Atmadharma magazine - Ank 058
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १८० : आत्मधर्म : श्रावण : २४७४ :
लूंटी ले छे. अल्प पण राग रही जाय तो तेनाथी रत्नत्रयसंपत्ति लूंटाय छे, ने मोक्ष थतो नथी. सम्यग्दर्शन–
सम्यग्ज्ञान थया पछी पण विषय–कषायोने जीतवा दुर्लभ छे, परंतु मुनिवरो परद्रव्योथी पराङमुख थईने ज्यारे
स्वरूपमां ठरे छे त्यारे ते विषयकषायो क्षणमात्रमां नष्ट थई जाय छे. माटे मोक्षमार्गमां गमन करी रहेला
योगीओने भगवाननी भलामण छे के हे मुनिओ! विषय–कषायरूपी चोरोथी तमारी रत्नत्रयरूपी लक्ष्मीने
बचाववा माटे सम्यक् तपरूपी योद्धाने सदा साथे राखजो. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूपी धर्म लक्ष्मीने साथे राखीने
मोक्ष तरफ गमन करतां स्वभावनी स्थिरताना पुरुषार्थने साथे राखवाथी, वच्चे कोई विघ्न करवा समर्थ नथी.
हवे आचार्यदेव तप माटेनी प्रेरणा करे छे–
मंदाक्रान्ता
मिथ्यात्वादेर्यदिह भविता दुःखमुग्रं तपोभ्यो जातं तस्मादुदककणिकैकेव सर्वाब्धिनीरात्।
स्तोकं तेन प्रसभमखिलकृच्छ्रलब्धे नरत्वे यद्येतर्हि स्खलसि तदहो का क्षतिजीव ते स्यात्।।
१००।।
कोई जीव उत्तम तपधर्ममां निरुत्साही थतो होय अने खेदथी दुःखी थतो होय अने तेथी तपने ज
दुःखरूप मानीने छोडी देतो होय, तो तेने आचार्यदेव कहे छे के हे भाई! जेम समुद्रना पाणी पासे पाणीना
कणीयानी गणतरी नथी तेम, सम्यक्तपना अनादरथी मिथ्यात्त्वने लीधे जे अनंतु दुःख थशे तेनी पासे तपना
अल्प दुःखनी गणतरी कांई नथी. तप ते चारित्रधर्म छे अने ते तो परम आनंदनुं कारण छे, ते दुःखनुं जरापण
कारण नथी, पण तेनी साथे जे राग रही जाय छे तेनुं अल्प दुःख छे–एम समजवुं. अहीं तो जेने चारित्रदशामां
अल्प खेद थाय छे ने निरूत्साही थई जाय छे तेने समजाववा कहे छे के हे जीव! आ तपमां तो तने बहु अल्प
दुःख छे, अने मिथ्यात्व–अव्रत वगेरेना सेवनथी नरकमां जईश त्यां तो अनंतु दुःख छे, ने अनंती प्रतिकूळता
छे. एनी पासे तो तारा तपमां जे प्रतिकूळता छे तेनी कांई गणतरी नथी. छतां तुं तपथी केम भयभीत थाय
छे? अहो! सादि अनंत परमानंदना कारणभूत एवा उत्तम तपने धारण करवामां तने शुं हानि छे? सम्यक्
तपनुं पालन करतां बहारमां प्रतिकूळता आवे तेनाथी खेद न पाम, सम्यक् तप तने जराय दुःखनुं कारण नथी
पण मोक्षदशाना परम सुखनुं कारण छे.
उत्तम तप तो वीतरागभाव छे अने वीतरागभावमां दुःख होय नहि. मिथ्याद्रष्टि जीवनां आचरण
दुःखरूप छे. आम होवा छतां अहीं धर्मात्मा मुनिना उत्तम तपमां अल्प दुःख केम कह्युं? –तेनुं कारण ए छे के
कोईक मंद पुरुषार्थी जीवने प्रतिकूळता वगेरेमां लक्ष जतां खेद थतो होय अने कठण लागतुं होय, तेथी सहेज
अणगमो थई जतो होय, तो ते अणगमाने लीधे तेने जराक दुःख लागे छे. ए अपेक्षाए उपचारथी तपमां
अल्प दुःख कह्युं छे. खरेखर तो तपनुं दुःख नथी पण खेदनुं दुःख छे. खेदभाव ते तप नथी अने तपमां खेद
नथी. अल्प कलेशनी गणतरी मुख्य करीने रत्नत्रय सहित उत्तम तपधर्ममां उत्साह घटाडवो ठीक नथी.
धर्मी जीव मुनिदशामां छठ्ठा–सातमा गुणस्थाने झूलता होय अने संथारो कर्यो होय, छतां कोईने
नबळाईने लीधे जरा कलेश–अणगमो थई आवे अने पाणीनी वृत्ति ऊठे. छतां अंतरमां भान छे के आ वृत्ति
मारुं स्वरूप नथी, आ वृत्ति थई ते चारित्रनो भाग नथी पण दोष छे. विशेष सहनशीलता नथी ने खेद थाय
छे तेनो आरोप करीने तपमां अल्प दुःख कह्युं छे. अने चारित्र स्थिर रहेवा माटे कह्युं के अत्यारे जराक दुःखथी
डरीने जो चारित्रनो ज अनादर करी नाखीश तो मिथ्यात्व थशे अने तेना फळमां जे अनंत दुःख मळशे, तेने तुं
केम सहन करी शकीश? अत्यारे अल्पदुःख सहन करीश तो सम्यक् तपना फळमां अनंत मोक्षसुखने पामीश.
जे खरेखर चारित्रने दुःखनुं कारण माने छे ते तो अज्ञानी छे. जे लोको उपवासने तेमज चारित्रने
दुःखदायक माने छे तेने सम्यग्दर्शन पण नथी. शुद्ध चिदानंद आत्मानुं भान करीने तेना आनंदना अनुभवमां
लीन थई जतां ईच्छा तूटी जाय ते उत्तम तप धर्म छे. आचार्यदेव एवा उत्कृष्ट तप माटेनी प्रेरणा करे छे.
अहीं उत्तम तप धर्मनुं व्याख्यान पूरुं थयुं.
८ उत्तम त्याग धर्म (भादरवा सुद १२ पहेली)
दस धर्मोमां आजे उत्तम त्याग धर्मनो दिवस छे, तेनुं वर्णन करे छे–
(र् िक्रि) व्याख्या या क्रियते श्रुतस्य यतये यद्दीयते पुस्तकं
स्थानं संयमसाधनादिकमपि प्रीत्या सदाचारिणा।
स त्यागो वपुरादि निर्ममतया नो किंचनास्ते यते–
ज्ञकिंचन्यमिदं च संसृतिहरो धर्मः सतां सम्मतः।।
१०१।।