आत्मा पर द्रव्यनुं कांई करी शके नहि. परथी जुदा पोताना आत्मस्वभावने जाणीने तेमां ज स्थिर थया ने
केवळज्ञान प्रगट कर्युं. ए सिवाय भगवाने बीजुं कांई कर्युं नथी.
प्रगट थयुं ने मोहनो क्षय थयो. ते जीवने अरिहंत भगवान जेवी पूर्ण शुद्धता प्रगट करवानो उपाय प्रगट्यो.
अनंत तीर्थंकरोए आ ज उपाय कर्यो छे अने दिव्यध्वनिमां पण ए ज उपदेश कर्यो छे.
नथी–आम जे जीव नक्की करे छे ते जीवने आत्म–स्वभावनुं सम्यक्दर्शन थाय छे. अरिहंतना स्वरूपमां अने आ
आत्माना स्वरूपमां परमार्थे फेर नथी. अरिहंत भगवान पूर्ण स्पष्ट स्वरूपे होवाथी आ आत्माने ते आदर्श
तरीके छे. अरिहंत भगवानने द्रव्य अने गुण पूरा छे ने पर्याय पण पूरो प्रगट्यो छे, ते पर्याय द्रव्यगुणमांथी
आव्यो छे. एवा द्रव्य–गुण–पर्याय स्वरूपने ओळखे तो पोताना द्रव्य–गुणना आधारे वर्तमान पर्यायनी अधूराश
टाळवानो उपाय करे. अधूराश के विकार ते हुं नहि पण अरिहंत जेवो ज हुं छुं एम पहेलांं अरिहंतना लक्षे
पोताना आत्मानो विचार उपाडीने पछी स्वमां पोताना आत्मा तरफ ढळीने निर्णय करतां सम्यग्दर्शन थाय छे.
देव–गुरु–शास्त्रना लक्षे निर्णय करनारी अवस्थाने पोताना स्वभावमां समाडी एटले के स्वमां वाळी, त्यां परमां
अने विकारमां एकतानी मान्यता छूटीने पोतामां द्रव्य–पर्यायनी एकता थई एटले मोहनो नाश थयो ने
सम्यग्दर्शन थयुं. स्वाश्रयनी एकता वडे सम्यग्दर्शन थतां ज पराश्रयनी एकतारूप मोहनो नाश थाय छे.
पूर्णज्ञान छे. अरिहंत जेवो ज मारो आत्मा छे. आम निर्णय करतां रागमां एकत्वबुद्धि टळी जाय छे, ने
पोताना स्वभावनो आश्रय थाय छे. पहेलांं निमित्तो साथे अने विकार साथे एकता मानतो तेथी पोतामां
द्रव्य–पर्यायनो भेद पडीने अवस्थामां अज्ञान हतुं, ते संसारनुं मूळ हतुं. हवे रागादिथी रहित पोताना चिन्मय
स्वरूपमां एकता करतां द्रव्य–पर्यायनो भेद तूटी जवाथी (–पर्याय द्रव्यमां ज लीन थवाथी), मिथ्यात्व अने
अज्ञान निराश्रय थया थका नाश पामे छे. द्रव्यमां मिथ्यात्व अने अज्ञान नथी, अने ते द्रव्यमां पर्यायनी एकता
थई तेथी मिथ्यात्व अने अज्ञानने ते पर्यायनो आश्रय न रह्यो, पर्याय पोते सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान रूपे
परिणमी गयो ने मिथ्यात्व तथा अज्ञाननो लय थयो. आ ज मोहना नाशनो एटले के धर्मनो उपाय छे.
आत्माना ज्ञाननी ज क्रिया छे, बहारनुं कांई नथी. आत्मानुं जे वीर्य विकारमां काम करतुं हतुं ते वीर्य विकारनी
एकताथी छूटीने पोताना स्वभावमां वळ्युं त्यां परनुं अवलंबन न रह्युं एटले के मिथ्यात्व ज न रह्युं. भेदना
आश्रये मिथ्यात्व रहे छे ने स्वभावनी अभेदताना आश्रये मिथ्यात्वनो नाश थया पछी चारित्रमोहनो नाश
केम थाय ते हवेनी गाथामां कहेशे. शुभभावनुं अवलंबन पण मोह छे, तेथी तेनो पण ज्यारे छेद करे छे त्यारे
संपूर्ण शुद्ध आत्मा प्रगटे छे.