ते पण क्षण क्षण घटती जाति स्थितिमां, अंते थाये निज स्वरूपमां लीन जो.
ते पण शुभभाव छे. तेनी भावना नथी, पण पर तरफनो ते विकल्प पण क्षणे क्षणे घटतो जाय, अने क्रमे क्रमे
तेनो अभाव थईने संपूर्ण वीतरागभावे आत्मस्वरूपमां लीनता प्रगट थईने केवळज्ञान थाय–तेवी भावना छे.
एवा वीतरागभावनी पहेलांं ओळखाण करवी जोईए. वीतरागभाव ते ज उत्तमधर्म छे.
प्राप्ते ते अपि निर्मले अपि परं स्यातां न येनोज्झिते स्वर्मोक्षैकफलप्रदे स च कथं न श्लाध्यते संयमः।।
सांभळवानी प्राप्ति थवी महादुर्लभ छे. अहीं आचार्यदेव देशनालब्धिनो नियम मूके छे. जे जीवने ज्ञानी पुरुष
पासेथी शुद्ध आत्मतत्त्वना उपदेशनी प्राप्ति थई नथी ते जीव धर्म पामी शकतो नथी. एथी कांई जीवनी
पराधीनता थती नथी. जे जीवने शुद्धात्मस्वभाव समजवानी लायकात होय ते जीवने ज्ञानी पासेथी शुद्धात्मानो
उपदेश मळे ज. रुचि, बहुमान अने विनयपूर्वक ज्ञानी पुरुषना उपदेशने साक्षात् सांभळ्या वगर, मात्र शास्त्रो
वांचीने के अज्ञानीनो उपदेश सांभळीने कदी कोई जीव धर्म पामी शके नहि. जे जीव धर्म पामे तेने कां तो
वर्तमान साक्षात् ज्ञानीनी वाणीनो योग होय, अने कदाच तेवो योग न होय तो, पूर्वे ज्ञानीनो जे समागम कर्यो
होय तेना संस्कारो वर्तमानमां याद आव्या होय. जीवने ज्ञानीनो उपदेश तो अनंतवार मळ्यो छे, पण
जिज्ञासापूर्वक कदी पण सत् सांभळ्युं नथी, तेथी परमार्थे तेणे सत्नुं श्रवण कदी कर्युं ज नथी. जिज्ञासापूर्वक
संतपुरुषनी वाणीनुं श्रवण महा दुर्लभ छे. आटलुं होय त्यां सुधी पण धर्म नथी, आटलुं होय त्यारे
व्यवहारशुद्धि थई कहेवाय एटले के तेनामां धर्मी थवा माटेनी पात्रता प्रगटी कहेवाय. जेनामां आटलुं न होय ते
जीव तो धर्म पामी शकतो ज नथी. कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रने जेओ माने छे तेओ तो तीव्र मिथ्याद्रष्टि छे. साचा
देव–गुरु–शास्त्रनुं स्वरूप ओळखे अने कुदेवादिनी मान्यता छोडे त्यारे गृहीतमिथ्यात्व टळे छे.
आटले सुधी आव्या पछी हवे अपूर्व आत्मधर्म केम थाय तेनी वात करे छे.
सम्यग्ज्ञान प्रगट करवुं ते महान पुरुषार्थ छे. अहींथी अपूर्व धर्मनी शरूआत छे. जेणे एक समयमात्र पण
सम्यग्दर्शनज्ञाननी प्राप्ति करी छे ते जीव अल्पकाळे अवश्य मुक्ति पामे छे. एवा पवित्र सम्यग्दर्शन अने
सम्यग्ज्ञाननी प्राप्ति परम पुरुषार्थ वडे करीने पछी पण वीतरागी संयमनी प्राप्ति सौथी दुर्लभ छे.
वीतरागी संयमधर्म परम प्रशंसनीक छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञानने गौणपणे मोक्षमार्ग गणवामां आवे छे, साक्षात्
मोक्षमार्ग तो सम्यग्दर्शन–ज्ञानपूर्वकनी चारित्रदशामां छे. प्रवचनसारनी ७ मी गाथामां कह्युं छे के