Atmadharma magazine - Ank 058
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

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: १७२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४७४ :
रहेती नथी. ज्यां जीव चिन्मात्रभावने पाम्यो त्यां मोहनो नाश थई जाय छे. पर वस्तुओनी क्रिया तो आत्मा
करी शक्तो नथी अने रागरूप क्रिया करवानो ज्ञाननो स्वभाव नथी; ए रीते ज्ञानस्वभाव निष्क्रिय ज छे. एवा
स्वभावमां ढळतां रागरहित निष्क्रिय ज्ञानमात्र भाव प्रगटे छे अने मिथ्यात्व नाश पामे छे. ‘ज्ञानमात्र भावने
पामे छे’ अने ‘मोह क्षय थाय छे’ एम अस्ति–नास्तिथी कथन छे. अज्ञानने आश्रये मोह हतो, हवे एकलो
ज्ञानभाव प्रगटतां मोह निराश्रय थयो, तेथी ते नाश पामे छे.
आ रीते, ‘ज्ञानमात्र भाव ते ज हुं छुं’ एवा निर्णयमां ज सुख–समाधानरूप धर्म छे. अने पछी जीव
जेम जेम ज्ञानभावमां एकाग्रता करे तेम तेम सम्यक्चारित्र वधतुं जाय छे. ज्ञान मात्र भावमां संपूर्ण एकाग्रता
करतां संपूर्ण ज्ञानमात्र भाव–केवळज्ञान प्रगटे छे अने मोहनो सर्वथा क्षय थई जाय छे.
मोहनी सेनाने जीतवानो उपाय
श्री आचार्यदेव कहे छे के–जो आम छे, तो मोहनी सेना उपर विजय मेळववानो उपाय में प्राप्त कर्यो छे.
आ ८० मी गाथामां शुद्ध आत्मानो निर्णय करीने सम्यग्दर्शन प्रगटाववानो ने दर्शनमोह टाळवानो उपाय
बताव्यो छे. सम्यग्दर्शनथी शुद्धात्मस्वभाव जाण्या पछी तेमां स्थिरता थाय छे ने चारित्रमोह नाश पामे छे, ए
वात ८१मी गाथामां करशे. दया–व्रत–अहिंसा वगेरेना विकल्पो ते मोहनी सेना छे. अरिहंत भगवान जेवा
पोताना शुद्धात्माने ओळखवो अने शुद्धोपयोग वडे तेमां लीन थवुं ते मोहनी सेनाने नाश करवानो उपाय छे.
स्वरूप समजवानो सीधो उपाय
बधा आत्माओ अरिहंत जेवा ज छे. पोतानुं स्वरूप जे समजवा मागे ते समजी शके छे. ते समजवानो
मूळ सीधो उपाय आ गाथामां कह्यो छे. मिथ्यात्व नाश करवानो अपूर्व अचिंत्य उपाय आ एक ज छे के–
‘जे जाणतो अर्हंतने गुण, द्रव्य ने पर्यायपणे,
ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे.’
दरेक पदार्थ द्रव्य–गुण–पर्याय स्वरूप छे. पोताना आत्माने अरिहंत भगवानना द्रव्य–गुण–पर्याय साथे
मेळवीने पछी अरिहंतनुं लक्ष छोडीने एकला पोताना आत्माने अभेदपणे लक्षमां लेवो तेमां अनंत पुरुषार्थ छे.
स्वरूपनी रुचि विना ते पुरुषार्थ थाय नहि. अंतरमां स्वभावनो महिमा आव्या वगर ते स्वभावने प्रप्त
करवानो प्रयत्न करे नहि. अरिहंत जेवुं पोतानुं शुद्ध स्वरूप जे प्राप्त करवा मागे ते अवश्य करी शके छे.
पोतानुं सारुं करवा माटे शुं करवुं?
हे जीव! तारे तारुं सारुं करवुं छे ने? तो आ जगतमां तुं ए शोधी काढजे के जगतमां सौथी सारुं कोणे
कर्युं छे? –पूर्ण हित कोणे प्रगट कर्युं छे? अरिहंत भगवंतो आ जगतमां संपूर्ण सुखी छे, तेमणे आत्मानुं संपूर्ण
सारुं कर्युं छे. अरिहंत भगवाने कई रीते सारुं कर्युं? पहेलांं तो पोताना आत्मस्वभावने अरिहंत जेवो जाण्यो
ने तेमां लीन थईने मोहनो क्षय करी वीतरागता ने केवळज्ञान प्रगट कर्या, तेथी तेओ सुखी छे. तेमना
आत्मानी ते केवळज्ञानदशा क्यांथी आवी? जे त्रिकाळ द्रव्यगुण छे तेमांथी ते दशा प्रगटी छे. अरिहंत जेवा ज
द्रव्यगुण तारामां छे, ते तारा स्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान अने स्थिरता तुं कर, तो तारा द्रव्यगुणमांथी पूरी
केवळज्ञानदशा प्रगटे. आ ज सारुं करवानो उपाय छे. दुनियामां सारामां सारुं करनारा तो अरिहंत छे, तेमने ज
तुं आदर्शरूप राख. ज्यां तुं तारा पूरा स्वभाव सामर्थ्यनी ओळखाण करीने तेमां लीन थयो त्यां पूर्ण शुद्ध दशा
प्रगटी एटले के पूर्ण सारुं प्रगट थयुं ने नरसापणुं न रह्युं.
जगतमां संपूर्ण सुखी कोण?
जो सारुं कर्या पछी पण कांईक नवुं करवानुं बाकी रहे तो ते जीवे हजी खरेखर पूरुं सारुं कर्युं ज नथी,
अने तेथी ते दुःखी छे. जेणे पूरुं सारुं करी लीधुं छे ने हवे कांई करवानुं रह्युं नथी–एवा जे होय ते ज पूरा सुखी
छे. एवा श्रीअरिहंत देव छे. जगतना जीवोने दुःखी देखीने के जगतनुं कांई करवा माटे अरिहंत भगवान
अवतार लेता नथी. तेमणे पोताना आत्मामां संपूर्ण सारुं करी लीधुं छे तेथी तेओ कृतकृत्य छे. जगतना अन्य
जीवो तो राग–द्वेष–मोहथी दुःखी थई रह्या छे. अहो! जेमने मोह नथी, अवतार नथी, मरण नथी, विकल्प
नथी, परनी उपाधि नथी, भूख–तरस नथी, संपूर्ण केवळज्ञान जेमने प्रगट थयुं छे एवा अरिहंत भगवाननो
आत्मा आ जगतमां संपूर्ण सुखी छे; तेथी तेओ ज आ आत्माने माटे अरिसा समान छे. अरिहंतना स्वरूपने
जाणतां परमार्थे पोताना स्वरूपनुं प्रतिबिंब ज जणाय छे. अरिहंत भगवान जेवा द्रव्य–गुण तो मारामां
त्रिकाळ छे, ने पर्यायमां ज्यां सुधी अरिहंत