जेटली वीतरागता तेटलो ज धर्म छे. पण केवा प्रकारना विकल्पथी खसीने वीतरागभावमां एकाग्र थाय छे!
अर्थात् वीतरागभाव पूर्वे केवा प्रकारनो विकल्प हतो ते बताववा माटे आ दस भेदो छे. क्षमा संबंधी विकल्प
तोडीने वीतराग स्वभावमां ठरे तो तेने ‘उत्तमक्षमाधर्म’ कह्यो. ए रीते अनेक प्रकारे रागरहित आत्माने समजे
अने रागनां अनेक प्रकारो छे तेने समजे तो ज्ञाननी द्रढता थाय. रागरहित चैतन्य स्वभावनी श्रद्धापूर्वक
आराधना करतां वच्चे प्रमाद थतां विकल्प ऊठे छे, ते प्रमादने दूर करीने स्वभावना अवलंबने विशेष स्थिरता
करवी तेने अहीं उत्तम त्यागधर्म कह्यो छे. आवो त्याग मुख्यपणे सातमा गुणस्थानथी होय छे अने गौणपणे
तो चोथा गुणस्थानथी शरू थाय छे.
आवे त्यारे विशेष प्रमाद न थवा देवो अने ते विकल्प तोडीने वीतरागी एकाग्रता प्रगट करवी–एवा विशेष
त्याग माटे आ वात छे. जेटली दशा प्रगटी छे त्यांने त्यां प्रमाद करीने न अटकतां, स्वभावनी स्थिरताना
जोरपूर्वक प्रमादनो परिहार करीने आगळ वधवा माटेना आ दस प्रकारना उत्तम धर्मोनो उपदेश छे. अहीं
बहारना त्यागनी वात ज नथी, मुनिने बाह्यमां सर्व परिग्रहनो त्याग होय छे–एवा बाह्य त्यागनी वात नथी,
अंतरमां मुनिने घणो विभाव टळी गयो छे तेटलो त्यागधर्म तो प्रगट्यो छे, पण तेनी वात अहीं नथी. स्वरूप
आगळ वधे–ते उत्तम त्याग धर्म छे.
ऊठे छे तेनो त्याग करीने वीतरागभाव प्रगट करवानी वात छे. छतां अहीं निमित्तनी अपेक्षाए कथन छे. तेथी
कह्युं छे के मुनिओ श्रुतनुं व्याख्यान करे ते उत्तम त्याग छे. खरेखर वाणी जड छे, शब्दो जड छे, अने
भावनाना जोरे जे ज्ञाननी एकाग्रता वधे छे ने राग तूटे छे–ते ज त्यागधर्म छे.
ने ते ज उत्तम त्याग छे. मात्र शास्त्रनी व्याख्या तो अज्ञानी पण करे; अभव्य जीव अगिआर अंग भणी जाय
आत्मानी भावनाना जोरे निश्चय चारित्रदशा वधे छे ने राग तूटे छे ते धर्म छे. बहारना निमित्तथी अहीं कथन
कर्युं छे.
विकल्प तोडी नांखीने स्वभावमां ठरी जाय छे. स्वभावना जोरे विकल्पनो नकार छे तेनुं नाम त्याग छे. त्यां
वांचवा आपे छे. पण ‘आ नवा शास्त्रमां शुं विषयो छे ते पहेलांं हुं जोई लउं, पछी तेमने आपुं’ –एवो
आग्रह थतो नथी. केमके शास्त्रनुं प्रयोजन तो वीतरागभाव छे. ने पोते पण शास्त्र तरफनो विकल्प तो तोडवा
ज मांगे छे. अंतरमां स्वभावना जोरे वांचवानी वृत्तिनो वेग तोडी नाखे छे तेनुं नाम उत्तम त्यागधर्म छे.