: १६४ : आत्मधर्म : अषाढ : २४७४ :
अगरुलघत्व गणन समजण
[बाल विभाग
१. आ जगतमां जीव अने अजीव एवी बे जातनी वस्तुओ छे. दरेक वस्तुमां पोतानी शक्तिओ होय
छे. ते शक्तिने गुण कहेवाय छे. जे गुण जीव अने अजीव बधी वस्तुओमां होय तेने सामान्य गुण कहेवाय छे.
ने जे गुण कोईक वस्तुमां होय पण बधी वस्तुओमां न होय तेने विशेषगुण कहेवाय छे. आपणा
बालविभागमां सामान्य गुणोनी समजण आपवानुं चाले छे. तेमांथी अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व अने
प्रमेयत्व–ए चार सामान्य गुणोनी समजण अपाई गई छे.
२. हवे पांचमो “अगुरुलघुत्व” नामनो सामान्य गुण छे. ते गुण जीवमां पण छे अने अजीवमां पण
छे. आ गुणने लीधे, जीव होय ते सदाय जीव ज रहे छे ने अजीव होय ते सदाय अजीव ज रहे छे. जीव कदी
अजीव थई जतो नथी ने अजीव कदी जीव थई जतुं नथी. आम होवाथी जगतमां जेटला प्रकारना द्रव्यो छे
तेटला प्रकारना ज द्रव्यो सदाय रहे छे, तेमां कदी वधारो के घटाडो थतो नथी. वळी आ गुणने कारणे एक द्रव्य
बीजा द्रव्यनुं कांई करी शकतुं नथी; तेम ज बे द्रव्यो भेगा थईने त्रीजा द्रव्यनी उत्पत्ति थाय एम बनतुं नथी.
३. तेमज, एकेक द्रव्यमां पोताना जे गुणो छे तेओ अरस–परस एक बीजारूपे थई जता नथी.
आत्मामां जे ज्ञानगुण छे ते सदाय ज्ञानगुण ज रहे छे, पण कदी ज्ञानगुण मटीने सुख के अस्तित्व गुण थई
जतो नथी. तेथी द्रव्यमां जे जे गुणो छे ते बधा सदाय एटला ने एटला ज रहे छे, कदी कोई द्रव्यमांथी कोई गुण
ओछो थतो नथी ने वधी पण जतो नथी. बे जातना गुण मळीने कदी नवो गुण उत्पन्न थाय–एम बनतुं नथी.
४. वळी, द्रव्यना अनंत गुणो छे तेओ कदी विखराईने छूटा छूटा थई जता नथी. जीवना एक भागमां
ज्ञान रहे, बीजा भागमां सुख रहे ने त्रीजा भागमां अस्तित्व रहे–एम कदी बनतुं नथी. पण द्रव्यना जेटला
गुणो छे ते बधाय भेगां ने भेगां ज आखा द्रव्यमां रहे छे. वस्तु पोताना गुणोने बीजामां जवा देती नथी, ने
बीजाना गुणोने पोतामां आववा देती नथी.
प. पर्यायमां जीव द्रव्यनुं ज्ञान ओछुं थाय पण ते कदी अजीव थई जाय नहि. हलकामां हलकी दशामां
पण जीव तो सदा जीव ज रहे छे, अजीव थई जतो नथी, अने जीवनुं ज्ञान वधी वधीने केवळज्ञान थाय, पण
केवळज्ञान पछी पण ज्ञान वध्या करे–एम बने नहि. मोक्ष थाय एटले जीव पंचभूतमां भळी जाय ए वात
खोटी छे. जीव सदाय जीवरुपे ज रहे छे.
६. माटी–गारो वगेरेमांथी वींछीनो जीव उत्पन्न थवानुं घणा माने छे, पण खरेखर जीवनी नवी उत्पत्ति
थती नथी. क्यांकनो जीव अहीं आवीने वींछीनुं शरीर धारण करे छे. वळी माटी तो अजीव छे, तेमांथी जीवनी
उत्पत्ति थाय नहि. तेमज आंख, मन वगेरे जड छे, तेमांथी ज्ञाननी उत्पत्ति थाय नहि. आवो अगुरुलघुत्व गुण
छे, ‘अ’ एटले नहि, ‘गुरु’ एटले मोटुं अने ‘लघु’ एटले नानुं. ‘अ–गुरु–लघु’ एटले ‘मोटुं के नानुं नहि’
वस्तुमां द्रव्य–गुण–पर्यायनुं जेटलुं स्वरूप छे तेनाथी ते कदी वधतुं नथी ने घटतुं नथी. आवो दरेक द्रव्यनो स्वभाव
छे, तेने अगुरुलघुत्वगुण कहेवाय छे. आ गुण दरेक द्रव्योमां रहेलो छे. तेथी तेने सामान्य गुण कहेवाय छे.
सुकोशल राजकुमारनो वैराग्य
अयोध्यामां कीर्तिधर राजा हता. तेओ संसार भोगोथी अत्यंत विरक्त धर्मात्मा हता. तेमना घेर
सुकोशल कुमारनो जन्म थयो. कुमारनो जन्म थतां तुरत ज कीर्तिघर राजपाट त्यागीने वीतरागी जिनदीक्षा
लईने मुनि थया.
कीर्तिघर राजा मुनि थई गया तेथी तेमनी राणी सहदेवीने घणोज आघात थयो. अने तेथी तेणे एवो
कडक हूकम करी दीधो के मारा राजयमां कोई मुनि आवे नहि.
सुकोशल राजकुमार बहु वैराग्यवंत धर्मात्मा हता. राजवैभवना सुखोमां तेमनुं चित्त चोंटतुं नहि;
आत्मस्वभावनी भावनामां तेओ रत हता.
सुकोशलकुमार एक दिवस राजमहेलनी अगाशीमां बेठा हता. तेनी माता सहदेवी अने धावमाता पण
त्यां हता. एकाएक गाम बहार नजर करतां कुमारे