पमाडे एवा उत्कृष्ट चारित्रनो पुरुषार्थ नथी. श्रद्धा, अपेक्षाए तो चोथा गुणस्थानथी ज वीतरागभाव छे; एवी
सम्यक्श्रद्धापूर्वक वीतरागभाव प्रगट करवो ते अत्यंत प्रशंसनीय छे. भावसंयम वगर उच्च स्वर्गपद के
मोक्षपदनी प्राप्ति थती नथी. वीतरागी संयमदशा न प्रगट करी शकाय तो, तेनी भावनापूर्वक, निर्मळ
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान टकावी राखवा जोईए. सम्यग्दर्शन–ज्ञान ते पण धर्म–आराधना छे, अने गृहस्थो
पण ते करी शके छे.
चारित्र नथी. शुभराग पण चारित्र नथी. पण शरीर अने विकारथी भिन्न स्वभावने जाणीने ते स्वभावमां
चरवुं ते चारित्र छे. एवुं चारित्र सम्यग्दर्शन ज्ञानपूर्वक ज होय छे, ने ते ज मुक्तिनुं कारण छे.
द्रव्यलिंगी पण कहेवाय नहि. केमके गृहीत मिथ्यात्वने टाळे अने व्यवहार पंचमहाव्रत चोकखां पाळे त्यारे तो
द्रव्यलिंग कहेवाय छे. ए द्रव्यलिंग पण धर्म नथी. मिथ्याद्रष्टि जीवोने साधु तरीके माने तेमां तो गृहीतमिथ्यात्व
ज छे, साचा गुरु केवा होय तेनो पण विवेक तेने नथी. जेने निमित्त तरीके ज कुगुरुने–अज्ञानीने स्वीकार्या छे ते
जीव पोते पण अज्ञानी–गृहीतमिथ्यात्वी छे. एवो जीव गमे तेवा शुभभाव करे तोपण आठमा देवलोकनी उपर
जई शके तेवा शुभभाव तेने थाय नहि. केम के जेणे निमित्त तरीके ज कषायवाळा देव–गुरु शास्त्रने स्वीकार्या छे
तेने पोताना भावमां आठमा देवलोकथी ऊंचे जाय तेवी कषायनी मंदता करवानी ताकात नथी. जेने
गृहीतमिथ्यात्व छोडीने निर्दोष अकषायी देव–गुरु–शास्त्रने स्वीकार्या छे ते जीवने नवमी ग्रैवेयक सुधी जई शके
तेटली कषायनी मंदता थई शके छे. जेणे साचा निमित्तोने ओळख्या नथी ते जीवने व्यवहार सम्यग्दर्शन पण
होतुं नथी तेम ज व्यवहार चारित्र पण होतुं नथी. एवो गृहीतमिथ्याद्रष्टि जीव नग्न दिगंबर थाय तो पण तेने
द्रव्यलिंग पण यथार्थ नथी. तो पछी एने संयम धर्म केवो? ए तो मिथ्याद्रष्टि छे. धर्ममां एक सामान्यपणे
जीवनुं माप करवानी रीत ए छे के––जेने धर्मी जीवनो सीधो उपदेश न मळ्यो होय (अगर तो पूर्वभवना धर्म
श्रवणना संस्कार पण जागृत न थया होय) ते जीवने धर्म होतो नथी. जो कोई जीव एम माने के हुं धर्म पाम्यो
छुं. तो ए नक्की करवुं जोईए के, कया ज्ञानी धर्मात्मा पासेथी तुं धर्म समज्यो? तने कया ज्ञानीनो समागम
थयो? शुं तुं तारी मेळे स्वच्छंदे धर्म समज्यो? स्वच्छंदे धर्म समजाय तेम नथी. तेम ज अज्ञानी जीवनी पासेथी
पण धर्म समजाय तेम नथी, अने पोतानी मेळे शास्त्रो वांचीने पण धर्म समजाय तेम नथी. धर्म धर्मी जीव
पासेथी ज समजाय छे. जे जीव पोतामां धर्म समजवानी पात्रता प्रगट करे छे ते जीवने धर्मी जीवनो उपदेश ज
निमित्तरूप होय छे–एवो नियम छे. जो के निमित्त कांई करतुं नथी, परंतु धर्म पामवामां धर्मी जीवनुं ज निमित्त
होय, अधर्मीनुं निमित्त होय नहि–एवो मेळ छे. माटे मुमुक्षु जीवोए सत्–असत् निमित्तोनी ओळखाण करवी
जोईए. सत्–समागमे आत्मानी ओळखाण करीने सम्यग्दर्शन–ज्ञान प्रगट करे, त्यारपछी ज वीतरागभावरूप
उत्तम संयमधर्म होय छे. उत्तमक्षमादि दस धर्मोना यथार्थ स्वरूपने ओळखवुं जोईए. उत्तमक्षमा वगेरेनां मूळ
स्वरूपने ओळख्या वगर, मात्र रूढी प्रमाणे बोली जाय के वांची जाय तेथी आत्माने लाभ थाय नहि. दस लक्षण
धर्मनुं स्वरूप जाण्या वगर ते धर्म उजवे कई रीते? दसलक्षणधर्मनुं जेवुं छे तेवुं स्वरूप बराबर जाणीने,
पोताना आत्मामां तेवो वीतरागीभाव जेटले अंशे प्रगट करे तेटले अंशे खरेखर दशलक्षपर्व आत्मामां उजवा्युं
छे. धर्मना मूळ स्वरूपने समजे नहि अने रागने ज धर्म माने तेणे खरेखर धर्मनुं पर्व उजव्युं नथी पण
मिथ्यात्वने पोषण आप्युं छे. माटे धर्मना साचा स्वरूपने सत्समागमे ओळखीने, एवी मिथ्यामान्यताओ
छोडवी जोईए.