो कया कया दोषो आवे छे ते कारण सहित लखो.
. छद्मस्थ संसारीनुं लक्षण रागद्वेष. . जडनुं लक्षण अरूपीपणुं.
. व्यवहारचारित्र ते मुनिनुं लक्षण. . अजीवनुं लक्षण असंख्यप्रदेशीपणुं.
. कर्मसंयुक्तपणुं ते संसारीनुं अनात्मभूत लक्षण. . औदारिक शरीर ते मनुष्यनुं अनात्मभूत लक्षण.
प. . ज्ञानना भेदो लखो ने तेमां मोक्षमार्ग माटे कया कया कार्यकारी छे? ते कारण सहित लखो.
. जीवने ओछामां ओछां केटला ज्ञान होय ने वधुमां वधु केटलां ज्ञान होय, तथा ते कया कया अने कोने कोने होय?
६. द्रव्ययोग, भावयोग, संक्रमण, द्रव्यनिर्जरा, भावनिर्जरा, ईतरेतराश्रयदोष, द्रव्यकर्म, भावकर्मनी व्याख्या लखो.
चोथी श्रेणीना जवाबो
(चोथी श्रेणीना विद्यार्थीओमां, लाठीना भाईश्री मनसुखलाल छगनलाल देसाईना जवाबो संपूर्ण साचा हता. तेमणे
लखेला जवाबो अहीं आपवामां आव्या छे.)
उत्तर: १
वत्थु सहावो धम्मो” वस्तुनो जे स्वभाव छे तेने धर्म कहेवाय छे. त्रीकाळी आत्मानो जेवो शुद्ध स्वभाव छे तेवी ज
अवस्था प्रगट थाय तेने धर्म कहेवाय छे.
धर्म ते आत्मानी पर्यायमां थाय छे, नहि के पर मकान, क्षेत्र, वस्त्र के शरीरमां. कारण के ते बधां परद्रव्य छे. धर्म
परद्रव्यमां तो न थाय परंतु तेना लक्षे–आश्रये–पण न थाय; कारण परद्रव्यना आश्रये वृतिनुं उत्थान थाय छे, राग
थाय छे. राग ते विकार छे अने विकार ते अविकारी एवा आत्मस्वभावनुं कारण पण न ज होई शके.
धर्म ते आत्मानो जे शुद्ध, अखंड निर्विकारी स्वभाव छे, तेना लक्षे थाय छे: पर्यायना लक्षे के गुणगुणीना भेदना लक्षे
थतो नथी. कारण भेदना लक्षे अभेद स्वभाव प्रगट न थाय.
धर्म–अविकारी निर्मळ पर्याय–करवानां साधनमां खरेखर निर्मळानंद शुद्ध स्वभाव ज छे. अने तेना कारणे जे
सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्ररूप शुद्ध अविकारी पर्याय प्रगट थाय छे तेने मोक्षमार्ग कही शकाय छे.
सम्यग्दर्शननुं स्वरूप: परथी जुदा अने विकार रहित एवा पोताना परिपूर्ण आत्मस्वभावनी यथार्थ प्रतीति ते
सम्यग्दर्शन छे.
सम्यग्ज्ञाननुं स्वरूप: जेवुं आत्मानुं स्वरूप शुद्ध छे तेवुं संशय, विपरीतता अने अनध्यवसाय रहित जाणवुं ते
सम्यग्ज्ञान छे.
सम्यग्चारित्रनुं स्वरूप: सम्यग्दर्शन ज्ञानपूर्वक आत्म स्वभावमां रमणता–स्थिरता करवी ते छे.
उत्तर: २
कषायना निमित्ते स्थितिबंध अने अनुभागबंध पडे छे.
स्थितिबंध:– जो कषाय तीव्र होय तो, मनुष्यआयु, देवआयु, तिर्यंचआयु ए त्रणेने छोडी बाकीनी सर्व प्रकृतिओमां
लांबी स्थिति बंधाय छे अने जो मंद कषाय होय तो टुंकी स्थिति पडे छे. ज्यारे उपर कहेला त्रण आयुमां जो कषाय
तीव्र होय तो स्थिति