: अषाढ : २४७४ : आत्मधर्म : १६३ :
आवे छे. देवनुं शरीर छोडी जे जीव मनुष्यनुं शरीर धारण करवा आवे छे त्यारे विग्रहगतिमां मनुष्यनुं आयुष्य शरू
थई गयुं छे पण हजु औदारिक शरीरनो सम्बन्ध थयो नथी, माटे तेने औदारिक शरीर न होवाथी अव्याप्ति दोष अने
औदारिक शरीर मनुष्य उपरांत तिर्यंचने पण होवाथी ते लक्षण लक्ष्य उपरांत अलक्ष्यमां पण फेलातुं होवाथी
अतिव्याप्तिदोष आवे छे.
उत्तर: प
अ. ज्ञानना पांच भेद छे–मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान, केवळज्ञान. तेमां मोक्षमार्ग माटे
मतिज्ञान अने श्रुतज्ञान कार्यकारी छे. कारण मतिज्ञानथी आत्मा सम्बन्धी सांभळ्या बाद ते ज्ञानने लंबाववुं ते
श्रुतज्ञान, तेमां विशेष विचारणा थाय छे अने ते विचारणामां जीव रागथी अंशे जुदो पडे छे त्यारे आत्म––अनुभव
थाय छे, ज्यारे अवधिज्ञान अने मनःपर्यय ज्ञाननो विषय रूपी पदार्थ छे. ते पर–पदार्थने जाणे छे. आत्माने पकडवा
माटे ते कंई उपयोगनुं नथी माटे मतिश्रुतज्ञान ज मोक्षमार्ग माटे कार्यकारी छे. केवळज्ञान तो संपूर्ण ज्ञान छे ते तो कार्य
प्रगट थाय छे त्यारे थाय छे. कार्य सिद्ध थतां थाय छे. माटे तेमां पण कारणपणानो आरोप न आवे.
ब. जीवने ओछामां ओछुं एक ज्ञान होय छे अने वधुमां वधु चार ज्ञान होय छे.
एक होय तो केवळज्ञान अने चार होय तो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने मनःपर्ययज्ञान.
केवळज्ञान ते तेरमा गुणस्थाने अने उपरना जीवोने होय छे एटले के केवळी, तीर्थंकर, सिद्ध भगवानने.
मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्ययज्ञान ए चारे ज्ञानो एकसाथे, बारमा गुणस्थान सुधी, विशुद्ध संयमधारी
मुनिराजने ज होय छे.
उत्तर: ६
द्रव्ययोग:– मन, वचन, कायाना निमित्तथी आत्मप्रदेशोनुं चंचळ थवुं तेने द्रव्ययोग कहे छे.
भावयोग:– जे शक्तिना निमित्तथी द्रव्यकर्मो आत्माना प्रदेशे आवे अने बंधान थाय ते शक्तिने भावयोग कहे छे.
संक्रमण:– जीव भावनुं निमित्त पामी एक कर्मप्रकृतिना परमाणुओनुं पलटी बीजी कर्मप्रकृति रूपे थवुं तेने
संक्रमण कहे छे.
द्रव्यनिर्जरा:– आत्माना प्रदेशोथी कर्म परमाणुओनुं खरी जवुं––झरी जवुं तेने द्रव्यनिर्जरा कहे छे.
भावनिर्जरा:– आत्मामां संवर पूर्वक शुद्धिनी वृद्धि थवी अने एकदेश अशुद्धतानुं––विकारी परिणामनुं टळवुं––
तेने भावनिर्जरा कहे छे.
ईतरेत्तराश्रयदोष:– एक असिद्ध–नक्की न करायेल–वस्तुथी बीजी असिद्ध–नक्की न करायेल–वस्तुने
ओळखाववी अने ते बीजी अणओळखायेली वस्तुने प्रथमनी असिद्ध–अणओळखायेली–वस्तुथी ओळखाववी तेने
ईतरेत्तराश्रय दोष कहे छे.
द्रव्यकर्म:– आत्माना विकारी परिणामनुं निमित्त पामी पुद्गल परमाणुओनुं स्वयं कर्म रूपे थवुं तेने द्रव्यकर्म
कहे छे.
भावकर्म:– जुना द्रव्यकर्मना उदयना निमिते आत्मा स्वयं विकारी परिणाम करे तेने भाव कर्म कहे छे.
[पहेली, बीजी तथा त्रीजी श्रेणीना प्रश्नो तथा जवाबो हवे पछी अपाशे.]
श्री प्रवचनसार: गुजराती
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेवे रचेला परमागम श्री प्रवचनसार शास्त्रनुं तेमज तेना उपरनी
अमृतचंद्राचार्यदेवकृत संस्कृत टीकानुं गुजराती भाषांतर आजथी लगभग पांच वर्ष पहेलांं भाईश्री हिंमतलालभाईए
शरू करेल, तेनी मांगळिक पूर्णाहूती श्रुतपंचमीना पवित्र दिवसे थई गई छे. श्रुतपंचमीना दिवसे श्रीषट्खंडागमादि
परमागमोना पूजन–महोत्सवनी साथे साथे श्री प्रवचन सारजीनो पण उत्सव थयो हतो. साथे साथे श्री नियमसार
शास्त्रना गुजराती अनुवादनी मंगळ शरूआतनो निर्णय पण ते ज दिवसे थयो हतो. जेठ सुद १४ ना रोज सवारना
व्याख्यानमां श्री परमात्म प्रकाशनुं वांचन पूरुं थयुं छे. ने जेठ वद एकमथी गुजराती–प्रवचनसार उपर पहेलेथी
व्याख्यानो शरू थया छे. ते मंगळ प्रसंगे प्रवचनसारजीनी पूजा–भक्ति करवामां आवी हती. गुजराती प्रवचनसार
संपूर्ण छपाईने लगभग पर्युषण दरम्यान प्रसिद्ध थई जशे.
बपोरना व्याख्यानमां श्रीसमयसार (आठमी वखत) वंचाय छे; तेमां सर्वविशुद्धज्ञान–अधिकार चाले छे.