स्वभावमां ढळतां रागरहित निष्क्रिय ज्ञानमात्र भाव प्रगटे छे अने मिथ्यात्व नाश पामे छे. ‘ज्ञानमात्र भावने
पामे छे’ अने ‘मोह क्षय थाय छे’ एम अस्ति–नास्तिथी कथन छे. अज्ञानने आश्रये मोह हतो, हवे एकलो
ज्ञानभाव प्रगटतां मोह निराश्रय थयो, तेथी ते नाश पामे छे.
करतां संपूर्ण ज्ञानमात्र भाव–केवळज्ञान प्रगटे छे अने मोहनो सर्वथा क्षय थई जाय छे.
आ ८० मी गाथामां शुद्ध आत्मानो निर्णय करीने सम्यग्दर्शन प्रगटाववानो ने दर्शनमोह टाळवानो उपाय
वात ८१मी गाथामां करशे. दया–व्रत–अहिंसा वगेरेना विकल्पो ते मोहनी सेना छे. अरिहंत भगवान जेवा
पोताना शुद्धात्माने ओळखवो अने शुद्धोपयोग वडे तेमां लीन थवुं ते मोहनी सेनाने नाश करवानो उपाय छे.
स्वरूपनी रुचि विना ते पुरुषार्थ थाय नहि. अंतरमां स्वभावनो महिमा आव्या वगर ते स्वभावने प्रप्त
करवानो प्रयत्न करे नहि. अरिहंत जेवुं पोतानुं शुद्ध स्वरूप जे प्राप्त करवा मागे ते अवश्य करी शके छे.
सारुं कर्युं छे. अरिहंत भगवाने कई रीते सारुं कर्युं? पहेलांं तो पोताना आत्मस्वभावने अरिहंत जेवो जाण्यो
ने तेमां लीन थईने मोहनो क्षय करी वीतरागता ने केवळज्ञान प्रगट कर्या, तेथी तेओ सुखी छे. तेमना
द्रव्यगुण तारामां छे, ते तारा स्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान अने स्थिरता तुं कर, तो तारा द्रव्यगुणमांथी पूरी
केवळज्ञानदशा प्रगटे. आ ज सारुं करवानो उपाय छे. दुनियामां सारामां सारुं करनारा तो अरिहंत छे, तेमने ज
तुं आदर्शरूप राख. ज्यां तुं तारा पूरा स्वभाव सामर्थ्यनी ओळखाण करीने तेमां लीन थयो त्यां पूर्ण शुद्ध दशा
प्रगटी एटले के पूर्ण सारुं प्रगट थयुं ने नरसापणुं न रह्युं.
छे. एवा श्रीअरिहंत देव छे. जगतना जीवोने दुःखी देखीने के जगतनुं कांई करवा माटे अरिहंत भगवान
अवतार लेता नथी. तेमणे पोताना आत्मामां संपूर्ण सारुं करी लीधुं छे तेथी तेओ कृतकृत्य छे. जगतना अन्य
जीवो तो राग–द्वेष–मोहथी दुःखी थई रह्या छे. अहो! जेमने मोह नथी, अवतार नथी, मरण नथी, विकल्प
नथी, परनी उपाधि नथी, भूख–तरस नथी, संपूर्ण केवळज्ञान जेमने प्रगट थयुं छे एवा अरिहंत भगवाननो
जाणतां परमार्थे पोताना स्वरूपनुं प्रतिबिंब ज जणाय छे. अरिहंत भगवान जेवा द्रव्य–गुण तो मारामां
त्रिकाळ छे, ने पर्यायमां ज्यां सुधी अरिहंत