Atmadharma magazine - Ank 058
(Year 5 - Vir Nirvana Samvat 2474, A.D. 1948)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 9 of 17

background image
: १७६ : आत्मधर्म : श्रावण : २४७४ :
त्यां एकला शुद्धात्मानो ज अनुभव नथी. पण जीव ज्यारे संपूर्ण रागद्वेष टाळीने शुद्धउपयोग प्रगट करे छे
त्यारे द्रव्य–गुण–पर्यायथी संपूर्ण शुद्ध आत्मानो ज अनुभव होय छे. एने ज अहीं शुद्ध आत्मानो अनुभव
कह्यो छे. पहेलांं अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप जाणीने तेवा ज पोताना आत्मानी श्रद्धा करी हती अने
हवे पोतानो आत्मा साक्षात् तेवो थई गयो. जेवा अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्याय छे तेवा ज पोताना द्रव्य–गुण–
पर्याय थई गया.
शुभ उपयोग ते चैतन्यनो लूंटारो छे
अरिहंत जेवा पवित्र पोताना आत्मानी श्रद्धा थया पछी पण रागद्वेष दूर करे त्यारे शुद्ध आत्मानो
अनुभव थाय छे. हुं चैतन्यस्वरूप छुं, रागद्वेष मारुं स्वरूप नथी–आम प्रतीत कर्या छतां जीव जो फरी फरीने
शुभ के अशुभभावमां जोडाय तो ते प्रमाद छे. शुभभाव पण प्रमाद छे. सम्यग्दर्शनपूर्वक मुनिदशामां जे पंच–
महाव्रतनी लागणी ते पण प्रमाद ज छे, ते प्रमादना तंत्रने आधीन थवाथी शुद्ध आत्मतत्त्वना स्वरूपना वेदन
रूप चैतन्यचिंतामणि चोराई जाय छे. माटे शुभभाव ते चैतन्य चिंतामणीनो चोर छे. तो पछी अशुभ
लागणीनी तो वात ज शुं करवी? आचार्यदेवने वर्तमानकाळे मुनिदशा तो वर्ते छे परंतु केवळज्ञान प्रगट थाय
तेवो शुद्धोपयोग नथी अने कंईक शुभोपयोग रही जाय छे, तेनो नकार करीने तेओश्री संपूर्ण शुद्धोपयोगनी
भावना करे छे. मुनिदशामां जे शुभलागणी ऊठे छे ते प्रमाद छे–राग छे–चोर छे–शुद्ध उपयोगने लूंटे छे. ते
शुभने दूर करीने शुद्धोपयोग ज्यारे प्रगट करे छे त्यारे ज मोहनो संपूर्ण क्षय थईने पूर्णदशा प्रगटे छे.
सम्यग्दर्शन तो पहेलांं ज स्थापीने पछीनी आ वात छे.
शुभ उपयोगथी जीव खेद पामे छे
पहेलांं तो आचार्यदेवे अस्तिथी वात करी के, सम्यक् आत्मतत्त्वने पामीने जे जीव रागद्वेषने निमूर्ळ करे
छे ते जीव शुद्ध आत्माने अनुभवे छे. परंतु (हवे नास्तिथी वात करे छे) जो फरी फरीने जीव तेमने अनुसरे
छे–रागद्वेषरूपे परिणमे छे, तो प्रमाद–आधीनपणाने लीधे शुद्धात्मतत्त्वना अनुभवरूप चिंतामणि चोराई
जवाथी अंतरमां खेद पामे छे.
सम्यग्दर्शन प्रगट्या पछी शुभ लागणी थाय छे पण ते केवळज्ञाननुं कारण नथी. शुभ लागणी तो
केवळज्ञानने रोकनारी छे, जीवने खेद पमाडनारी छे. अरेरे! शुद्धात्मानी श्रद्धा–ज्ञान थईने स्वरूप–स्थिरता
प्रगट्या छतां पण जीव जो शुभ लागणीने फरी फरीने अनुसरे तो शुद्धात्माना अनुभवरूप चिंतामणि चोराई
जवाथी अंतरमां फरी फरीने खेद पामे छे. शुद्ध उपयोग ते ज एक जीवने सुखदायक छे, शुभ उपयोग ते दुःख छे.
छठ्ठागुणस्थाने शुभ विकल्प ऊठे छे ते दुःख छे, खेदकारक छे. अहा, निर्विकल्प शुद्ध उपयोगदशा अटके छे ने
शुभ–अशुभ उपयोगमां जोडाण थाय छे ते खेद छे, तेनाथी निर्विकल्प शुद्धात्म रमणता चोराई जाय छे.
सहजानंद स्वभावमां उपयोगनी संपूर्ण लीनता न थतां, विपरीत दशा थई त्यारे रागद्वेषरूप अशुद्धउपयोग
थयो, तेनाथी आत्मस्वरूपमां रमणतानो भंग पडे छे. शुभवृत्ति थाय तेनाथी धर्मात्मा मुनिने पण अंतरमां
दुःख छे–खेद थाय छे. जो स्वरूपनी रमणतामां ज टकीने शुद्ध उपयोग प्रगट न करुं तो प्रमादथी शुभ उपयोगमां
आवी जाउं छुं अने मारा केवळज्ञानना कारणरूप अनुभवचिंतामणि चोराई जाय छे. तेथी मारे रागद्वेषने
टाळवा माटे अत्यंत जाग्रत रहेवुं योग्य छे–एम श्री आचार्यदेव कहे छे.
मोक्षनो उपाय
रागद्वेष छोडीने स्वाश्रय स्वभावमां अभेद थवुं ते सम्यक्चारित्र छे अने रागद्वेष रहित स्वाश्रय
स्वभावनी श्रद्धा ते सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्दर्शन थतां चैतन्य चिंतामणिनी प्राप्ति थई, परंतु जेटलुं पर वलण
थाय छे तेटलुं चैतन्य अनुभवरत्न चोराई जाय छे. माटे सर्वे शुभ अशुभथी रहित थईने स्वरूपमां संपूर्ण
जागृत रहेवुं ते ज मोक्ष पामवानो उपाय छे.
साचुं प्रतिक्रमण
पहेलांं तो पोताना शुद्धात्मानी श्रद्धारूप सम्यग्दर्शन प्रगट करीने मिथ्याश्रद्धारूप महापापथी पाछो फर्यो
ते ज मिथ्यात्वनुं प्रतिक्रमण छे, अने पछी–शुद्धस्वरूपमां स्थिरता प्रगट करीने रागद्वेषथी पाछो फर्यो ते अव्रत
वगेरेनुं प्रतिक्रमण छे. सौथी पहेलांं मिथ्यात्वना प्रतिक्रमण वगर एके प्रकारनुं प्रतिक्रमण होय ज नहि. अहीं तो
संपूर्ण मोहनो क्षय करीने मोक्षदशा प्रगट करवाना उपायनी वात चाले छे. सम्यग्दर्शन थया छतां जो जीव
रागद्वेषने न छोडे तो ते मुक्ति पामतो नथी.