कह्यो छे. पहेलांं अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं स्वरूप जाणीने तेवा ज पोताना आत्मानी श्रद्धा करी हती अने
हवे पोतानो आत्मा साक्षात् तेवो थई गयो. जेवा अरिहंतना द्रव्य–गुण–पर्याय छे तेवा ज पोताना द्रव्य–गुण–
पर्याय थई गया.
शुभ के अशुभभावमां जोडाय तो ते प्रमाद छे. शुभभाव पण प्रमाद छे. सम्यग्दर्शनपूर्वक मुनिदशामां जे पंच–
महाव्रतनी लागणी ते पण प्रमाद ज छे, ते प्रमादना तंत्रने आधीन थवाथी शुद्ध आत्मतत्त्वना स्वरूपना वेदन
रूप चैतन्यचिंतामणि चोराई जाय छे. माटे शुभभाव ते चैतन्य चिंतामणीनो चोर छे. तो पछी अशुभ
लागणीनी तो वात ज शुं करवी? आचार्यदेवने वर्तमानकाळे मुनिदशा तो वर्ते छे परंतु केवळज्ञान प्रगट थाय
तेवो शुद्धोपयोग नथी अने कंईक शुभोपयोग रही जाय छे, तेनो नकार करीने तेओश्री संपूर्ण शुद्धोपयोगनी
शुभने दूर करीने शुद्धोपयोग ज्यारे प्रगट करे छे त्यारे ज मोहनो संपूर्ण क्षय थईने पूर्णदशा प्रगटे छे.
सम्यग्दर्शन तो पहेलांं ज स्थापीने पछीनी आ वात छे.
छे–रागद्वेषरूपे परिणमे छे, तो प्रमाद–आधीनपणाने लीधे शुद्धात्मतत्त्वना अनुभवरूप चिंतामणि चोराई
जवाथी अंतरमां खेद पामे छे.
प्रगट्या छतां पण जीव जो शुभ लागणीने फरी फरीने अनुसरे तो शुद्धात्माना अनुभवरूप चिंतामणि चोराई
जवाथी अंतरमां फरी फरीने खेद पामे छे. शुद्ध उपयोग ते ज एक जीवने सुखदायक छे, शुभ उपयोग ते दुःख छे.
छठ्ठागुणस्थाने शुभ विकल्प ऊठे छे ते दुःख छे, खेदकारक छे. अहा, निर्विकल्प शुद्ध उपयोगदशा अटके छे ने
शुभ–अशुभ उपयोगमां जोडाण थाय छे ते खेद छे, तेनाथी निर्विकल्प शुद्धात्म रमणता चोराई जाय छे.
सहजानंद स्वभावमां उपयोगनी संपूर्ण लीनता न थतां, विपरीत दशा थई त्यारे रागद्वेषरूप अशुद्धउपयोग
थयो, तेनाथी आत्मस्वरूपमां रमणतानो भंग पडे छे. शुभवृत्ति थाय तेनाथी धर्मात्मा मुनिने पण अंतरमां
दुःख छे–खेद थाय छे. जो स्वरूपनी रमणतामां ज टकीने शुद्ध उपयोग प्रगट न करुं तो प्रमादथी शुभ उपयोगमां
आवी जाउं छुं अने मारा केवळज्ञानना कारणरूप अनुभवचिंतामणि चोराई जाय छे. तेथी मारे रागद्वेषने
थाय छे तेटलुं चैतन्य अनुभवरत्न चोराई जाय छे. माटे सर्वे शुभ अशुभथी रहित थईने स्वरूपमां संपूर्ण
जागृत रहेवुं ते ज मोक्ष पामवानो उपाय छे.
वगेरेनुं प्रतिक्रमण छे. सौथी पहेलांं मिथ्यात्वना प्रतिक्रमण वगर एके प्रकारनुं प्रतिक्रमण होय ज नहि. अहीं तो
संपूर्ण मोहनो क्षय करीने मोक्षदशा प्रगट करवाना उपायनी वात चाले छे. सम्यग्दर्शन थया छतां जो जीव
रागद्वेषने न छोडे तो ते मुक्ति पामतो नथी.