: श्रावण : २४७४ : आत्मधर्म : १७१ :
मोहनो क्षय करवानो उपाय लेखांक चोथो
[श्री प्रवचनसारजी गाथा ८० मां बताव्युं छे के, ‘जे जीव द्रव्यथी–गुणथी ने
पर्यायथी अर्हंतने जाणे छे ते जीव पोताना आत्माने जाणे छे ने तेनो मोह खरेखर नाश
पामे छे.’ एना उपरना विस्तृत व्याख्यानो अंक २९–३०–३१ मां आवी गया छे
त्यारपछी विशेष अहीं आपवामां आव्या छे.] पोष वद बीज संवत: २४७३
मोहना क्षयनो उपाय
भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेव प्रवचनसारनी आ ८०मी गाथामां मोहनो क्षय कई रीते थाय ते जणावे छे.
जे जीव अर्हंत भगवानने द्रव्यपणे, गुणपणे अने पर्यायपणे जाणे छे ते जीव पोताना आत्माने जाणे छे अने
तेनो मोह अवश्य लय पामे छे. आचार्यदेव कहे छे के में मोहनो क्षय करवानो उपाय मेळव्यो छे. अरिहंतो
पोताना पुरुषार्थना जोरे कर्मनो क्षय करीने पूर्णदशा पाम्या छे तेम हुं पण मारा पुरुषार्थना जोरे कर्मनो क्षय
करीने पूर्णदशा पामवानो छुं, वच्चे कोई विघ्न नथी. जे अरिहंतनी प्रतीति करे ते अरिहंत थाय ज छे. आ ८०मी
गाथा अने तेनी टीका उपरना विस्तृत व्याख्यानो आत्मधर्मना अंक २९–३०–३१मां आवी गया छे. हवे ते
गाथानो भावार्थ वंचाय छे.
अर्हंतने जाणतां पोताना द्रव्य – गुण – पर्याय जणाय छे.
“भावार्थ:– अर्हंत भगवान अने पोतानो आत्मा निश्चयथी समान छे; वळी अर्हंतभगवान मोह,
रागद्वेष रहित होवाने लीधे तेमनुं स्वरूप अत्यंत स्पष्ट छे, तेथी जो जीव द्रव्य–गुण–पर्यायपणे ते (अर्हंत
भगवानना) स्वरूपने मन वडे प्रथम समजी ले तो “आ जे ‘आत्मा, आत्मा’ एवो एकरूप (कथंचित् सद्रश)
त्रिकाळिक प्रवाह ते द्रव्य छे तेनुं जे एकरूप रहेतुं चैतन्यरूप विशेषण ते गुण छे अने ते प्रवाहमां जे क्षणवर्ती
व्यतिरेको ते पर्यायो छे” आम पोतानो आत्मा पण द्रव्य–गुण–पर्यायपणे तेने मन वडे ख्यालमां आवे छे.”
(प्रवचनसार पृ. ११९–१२०)
द्रव्य – गुण – पर्यायनी व्याख्या
आत्मा त्रिकाळ कथंचित् सद्रश्य छे; त्रणे काळे ‘आत्मा, आत्मा’ एवुं जे समानपणुं छे ते द्रव्य छे,
त्रिकाळी प्रवाहमां एकरूप रहेनार ते द्रव्य छे. त्रिकाळी प्रवाहमां एक एक क्षणनुं जुदुं परिणमन ते पर्याय छे.
‘प्रवाह’ कहेतां ज परिणमन सिद्ध थई जाय छे. त्रिकाळ प्रवाहमां जे सदाय सद्रश्य ‘आत्मा, आत्मा’ रहे छे ते
द्रव्य छे. बधाय पर्यायोमां द्रव्य तो एक सरखुं रहेनार छे. अने ते द्रव्यनुं एकरूप रहेतुं जे ‘चैतन्य, चैतन्य’
एवुं विशेषण ते गुण छे अने द्रव्यना प्रवाहमां जे क्षणवर्ती भेदो ते पर्यायो छे. ए रीते, अरिहंत भगवानने
द्रव्य–गुण–पर्यायथी ओळखतां पोतानो आत्मा पण विकल्प वडे ज्ञानमां आवे छे.
पोताना द्रव्य – गुण – पर्यायने जाण्या पछी शुं करवुं?
ए रीते पोताना आत्माने ज्ञानमां विकल्प वडे जाण्या पछी, मोहनो क्षय कई रीते थाय छे ते हवे बतावे छे.
“ए रीते त्रिकाळिक निज आत्माने मन वडे ख्यालमां लईने पछी–जेम मोतीओने अने धोळाशने हारमां ज
अंतर्गत करीने केवळ हारने ज जाणवामां आवे छे तेम–आत्मपर्यायोने अने चैतन्य गुणने आत्मामां ज
अंतर्गर्भित करीने केवळ आत्माने जाणतां परिणामी–परिणाम–परिणतिना भेदनो विकल्प नाश पामतो जतो
होवाथी जीव निष्क्रिय चिन्मात्रभावने पामे छे अने तेथी मोह (दर्शनमोह) निराश्रय थयो थको विनाश पामे छे.”
सम्यग्दर्शन पछी शुं करवुं?
आ रीते एकलो अभेद आत्मा ज लक्षमां आवी जतां सम्यग्दर्शन थाय छे. सम्यग्दर्शन थया पछी शुं
करवानुं रह्युं? शरीरनो कर्ता तो पहेलांं पण हतो ज नहि, पहेलांं रागादिनो कर्ता थतो हतो ते छोडीने हवे ज्ञान
मात्र भावनो कर्ता थयो. हवे ज्ञानमां ज्ञानने एकाग्र करवानी ज क्रिया करवानुं रह्युं. ते एकाग्रतानी क्रिया पूरी
थतां ज केवळज्ञान–अरिहंतदशा प्रगटे छे.
निष्क्रिय ज्ञानमात्र भाव प्रगटतां मोह क्षय पामे छे.
जीव पोताना अंतरस्वभावमां ढळतां निष्क्रिय चिन्मात्रभावने पामे छे, ज्ञानमां भेदना विकल्परूप क्रिया